भूकम्प का कहर


भूकम्प ने एक बार फिर विश्व मानवता को दहलाया है। इस बार इस भूकम्प का केन्द्र तुर्की और सीरिया बने हैं जहां 7.8 की उच्च तीव्रता वाले इस भूकम्प ने भारी विनाश ढाया है। भूकम्प का कहर सीरिया में अधिक बरपा हुआ है जबकि तुर्की में भी भूकम्प ने अपना भीषण रूप दिखाया है। इतने अधिक विनाश का एक कारण यह भी रहा कि भूकम्प के झटके बार-बार और कम से कम 40 बार तो अवश्य महसूस किये गये जिसके कारण हताहतों की संख्या बढ़ती गई। अब तक के आकलन के मुताबिक दोनों देशों में इस भूकम्प के कारण 5000 से अधिक लोग मारे गये हैं जबकि हज़ारों अन्य घायल  हुए हैं। भूकम्प से प्रभावित हज़ारों इमारतें भी ज़मींदोज़ हुई हैं। आर्थिक धरातल पर अरबों रुपये की क्षति का अनुमान लगाया गया है। भूकम्प की उच्च तीव्रता का केन्द्र बेशक तुर्की और सीरिया बने किन्तु इनके पड़ोसी देशों लेबनान, साईप्रस, इराक, इज़रायल और फिलिस्तीन में भी भूकम्प के कम तीव्रता वाले बड़े झटके महसूस किये गये। भूकम्प चूंकि स्थानीय समयानुसार देर रात चार बजे के बाद आया, अत: अधिकतर लोग सोए हुए ही इस आपदा की चपेट में आ गये। इससे लोगों को बचाव के कम अवसर मिले और स्थानीय प्रशासनों को भी राहत कार्यों हेतु दिक्कतें पेश आईं।
भूकम्प के इस विनाशक प्रहार का समाचार मिलते ही विश्व भर के देशों ने इन देशों की सहायता हेतु अपना हाथ आगे बढ़ाया है। सर्वाधिक बड़ी पहल भारत की ओर से की गई जब देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन दोनों देशों की सरकारों को प्रत्येक सम्भव सहायता हेतु संदेश भेजा। तात्कालिक रूप से महिला स्वास्थ्य कर्मियों समेत भारत का पहला बचाव दल अधिक प्रभावित क्षेत्रों में पहुंच भी गया है। वैश्विक धरातल पर वैज्ञानिक और तकनीकी आविष्कारों के कारण दुनिया आज एक विश्व-ग्राम में परिवर्तित हो गई है। दुनिया के किसी भी भाग में घटित हुई किसी भी घटना की सूचना तत्काल रूप से चारों और प्रसारित हो जाती है, और इसी आधार पर सहायता के हाथ भी उसी गति से आगे बढ़ने लगते हैं। वर्तमान में भी योरुपीय संघ, ब्रिटेन, जर्मनी, अमरीका, इज़रायल, स्पेन, जापान आदि देशों ने अपने-अपने बचाव दल इन क्षेत्रों में भेज दिये हैं। सीरिया में पहले से मौजूद रूसी सैनिक भी तत्काल रूप से सक्रिय हो गये।
भूकम्प उपजने के बड़े कारणों में धरती के नीचे वाली प्लेटों के आपसी गुरुत्वाकर्षण के कारण होने वाले खिंचाव और ज्वालामुखी अथवा ठंडे होते धरती के हिस्से में से उपजी भाप को माना जाता है। समुद्र के नीचे वाली सतहों की हिलजुल से उपजी सुनामी भी भूकम्प का कारण बनती है। वैश्विक धरातल पर उपजे अब तक के भीषण भूकम्पों में 26 जनवरी, 2001 को गुजरात में 30 हज़ार से अधिक लोग मारे गये थे। इसी प्रकार 26 दिसम्बर, 2004 को देश के दक्षिणी भाग में 9.2 तीव्रता के भूकम्प और सुनामी के कारण हज़ारों लोगों की ज़िन्दगी लील ली गई थी। पाकि के क्वेटा का भूकम्प भी बड़ा घातक माना जाता है जिसमें 75 हज़ार से अधिक लोग काल का ग्रास बने थे। 2010 में हैती के भूकम्प में एक लाख से अधिक लोगों के मारे जाने की सूचना थी। इस वर्ष के भूकम्प के झटकों में भारत के पड़ोसी देश नेपाल में विगत मास जनवरी में भूकम्प के हल्के झटके महसूस किये गये थे जिससे एक व्यक्ति की मृत्यु और कुछ अन्यों के घायल होने और कुछ भवनों के क्षतिग्रस्त होने की सूचना मिली थी। विगत वर्ष नवम्बर में भी नेपाल में 6.3 की तीव्रता वाले भूकम्प के कारण 6 मौतें हुई थीं। विगत वर्ष ताइवान और चीन में भी भूकम्प के झटके महसूस किये गये थे। भारत का कुछ भाग हिमालयी क्षेत्र में होने के कारण इसके उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के पर्वतीय हिस्से और राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, तमिलनाडू आदि के कुछ मैदानी भाग भूकम्प हेतु नाज़ुक केन्द्र माने जाते हैं। प्राकृतिक आपदाओं वाले ़खतरे के अतिरिक्त भारत के पर्वतीय क्षेत्र में निरन्तर बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप और अन्धाधुंध वृक्षों के कटान के अतिरिक्त अनियोजित खनन की प्रक्रिया ने भी भूकम्प के ़खतरे वाले क्षेत्रों को बढ़ाया है। इसी कारण उत्तराखंड जैसे क्षेत्रों में भूकम्प वैज्ञानिकों ने निरन्तर बढ़ते ़खतरों को लेकर बार-बार चेतावनी दी है।
नि:सन्देह वैज्ञानिक उन्नति और तकनीकी आविष्कारों के कारण विशेषज्ञ अक्सर अपनी भविष्यवाणियों के ज़रिये अग्रिम तौर पर चेताते रहते हैं। वैज्ञानिकों की ओर से मौसमों के मिज़ाज और आशंक्ति किसी भी प्रकार की पर्यावरणीय उथल-पुथल की सूचना भी अक्सर अग्र्रिम तौर पर दे दी जाती है, किन्तु प्राकृतिक मुआशिरे का दायरा इतना विशाल, व्यापक है, तथा उसका प्रहार इतना अकस्मात होता है कि लाख साधनों-उपकरणों के बावजूद इसे पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता। उपलब्ध समाचारों के अनुसार मौजूदा भूकम्प के बारे में भी विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने आशंका व्यक्त कर दी थी किन्तु इस सब कुछ के बावजूद न तो इस आशंका को रोका जा सका, न इसकी विनाश लीला पर अंकुश लगाया जा सका। दुनिया में भूकम्पों के उपजने का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि धरती और आकाश के अस्तित्व में आने का इतिहास है। पौराणिक एवं प्राचीन ग्रन्थों में भी भूकम्पों और प्रलयों का ज़िक्र मिलता है। 
हम समझते हैं कि बेशक भूकम्प और प्रलय जैसी आपदाओं और विभीषिकाओं को पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता, परन्तु इनसे उपजने वाले विनाशक प्रहारों की तीव्रता को कम अवश्य किया जा सकता है। कुछ बड़े और विकसित देश ऐसा कर भी रहे हैं। भूकम्प-केन्द्रित और नाज़ुक क्षेत्रों में यथासम्भव मानवीय दखल कम किया जाना चाहिए और विकास के क्रम को संयमित और नियोजित तरीके से नियंत्रित रखना चाहिए। भूकम्प से अधिक प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में भवनों आदि का निर्माण भी इस ढंग से होना चाहिए, कि किसी आशंकित आपदा में न्यूनतम क्षति हो। जापान जैसे देशों में ऐसी ही तकनीक अपनाई जाती है। कुछ इस तरह के बचाव के तरीकों और अग्रिम उपायों को अपना कर ही भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं के विनाशक प्रहार को कम किया जा सकता है।