किसान मेलों को व्यापार तथा राजनीति का केन्द्र न बनाया जाए

किसानों के लिए किसान मेले तथा किसान प्रशिक्षण शिविर  बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन मेलों में किसानों को विभन्न किस्मों के संशोधित बीज उपलब्ध करवाए जाते हैं और उन्हें ज्ञान-विज्ञान, नई कृषि अनुसंधान तथा कृषि सामग्री संबंधी जानकारी दी जाती है। किसान एक-दूसरे के साथ विचार-विमर्श करके अपने अनुभव साझा करते हैं और वैज्ञानिकों द्वारा की गई सिफरिशों एवं अनुसंधान की सफलता का मूल्यांकण करते हैं। किसानों की जानकारी बढ़ाने के लिए इन मेलों में कृषि प्रदर्शनियां भी लगाई जाती हैं। किसान संशोधित तथा शुद्ध बीज लेने के लिए किसान मेलों तथा शिविरों के इंतज़ार में रहते हैं। 
मार्च में पहला किसान मेला पूसा दिल्ली में आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) द्वारा तीन दिन के लिए आयोजित किया जा रहा है, जो 2 मार्च को आरंभ होगा। इस कृषि विज्ञान मेले का मुख्य विषय ‘खुराक, पौष्टिकता एवं पर्यावरण सुरक्षा’ होगा। दूसरा किसान मेला पीएयू द्वारा नाग कलां जहांगीर (अमृतसर) में 2 मार्च को लगाया जाएगा। बल्लोबाल सौंखड़ी (शहीद भगत सिंह नगर) में 7 मार्च को पीएयू किसान मेला आयोजित किया जाएगा। फिर 10 मार्च को गुरदासपुर तथा 14 मार्च को फरीदकोट में किसान मेले लगाए जाएंगे। रौनी में किसान मेला 16 मार्च को आयोजित होगा। इसी दौरान करनाल में वीआईएआरआई-रिजनल स्टेशन एवं पूसा की बासमती किस्मों तथा अन्य खरीफ की फसलों के बीज वितरित किये जाएंगे। फिर 29 मार्च को रखड़ा में आईएआरआई-कोलैबोरेटिव आऊट स्टेशन रिसर्च सैंटर रखड़ा तथा यंग फार्मर्स एसोसिएशन द्वारा विशेष किसान प्रशिक्षण शिविर लगा कर नई बासमती किस्मों (पूसा बासमती-1847, पूसा बासमती-1885 तथा पूसा बासमती-1886) तथा पुरानी (पूसा बासमती 1509 तथा पूसा बासमती-1692) जो पकने को कम समय लेती हैं तथा जिनकी काश्त सफलता से की जा रही है, के बीज किसानों को उपलब्ध करवाए जाएंगे। इस कड़ी का अंतिम किसान मेला 21 मार्च को पीएयू द्वारा बठिंडा में लगाकर मुख्य दो दिवसीय किसान मेला 24 तथा 25 मार्च को पीएयू परिसर लुधियाना में लगाया जाएगा। 
अधिकतर किसान इन मेलों में नई तथा सफल किस्मों के बीज प्राप्त करने के लिए आते हैं। पंजाब में खरीफ की मुख्य फसल धान, बासमती होने के कारण इन किस्मों के बीजों की मांग इस वर्ष भी पहले मेलों की भांति अधिक रहने की सम्भावना  है। धान की बिजाई 30-31 लाख हैक्टेयर रकबे पर की जाती है, जिसमें से लगभग 5 लाख हैक्टेयर रकबे पर बासमती किस्मों की बिजाई की जाती है। गत वर्ष मंडी में बासमती किस्मों का अच्छा मूल्य मिलने के कारण इस वर्ष किसानों का अधिक रुझान बासमती किस्मों की काश्त की ओर दिखाई दे रहा है। पंजाब में पैदा की जा रही बासमती को आईजी हासिल है और यह विदेशों में बहुत पसंद की जाती है। इसलिए संभावना है कि बासमती किस्मों का मूल्य इस वर्ष भी किसानों के हित में रहेगा। इन नई बासमती किस्मों के बीज किसान पूसा कृषि विज्ञान मेला नई दिल्ली के अतिरिक्त  आईसीएआर-आईएआरआई-कौलेबोरेटिव आऊट स्टेशन रिसर्च सैंटर रखड़ा से भी खरीद सकेंगे। किसानों द्वारा धान का सबसे अधिक उत्पादन देने वाली (चाहे लम्बा समय लेती है) पूसा-44 किस्म का बीज इस वर्ष इन किसान मेलों में उपलब्ध नहीं करवाया जाएगा। धान की किस्म पीआर-126 की अधिक मांग है जो किसान पीएयू द्वारा आयोजित किये जा रहे किसान मेलों से खरीद कर पूरी कर सकते हैं।
किसान मेले तथा किसान प्रशिक्षण शिविर ही किसानों के लिए ज्ञान तथा बीजों की आवश्यकता पूरी करने का केन्द्र हैं। उनका वैज्ञानिकों से सम्पर्क करवाने पर मेले के प्रबंधकों को अधिक ज़ोर देना चाहिए। इन मेलों में जो कृषि संबंधी प्रदर्शनियां लगाई जाती हैं, वे वास्तव में किसानों के लिए कृषि सामग्री तथा मशीनरी की प्रदर्शनियां हों, व्यापारिक दुकानें नहीं। अब प्रदर्शनियों में स्टाल बुक करवाने के लिए बहुत ज़्यादा किराया वसूल किया जाता है। ऐसे संस्थानों एवं व्यापारियों की भरमार होती है जो अपना सामान बेच कर इस खर्च को पूरा कर सकें। वे अपने उत्पाद की जानकारी किसानों को देकर चाहे खरीदने के लिए उत्साहित करें, परन्तु किसानों को सही तथा तकनीकी जानकारी उपलब्ध करवाने की ओर उनका अधिक ध्यान होना चाहिए। किसान मेले आयोजित करने वाली संस्थाओं के पास चाहे मेलों के लिए बजट अधिक न हो और पैसे की कमी हो, परन्तु मेलों को कमाई का साधन बनाकर इनके महत्व को समाप्त नहीं करना चाहिए। अब जब कृषि प्रसार सेवा में ढील आ गई है, तो ये किसान मेले तथा किसान प्रशिक्षण शिविर ही किसानों का ज्ञान बढ़ाने तथा उन तक लाभदायक तकनीक पहुंचाने हेतु कारगर सिद्ध हो सकते हैं। यह भी देखा गया है कि ये किसान मेले अब किसी सीमा तक राजनीति का केन्द्र बनते जा रहे हैं। वैज्ञानिकों एवं किसानों की बजाय राजनीतिक प्रवक्ताओं की ओर आयोजकों का अधिक ध्यान लगा रहता है। किसान तो वैज्ञानिकों के साथ सम्पर्क करना चाहते हैं, राजनीतिक भाषण नहीं सुनना चाहते। 
किसान गेहूं की कटाई करके ग्रीष्म ऋतु की मूंग की फसल भी आसानी से ले सकते हैं और गेहूं, मूंग व बासमती का लाभदायक फसली चक्र अपनाकर भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ा सकते हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित की गईं पूसा बासमती-1509, पूसा बासमती-1692 तथा पूसा बासमती-1847 किस्में भू-जल स्तर में आ रही गिरावट का पूर्ण समाधान करने की समर्था रखती हैं। इन किस्मों को पानी की कम आवश्यकता होती है, बारिश सहायक होती है। ये किस्में मुनाफे के रूप में भी लाभदायक हैं। इन मेलों तथा प्रशिक्षण शिविरों में किसान सब्ज़ियों तथा आम आदि की भिन्न-भिन्न कम ऊंचाई वाली किस्मों के बीज तथा पौधे भी प्राप्त कर सकते हैं।