शी जिनपिंग के तीसरी बार राष्ट्रपति बनने का महत्त्व


चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को पांच वर्षों के लिए पुन: राष्ट्रपति चुन लिया गया है। वह माओ-ज़े तुंग के बाद पहले नेता हैं जिन्हें तीसरी बार इस पद के लिए चुना गया है। वैसे उनके लिए इस पद पर तीसरी बार चुने जाने का रास्ता 2018 में उस समय ही स़ाफ हो गया था जब चीनी संसद (नैशनल पीपल्ज़ कांग्रेस) ने संविधान में संशोधन करके किसी नेता के दो बार से अधिक बार राष्ट्रपति बनने की सीमा को खत्म कर दिया था। 
यदि उनके ताज़ा चुनाव की बात करें तो शुक्रवार को 3 हज़ार सांसदों वाली (नैशनल पीपल्ज़ कांग्रेस) के 2952 उपस्थित सांसदों ने सर्वसम्मति के साथ उन्हें तीसरी बार राष्ट्रपति चुना। उनके मुकाबले में कोई भी उम्मीदवार नहीं था। इसके बाद शनिवार को उनके नज़दीकी ली क्यांग भी चीन के प्रधानमंत्री के रूप में चुने गए हैं। वह वर्तमान प्रधानमंत्री ली केकिआंग का स्थान लेंगे। यहां यह भी वर्णननीय है कि पिछले वर्ष चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस के दौरान उन्हें पुन: पार्टी का महासचिव भी चुन लिया गया था। शी जिनपिंग अब जहां आगामी पांच वर्षों तक चीन के राष्ट्रपति रहेंगे, वहीं इसके साथ ही वह चीन की सेना के भी प्रमुख होंगे। इस तरह विश्व के दूसरे स्थान की आर्थिकता वाले तथा शक्तिशाली सेना वाले देश, चीन के वह बेहद शक्तिशाली नेता बन कर उभरे हैं। विगत दिवस चीन की संसद में उन्होंने जो भाषण दिया, उससे यह बात उभर कर सामने आई है कि वह चीन को विज्ञान तथा टैक्नालोजी के क्षेत्र में बेहद शक्तिशाली बनाना चाहते हैं ताकि इस पक्ष से अमरीका तथा पश्चिमी देशों पर चीन की निर्भरता को कम किया जा सके। इसके साथ ही वह चीन की सेना को भी और अधिक शक्तिशाली बनाना चाहते हैं ताकि चीन विश्व में एक शक्तिशाली देश के रूप में अपने उद्देश्य पूरे कर सके। इस उद्देश्य के लिए उन्होंने चीन के रक्षा बजट में 7.5 प्रतिशत की वृद्धि की है तथा देश की विकास दर 5 प्रतिशत तक बनाये रखने का भी फैसला किया है। 
सवाल पैदा होता है कि चीन जैसे शक्तिशाली देश के शी जिनपिंग द्वारा तीसरी बार राष्ट्रपति चुने जाने का विश्व के अलग-अलग देशों तथा विशेष रूप से भारत के प्रति क्या महत्त्व है? इस संबंध में विश्व के राजनीतिक विशेषज्ञों द्वारा ये अनुमान लगाये जा रहे हैं कि अमरीका तथा पश्चिमी देशों के साथ चीन का व्यापार तथा अन्य मुद्दों को लेकर तनाव एवं टकराव बरकरार रहेगा। खास तौर पर ताइवान जिसे चीन अपना हिस्सा समझता है तथा उसे अपने देश में शामिल करना चाहता है, को लेकर अमरीका तथा पश्चिमी देशों के साथ उसके टकराव में और वृद्धि हो सकती है। चीन के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधी भी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने यह आरोप लगाया था कि अमरीका चीन के व्यापारिक तथा आर्थिक क्षेत्र में उभार को रोकने के लिए उसकी कम्पनियों पर कई तरह के प्रतिबंध लगा रहा है, जिसे चीन बर्दाश्त नहीं करेगा। इससे यह स्पष्ट होता है कि व्यापारिक तथा आर्थिक मुद्दों पर चीन का अमरीका तथा पश्चिमी देशों के साथ टकराव बना रहेगा। चाहे चीन जिसे विश्व की फैक्टरी कहा जाता है, की आर्थिकता ज्यादातर अमरीका तथा पश्चिमी देशों के साथ उसके व्यापार पर निर्भर है। इसलिए वह अमरीका तथा पश्चिमी देशों के साथ अपना टकराव इस सीमा तक आगे नहीं बढ़ाएगा कि अमरीका तथा पश्चिमी देशों द्वारा उसके साथ व्यापार बंद कर दिया जाए या बेहद सीमित कर दिया जाए। फिर भी चीन अपने व्यापारिक हितों के लिए अमरीका तथा अन्य पश्चिमी देसों पर दबाव ज़रूर बनाए रखेगा। भारत सहित दक्षिण चीन सागर के साथ लगते देशों ताइवान, फिलिपीन्स, मलेशिया, ब्रूनी, इंडोनेशिया तथा वियतनाम के साथ भी चीन के संबंधों में शी जिनपिंग के पुन: राष्ट्रपति बनने से और अधिक टकराव पैदा हो सकता है। दक्षिण चीन सागर में वह अपने सैन्य अड्डों को और अधिक मज़बूत करेगा और इस क्षेत्र में हो रही वैश्विक व्यापारिक गतिविधियों को भी वह अपने हितों के अनुरूप करने का प्रयास करेगा। इस मुद्दे को लेकर भी भारत सहित क्वाड के सदस्य देशों के साथ उसका टकराव बढ़ सकता है।
भारत-चीन संबंधों पर इसका विशेष तौर पर अधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। भारत के साथ चीन की 35000 किलोमीटर सीमा लगती है। चीन की आक्रामक नीतियों के कारण पहले ही दोनों देशों की सीमा पर तनाव बना रहता है। चीन बार-बार पूर्वी लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक वास्तविक नियंत्रण रेखा को भारत में घुसपैठ करके अपने तौर पर बदलने के प्रयास में लगा रहता है। वह धीरे-धीरे भारत के सीमांत क्षेत्रों के भीतर न सिर्फ घुसपैठ करता है अपितु भारत के क्षेत्रों के संबंध में नये-नये दावे भी पेश करता रहता है। यह अच्छी बात है कि 1962 के युद्ध के बाद भारत चीन के इरादों को लेकर काफी सतर्क हो चुका है। फिर भी चीनी सीमा पर चीन द्वारा अपने मूलभूत ढांचे को मज़बूत करने तथा व्यापक स्तर पर सेना तैनात किये जाने के दृष्टिगत भारत को भी बेहद तैयारी रखनी पड़ेगी और अपना मूलभूत ढांचा और मज़बूत बनाना पड़ेगा। यह भी सन्तोषजनक बात है कि भारत की मौजूदा सरकार सड़कों एवं पुलों का निर्माण करने तथा चीन के साथ लगती सीमा पर सैन्य तथा आधुनिक साजो-सामान की तैनाती करके चीन को यह संदेश अवश्य दे रही है कि वह सीमांत विवाद के संबंध में भारत पर किसी भी तरह का एकतरफा दबाव नहीं डाल सकता। यदि वह ऐसा करता है तो उसे भारत की ओर से कड़े विरोध का सामना करना पड़ेगा। चाहे शी जिनपिंग के तीसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद भारत को ज़रूरत से अधिक चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है परन्तु फिर भी सुरक्षा तथा अपने देश की अर्थ-व्यवस्था को मज़बूत करने के मामले में भारत को किसी भी प्रकार के यत्न करने में पीछे नहीं रहना चाहिए।