लुधियाना गैस त्रासदी का सच

पंजाब के प्रसिद्ध औद्योगिक शहर लुधियाना के ग्यासपुरा इलाके में दो मास पूर्व घटित हुए विषाक्त गैस कांड की केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जांच रिपोर्ट ने नि:संदेह रूप से सनसनीपूर्ण रहस्योद्घाटन किये हैं। इस जांच रिपोर्ट ने एक ओर जहां इस कांड हेतु ज़िम्मेदार स्थितियों/परिस्थितियों के प्रति सरकारों की उदासीनता की ओर इंगित किया है, वहीं प्रशासनिक धरातल पर व्याप्त हुए भ्रष्टाचार को भी खुले तौर पर उजागर किया है। विगत 30 अप्रैल को लुधियाना के इस इलाके में अनेक सीवरेज मेनहोलों से एकाएक निकली विषाक्त गैस ने न केवल पूरे शहर में हाहाकर जैसी स्थिति उत्पन्न कर दी थी, अपितु पूरे प्रदेश के जन-समुदाय को दहला कर रख दिया था। इस गैस कांड ने तीन बच्चों सहित ग्यारह लोगों की जान ले ली थी, और अनेक अन्य प्रभावित भी हुए थे। इस त्रासदी की तात्कालिक जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि प्रभावित इलाके के सीवरेज होलों में से विषाक्त हाइड्रोन सल्फाइड गैस लीक हुई थी जिसने बहुत शीघ्र आस-पास के वायु-तंत्र को प्रभावित कर दिया, जिससे इतनी मौतें हुईं। अब केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से इस मामले की बाकायदा खोज-पड़ताल के बाद जारी की गई रिपोर्ट में जहां इसी हाईड्रोजन सल्फाईड गैस के फूटने की पुष्टि की गई है, वहीं यह भी एक गम्भीर रहस्योद्घाटन किया गया है कि इस गैस के उपजने के पीछे स्थानीय उद्योगों द्वारा शहरी सीवरेज में बड़े स्तर पर छोड़ा जाता  विषाक्त रसायन-युक्त पानी ज़िम्मेदार है। बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट  राष्ट्रीय हरित ट्रिब्यूनल को सौंप दी है हालांकि यह संस्था स्वयं भी इसकी जांच कर रही है। तथापि, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट प्रदेश की सरकार और पर्यावरणीय प्रदूषण की रोकथाम हेतु सम्नद्ध संगठनों की आंखें खोल देने के लिए काफी है।
पंजाब का लुधियाना शहर जहां प्रदेश के मान-चित्र पर उद्योगों का मानचैस्चर बन कर उभरा है, वहीं थोड़े-से लालच, अज्ञानता और अधिक धन कमाने की स्थानीय उद्योगपतियों की चाह ने इस शहर को इस प्रकार की त्रासद घटनाओं के कगार तक धकेल दिया है। इस शहर में रासायनिक पदार्थों का प्रयोग करने वाली औद्योगिक इकाइयों की संख्या बहुतायत में है, किन्तु इनमें से अधिकतर में इस रसायन-युक्त पानी को ट्रीट कर साफ करने जैसे उपकरण नहीं लगाये गये हैं। लिहाज़ा ऐसे उद्योग अपने इस कैमीकल-युक्त अवशेषों से लबरेज पानी को सीवरेज के ज़रिये बहा देते हैं।  शहर के गली-मोहल्लों में स्थापित छोटी-छोटी इकाइयां इस समस्या को और बढ़ाती हैं। इन लघु इकाइयों के पास ट्रीटमैंट प्लांट लगाया जाना और भी कठिन है। इनके मालिक अपनी इकाइयों के प्रदूषित पानी को अक्सर नालियों के ज़रिये सीवरेज में डाल देते हैं, अथवा वर्षा के मौसम में जमा होने वाले में बहा देते हैं। वर्षा के मौसम में कई बार शहर के आवासीय इलाकों में यह गंदा रसायन-युक्त पानी सीवरेज से ओवर फ्लो होकर बहने लगता है। इस विषाक्त पानी के कारण ही शहर का बुड्डा नाला अनेक प्रकार के रोगों और समस्याओं का केन्द्र बन चुका है। यह रसायन-युक्त पानी सीवरेज के बंद ढक्कनों के भीतर निरन्तर विषाक्त होता रहता है, और फिर किसी दिन ऐसी ही घटनाओं के लिए उत्तरदायी बनता है। 
यह समस्या दशकों से इसी प्रकार निरन्तर गम्भीर होती चली आ रही है। वर्तमान भी भगवंत मान सरकार की तख्ती भी इस मामले में कोरी ही है, किन्तु समस्या को गम्भीर और घातक बनाने वाले तत्व निरन्तर सक्रिय पाये गये हैं। ऐसा तथ्य इस रिपोर्ट में भी प्रकट किया गया है। हम समझते हैं कि इस औद्योगिक शहर की यह समस्या विस्फोटक कगार तक पहुंच गई है। स्थानीय उद्योगपति थोड़ा-सा पैसा बचाने के लिए, अभी भी पानी को ट्रीट करने वाले उपकरण लगाने को तैयार नहीं हो रहे। इस कारण शहर के कई इलाकों के सीवरेज में क्लोराइड की मात्रा भी बढ़ते हुए पाई गई है। स्थानीय प्रशासन की ऐसे तत्वों के साथ मिली-भुगत हो सकती है, और मौजूदा सरकार भी पूर्ववर्ती सरकारों की भांति इस समस्या से उदासीन ही दिखाई देती है। यही कारण है कि इस घटना के दो मास बाद भी इस मामले को लेकर सरकार के कानों पर जूं तक नहीं सरकी है। सरकारें और नगर निगम इकाइयां करों की उगाही तो कर लेती हैं, किन्तु नाज़ुक इलाकों के सीवरेज की निरन्तर और नियम आधारित सफाई आदि की कोई व्यवस्था नहीं करतीं। सरकार को चाहिए कि वह शहर की ऐसी तमाम औद्योगिक इकाइयों के लिए रसायन-युक्त अवशेष को ट्रीट करने हेतु प्लांट लगाया जाना सुनिश्चित करे, और इस हेतु यदि उद्योगों को सहायता, ऋण अथवा अनुदान आदि देने की ज़रूरत पड़ती है, तो उसकी भी व्यवस्था करे। आज लुधियाना निशाने पर है, कल को कोई और शहर भी इस प्रकार की त्रासदी का शिकार हो सकता है। पंजाब के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी इस ओर तत्काल तवज्जो देनी चाहिए।