नेत्रदान जागरूकता से रोशन हो सकता है लाखों का जीवन

अंतर्रा़ष्ट्रीय नेत्रदान दिवस हर वर्ष 10 जून को मनाया जाता है। हमारे शरीर के प्रत्येक अंग का अपना अलग महत्व होता है। लेकिन इसमें आंख काफी महत्वपूर्ण हैं। आंखें स्वस्थ न हों तो संसार की सारी खूबसूरती बेमानी लगती हैं। फिर भी हम अपनी आंखों का पर्याप्त खयाल नहीं रख पाते। कई बार देखा गया है आंख में धूल अथवा अन्य किसी कारण से एलर्जी हो जाती है तो हम कितने  बेचैन हो जाते है। इसलिए यह सच ही कहा गया है कि आँख है तो जहान है। 
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के अनुसार विश्वभर में लगभग 285 मिलियन लोग नेत्रहीन हैं। इनमें से 39 लाख लोग अंधे और 246 मिलियन लोग मध्यम या गंभीर दृष्टि दोष वाले है। दृष्टि दोष के प्रमुख कारणों में असंशोधित अपवर्तक कमियां 43 प्रतिशत और मोतियाबिंद 33 प्रतिशत हैं। अधिकांश अंधेपन (लगभग 80 प्रतिशत) का बचाव यानि कि उपचार या रोकथाम की जा सकती है। विश्व के 20 प्रतिशत नेत्रहीन लोग भारत में हैं और हर वर्ष इनमें 20000 लोगों की वृद्धि हो रही है। शारीरिक, सामाजिक, मानसिक तथा आर्थिक चुनौतियों के कारण उनकी स्थिति सचमुच दयनीय होती है क्योंकि अक्षम लोग अपने आप कुछ नहीं कर सकते और उन्हें दूसरों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। भारत मे करीब 1.25 करोड लोग दष्टिहीन है, जिसमें से करीब 30 लाख व्यक्ति नेत्ररोपण द्वारा दष्टि पा सकते हैं। सारे दष्टिहीन नेत्ररोपण द्वारा दष्टि नहीं पा सकते क्योंकि इसके लिये पुतलियों के अलावा नेत्र सबंधित तंतुओं का स्वस्थ होना ज़रुरी है। पुतलियां तभी किसी दष्टिहीन को लगायी जा सकती है जबकि कोई इन्हे दान में दे। नेत्रदान केवल मत्यु के बाद ही किया जा सकता है। 
सभी धर्मों में दया, परोपकार, जैसी मानवीय भावनाएं सिखाई जाती हैं। यदि हम अपने नेत्रदान करके मरणोपरांत किसी की निष्काम सहायता कर सकें तो हम अपने धर्म का पालन करेंगे, क्योकि इसमें कोई भी स्वार्थ नहीं है। इसलिये यह महादान माना जाता है। नेत्रदान करने वाले व्यक्ति की मृत्यु के 6 से 8 घंटे के अंदर ही नेत्रदान कर देना चाहिए। जिस व्यक्ति को नेत्रदान के कॉर्निया का उपयोग करना है, उसे 24 घंटे के भीतर ही कॉर्निया प्रत्यारोपित कराना ज़रूरी होता है। नेत्रदान का मतलब शरीर से पूरी आंख निकालना नहीं होता। इसमें मृत व्यक्ति की आंखों के कॉर्निया का उपयोग किया जाता है। 
देश में हर साल 80 से 90 लाख लोगों की मृत्यु होती है लेकिन नेत्रदान 25 हज़ार के आसपास ही होता है। मृत्यु के बाद एक व्यक्ति चार लोगों को रोशनी दे सकता है। पहले दोनों आंखों से केवल दो ही कार्निया मिलती थी, लेकिन अब नई तकनीक आने के बाद से एक आंख से दो कार्निया प्रत्यारोपित की जा रही हैं। डीमैक तकनीक से होने वाला यह प्रत्यारोपण शुरू हो गया है। खास बात यह है कि व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसकी पूरी आंख नहीं ली जाती, केवल रोशनी वाली काली पुतली ही ली जाती है। दोनों कार्निया एक साथ नहीं बदली जाती है। मौत के छह घंटे तक ही कार्निया प्रयोग लायक रहती हैं।
देश में अभी 30 लाख लोग ऐसे हैं, जिन्हें कार्निया की ज़रूरत है। अगर उन्हें समय से कार्निया मिल जाए तो वे दुनिया का हर रंग देख पाएंगे। आंखों के स्वास्थ्य को बनाए रखना केवल एक व्यक्ति का नहीं कर्त्तव्य है, बल्कि यह समाज की सामूहिक ज़िम्मेदारी है। नेत्रदान द्वारा बड़ी संख्या में लोगों को लाभान्वित किया जा सकता हैं। मृत्यु के बाद किसी ज़रूरतमंद को अपनी आंखें देने की प्रक्रिया नेत्रदान कहलाती है। नेत्रदान महादान है। मनुष्य के जीवन में हर अंग का महत्व है, लेकिन द्ृष्टि के बिना जीवन का पूरा सुख नहीं मिलता। आंखें खुशी और दुख दोनों का भाव व्यक्त करती हैं। मृत्यु के बाद देहदान की तरह कुछ अंगों का दान किया जा सकता है। समाज में जागरुकता लाकर नेत्रदान के अभियान को गति दी जा सकती है।