देश के गौरवशाली इतिहास की परिचायक है संसद की नई इमारत

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 10 दिसम्बर 2020 को भारतीय संसद की नई इमारत का शिलान्यास किया गया था, जिसे उच्च गुणवत्ता के साथ ढ़ाई वर्ष से भी कम समय में पूरा कर लिया गया है। हालांकि शुरूआत में नया संसद भवन अक्तूबर 2022 तक बनकर तैयार होने की उम्मीद थी, किन्तु कुछ समय के लिए संसद की नई ईमारत के निर्माण का मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित रहने के कारण इसमें कुछ महीनों का विलंब हुआ। 28 मई को नई संसद के उद्घाटन के साथ ही संसद का पुराना भवन प्राचीन धरोहर का हिस्सा बन जाएगा। नया संसद भवन पुरानी ईमारत से करीब 17 हजार वर्गमीटर ज्यादा बड़ा है। 64500 वर्गमीटर क्षेत्र में बने नए संसद भवन में एक बेसमेंट सहित कुल चार मंजिल हैं और इसकी ऊंचाई संसद के मौजूदा भवन के बराबर ही है। नया संसद भवन बनने के बाद पुराने संसद भवन का इस्तेमाल संसदीय आयोजनों के लिए किया जाएगा। लोकसभा सचिवालय के अनुसार नया भवन भारत के लोकतंत्र और भारतवासियों के गौरव का प्रतीक है, जो न केवल देश के गौरवशाली इतिहास बल्कि इसकी एकता और विविधता का भी परिचय देगा।
नया संसद भवन सेंट्रल विस्टा परियोजना का हिस्सा है और इस परियोजना की कुल अनुमानित लागत 20 हजार करोड़ रुपये है। इस नए भव्य संसद भवन को वास्तु के साथ-साथ प्रत्येक दृष्टिकोण से सुंदर और आधुनिक बनाने का प्रयास किया गया है। नए भवन में राज्यसभा का आकार पहले के मुकाबले बड़ा है तथा लोकसभा का आकार भी मौजूदा से तीन गुणा ज्यादा है। नई संसद में प्रत्येक सांसद का अपना कार्यालय है। नया भवन कुछ इस प्रकार से बनाया गया ताकि भविष्य में सांसदों की संख्या बढ़ने पर भी किसी प्रकार की कोई परेशानी न हो। पुराने भवन की तुलना में नए संसद भवन में ज्यादा कमेटी रूम और पार्टी कार्यालय हैं और सांसदों के कार्यालय कक्ष में सांसदों के साथ उनके निजी सहायक के बैठने की व्यवस्था भी है। नई संसद में सांसदों के कार्यालयों को पेपरलेस ऑफिस बनाने के लिए नवीनतम डिजिटल इंटरफेस से लैस किया गया है और इन दफ्तरों को अंडरग्राउंड टनल से जोड़ा गया है। नई इमारत में सांसदों के बैठने के लिए एक बड़ा लाउंज, एक पुस्तकालय, समितियों के लिए कई कक्ष, भोजन कक्ष और पार्किंग के लिए व्यापक स्थान है। नई संसद में एक भव्य कॉन्स्टीट्यूशन हॉल है, जिसमें भारत की लोकतांत्रिक विरासत को प्रदर्शित किया जाएगा। इसी हाल में भारत के संविधान की मूल प्रति को भी रखा जाएगा। केन्द्रीय संवैधानिक गैलरी को आम लोग भी देख सकेंगे।
ब्रिटिश शासनकाल में बना 566 मीटर व्यास वाला संसद भवन करीब 96 वर्ष पुराना है, जिसकी आधारशिला 12 फरवरी 1921 को ‘द ड्यूट ऑफ कनॉट’ द्वारा रखी गई थी और 18 जनवरी 1927 को भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने उसका उद्घाटन किया था तथा 19 जनवरी 1927 को सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली की पहली बैठक इसी संसद भवन में हुई थी। वह भवन 6 वर्ष में बनकर तैयार हुआ था, जिसके निर्माण पर 83 लाख रुपये की लागत आई थी। 47500 वर्ग मीटर में बने इस भवन में तीन हॉल, चेंबर ऑफ प्रिंसेस, स्टेट काउंसिल और सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली थे। इन्हीं तीनों हॉल का प्रयोग आज़ादी के बाद लाइब्रेरी हॉल, राज्यसभा तथा लोकसभा के रूप में किया गया लेकिन संसद भवन में स्थानाभाव के कारण वर्ष 1956 में इसमें दो अतिरिक्त तल जोड़े गए। दिल्ली में विधानपरिषद स्थापित करने के लिए अलग भवन का निर्माण करने की व्यवस्था के बारे में सबसे पहले 1912 में ब्रिटेन की संसद मंज सवाल उठा था। अंग्रेजों के जमाने में बने संसद भवन की परिधि एक तिहाई मील है, जिसका क्षेत्रफल करीब छह एकड़ है। पूरा संसद भवन लाल बालुई पत्थर की सजावटी दीवारों से घिरा है, जिसमें लोहे के 12 द्वार हैं। इसके प्रथम तल के खुले बरामदे के किनारे पर क्रीम रंग के 27 फुट ऊंचाई वाले बालुई पत्थर के 144 स्तंभ लगे हैं। ये स्तंभ इस भवन को एक अनूठा आकर्षण और गरिमा प्रदान करते हैं। संसद भवन का डिजाइन प्रसिद्ध वास्तुकार सर एडविन लुटियंस तथा सर हर्बर्ट बेकर ने बनाया था। ब्रिटिश सरकार द्वारा सर एडविन लुटियंस और सर हर्बर्ट बेकर को ही नई दिल्ली के नियोजन और निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
ब्रिटिश काल में बने संसद भवन में पर्याप्त जगह और अत्याधुनिक सुविधाओं की व्यवस्था नहीं है, इसीलिए संसद के बढ़ते कामकाज के कारण एक नई इमारत के निर्माण की ज़रूरत महसूस की जा रही थी। फिलहाल लोकसभा में 543 और राज्यसभा में 245 सीटें हैं लेकिन भविष्य में सांसदों की संख्या में वृद्धि के मद्देनज़र नए भवन में दोनों सदनों को 1272 सदस्यों के बैठने की क्षमता के अनुरूप बनाया गया है, जिसमें निचले सदन लोकसभा के 888 सदस्यों और उच्च सदन राज्यसभा के 384 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था है और नए संसद भवन की संयुक्त बैठक के दौरान वहां 1224 सदस्य बैठ सकेंगे। लोकसभा कक्ष का डिजाइन राष्ट्रीय पक्षी मयूर जैसा जबकि राज्यसभा कक्ष का डिजाइन राष्ट्रीय पुष्प कमल जैसा किया गया है। देश के नए संसद भवन का निर्माण पूरी तरह से वैदिक तरीके से हुआ है और इसमें कुल छह समिति कक्ष हैं। सदन में प्रत्येक बेंच पर दो सदस्य बैठ सकेंगे और हर सीट डिजिटल प्रणाली तथा टचस्क्रीन से सुसज्जित है।
आधुनिक तकनीक और सुविधाओं से सुसज्जित नए भवन में ही संसद के दोनों सदनों की बैठकें होंगी। लोकसभाध्यक्ष ओम बिरला के मुताबिक संसद का नया भवन केवल ईंट-पत्थर का भवन नहीं बल्कि 140 करोड़ लोगों की आकांक्षाओं का भवन है। इसके निर्माण में आगामी सौ वर्षों से अधिक की ज़रूरतों पर ध्यान दिया गया है। नई संसद वायु तथा ध्वनि प्रदूषण से भी पूरी तरह मुक्त है और सोलर प्रणाली से ऊर्जा की बचत भी होगी। नया संसद भवन अत्याधुनिक तकनीकी सुविधाओं से युक्त और ऊर्जा कुशल है। त्रिकोणीय आकार की यह भव्य इमारत न केवल तमाम सुरक्षा सुविधाओं से लैस है बल्कि इसे भूकम्पीय क्षेत्र .5 की आवश्यकताओं के मद्देनज़र बनाया गया है। इसके अलावा भवन निर्माण में पर्यावरण अनुकूल हरित प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया गया है। नए भवन में रेन हार्वेस्टिंग प्रणाली तथा वाटर रिसाइकलिंग प्रणाली भी है। इमारत में उच्चतम संरचनात्मक सुरक्षा मानकों का पालन करते हुए उच्च गुणवत्ता वाली ध्वनि, आधुनिक दृश्य-श्रव्य सुविधाएं, डेटा नेटवर्क प्रणाली, बैठने की आरामदायक व्यवस्था, प्रभावी और समावेशी आपातकालीन निकासी की व्यवस्थाएं भी हैं। नए भवन की सज्जा में भारतीय संस्कृति, क्षेत्रीय कला, शिल्प एवं वास्तुकला की विविधता का समृद्ध मिला-जुला स्वरूप है। भवन के निर्माण कार्य से दो हजार मजदूर और इंजीनियर प्रत्यक्ष तौर पर और नौ हजार से भी ज्यादा लोग परोक्ष रूप से जुड़े रहे। नई संसद में देश की विरासत, इतिहास और विविधता को दर्शाने के लिए देश के करीब दो सौ शिल्पकार और कलाकारों के संगठनों को जोड़ा गया था।
नया संसद भवन सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का हिस्सा है और सेंट्रल विस्टा की शुरूआत राष्ट्रपति भवन से होती है, जो इंडिया गेट तक जाता है। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में संसद की नई इमारत के अलावा एक कॉमन केन्द्रीय सचिवालय बनाया जा रहा है, जहां सभी मंत्रालयों के दफ्तर होंगे। इसके अलावा राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक करीब तीन किलोमीटर लंबे राजपथ को भी नया रूप दिया जा रहा है। हालांकि नए संसद भवन के निर्माण को लेकर सवाल भी उठते रहे हैं। कहा जाता रहा है कि देश में पहले से ही ब्रिटिश दौर में बनी संसद की भव्य और मजबूत इमारत है, फिर नई इमारत के निर्माण पर करोड़ों रुपये खर्च करना कितना जायज है? इस बारे में सरकार द्वारा तर्क दिया जाता रहा है कि पिछले कई वर्षों से सांसद मांग कर रहे थे कि समय के साथ उनकी ज़रूरतों के हिसाब से मौजूदा संसद भवन में व्यवस्थाएं नहीं है और मौजूदा संसद भवन परिसर में उनकी ज़रूरत के हिसाब से तमाम ज़रूरी व्यवस्थाएं करना संभव नहीं था। बहुत से सांसद काफी समय से मांग कर रहे थे कि उन्हें संसद भवन परिसर में ही कार्यालय मिलना चाहिए ताकि वे अपना कामकाज सहजता के साथ बेहतर ढ़ंग से कर सकें। दरअसल ब्रिटिशकालीन संसद भवन में अब तक सांसदों के कार्यालय नहीं हैं और इसमें इतनी जगह भी नहीं है कि इसके भीतर कार्यालयों का निर्माण किया जा सकता। नए भवन में प्रत्येक सांसद को कार्यालय के लिए 40 वर्ग मीटर स्थान उपलब्ध कराया जाएगा। सांसदों के लिए करीब 800 चैम्बर रेड क्रॉस रोड़ पर श्रम शक्ति भवन और परिवहन भवन के निकट निर्मित किए जाएंगे, जिनका निर्माण अगले साल तक पूरा होने की संभावना है। भविष्य की ज़रूरतों के मद्देनज़र 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले देश में वर्ष 2026 में नए सिरे से लोकसभा सीटों के परिसीमन का कार्य होना है, जिसके बाद लोकसभा और राज्यसभा की सीटें बढ़ सकती हैं। माना जा रहा है कि यदि परिसीमन का कार्य होता है तो सांसदों की संख्या मौजूदा 545 से बढ़कर 700 से ज्यादा हो जाएगी लेकिन मौजूदा लोकसभा में 550 और राज्यसभा में 250 सदस्यों के बैठने की ही जगह है, इसलिए भी नए संसद भवन की ज़रूरत महसूस की जा रही थी।
मौजूदा संसद भवन वृत्ताकार है लेकिन नया भवन एक त्रिकोनी अर्थात् त्रिभुजाकार ईमारत है। संसद भवन की ईमारत की शैली त्रिकोने आकार की होने को लेकर भी नए संसद भवन की इमारत चर्चा में रही है। दरअसल भारतीय संस्कृति में त्रिभुज का बड़ा महत्व है और वास्तु के हिसाब से ही भवन का त्रिकोना आकार तय किया गया है। कई प्रकार के तांत्रिक अनुष्ठानों में त्रिकोणीय आकृति बनाई जाती है और मान्यता है कि इस त्रिकोणीय आकृति से ही अनुष्ठान पूरा हो पाता है। वास्तुविदों ने संसद के नए भवन को बनाने के लिए कई देशों की संसद का निरीक्षण कर उनसे प्रेरणा ली। हमारी संसद लोगों के विश्वास और आकांक्षाओं का प्रतीक है और संसद का नया भवन सभी राज्यों की उत्कृष्ट कला, संस्कृति और विविधताओं से परिपूर्ण है, जो लोगों के लिए प्रेरणा का केन्द्र भी होगा।

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