मणिपुर को ले कर शर्मिंदा हैं हम
मणिपुर की घटनाओं पर इस समय पूरा देश शर्मिंदा है। सिर झुका हुआ है। आंखों में धुआं सा भर गया है। कदमों में लड़खड़ाहट है। निराशा ने होंठ सी दिये हैं। मणिपुर की घटनाओं पर जारी बहस को गलत उदाहरणों के साथ मूल तत्व झुठलाने की कोशिश की जा रही है, जो और भी शर्मिंदा करने वाली बात है। मणिपुर जल रहा है, उबलते पानी में जैसे किसी को छोड़ दिया जाये, परन्तु बातों को इधर से उधर और उधर से इधर घुमाया जा रहा है। जैसे राजनीति के लिए कोई रात-रात नहीं होती। रात हो तो दिन के इन्तजार करने की बात कह कर चुप करवा दो। लेकिन अब चुप रहना कठिन है। पिछले ढाई महीने की बात करें तो उसे राजस्थान, छत्तीसगढ़ या पश्चिम बंगाल में हुई इक्का-दुक्का घटनाओं के सामने रखकर दरकिनार करने की कोशिश रहती है, जिसका उस पीड़ा से कोई संबंध नहीं, जिसे हम जी रहे हैं। इसे घटना की वास्तविकता से टालमटोल कहा जा सकता है। जबकि महिलाओं के प्रति जो व्यवहार हुआ उसे पाप कहना चाहिए और जीरो टालरैंस की नीति होनी चाहिए। देश में या फिर पूरी दुनिया में महिलाओं के प्रति दुष्कर्म की घटनाओं को कभी, कहीं भी हल्के में नहीं लेना चाहिए। राजस्थान या अन्य स्थलों पर जो कुछ हुआ वह भी नहीं होना चाहिए था और हर घटना की घोर निंदा करते हुए जरा भी संकोच नहीं है। लेकिन मणिपुर के वर्तमाम को ज्यादा गम्भीरता से लेना चाहिए। वहां महिलाएं गंदी भीड़ में फंसी हुई हैं। उनकी इज्जत पर काले दाग लग रहे हैं। उनका परिवार पीड़ा में है और यह मामला तो एक है जो वायरल हुआ है। मामले और भी हैं जो अवाम तक नहीं पहुंच पाये। उन मामलों में पीड़ित महिलाएं सदमे से बाहर नहीं निकल पाई। खामोश हैं। कुछ कह नहीं सकती। पुलिस या राज्य सरकार की चिंता के दायरे में भी नहीं है। पुलिस से किसी ने सवाल नहीं किया कि अगर इस वीडियो से पूरा जमाना हिल उठा है तो पुलिस की फाईल में इसकी एफ.आई.आर. दो महीने तक कैसे दबी रही?
मणिपुर तीन मई से जल रहा है। इस राज्य में इस दर्जे की नस्ली हिंसा और साम्प्रदायिक टकराव एक लम्बे समय से नहीं देखे गये थे। अभी तक इसमें 150 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। पूरे के पूरे गांव तहस-नहस कर दिये गये हैं। घरों को लूटकर जला दिया गया है। मंदिर और गिरजाघरों में तोड़-फोड़ की गई है और हजारों लोग बेघर हो गये हैं। इस सबके बावजूद ऐसा लगता है कि किसी को कोई प्रवाह नहीं है। जब दो कुकी महिलाओं के साथ सामूहिक दुराचार का वीडियो वायरल हुआ तब जाकर प्रधानमंत्री ने इस घटना की निंदा की और दोषियों को दंडित करने का वचन दिया।
वहां का दृश्य यह है कि जलते हुए घर स्कूल और मीनारें हैं। बिलखती स्त्रियों की आहें हैं, महा विनाश है। हिसक आंधी में मरे हुए लोग हैं। जंगल जैसे दहाड़ रहा हो।
वहां के मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया और भी हैरान करने वाली है। उनका बयान है जो राष्ट्रीय मीडिया के सामने है। ऐसे और सैंकड़ों मामले घटित हुए होंगे। लेकिन जब ऐसे सैंकड़ों मामले घटित हो रहे थे, पुलिस क्या कर रही थी? कुछ भी नहीं। अफसरों की फौज क्या कर रही थी? कुछ भी नहीं।
वायरल वीडियो वाली घटना 4 मई की है। मामले की पुलिस शिकायत 18 मई को दर्ज की गई थी। पूरे एक महीने तक पुलिस थानों के बीच वाद-विवाद चलता रहा कि यह मामला किस थाने का है। अधिकार क्षेत्र किसका है? आखिरकार 21 जून को अज्ञात बदमाशों पर एफ.आई.आर. दर्ज की गई। इधर राष्ट्रीय महिला आयोग को भी मणिपुर की घटनाओं की सूचना मिली। आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा कि उन्होंने तीन अवसरों पर राज्य सरकार से सम्पर्क किया और मामले की जांच करने को कहा, लेकिन कोई ठीक जवाब नहीं मिला। 4 मई की घटना का 20 जुलाई को टविटर पर अपलोड हुआ। अगले दिन मानसून सत्र शुरू होता था। तब सरकार सचेत हुई। महिला और बाल कल्याण मंत्री स्मृति इरानी ने मुख्यमंत्री को फोन किया। फिर आया प्रधानमंत्री का दु:ख भरा संदेश। एकदम से चार लोग पकड़ लिए गये, जिनमें एक मुख्य अपराधी बताया गया।