राजद्रोह कानून को खत्म करने की पहल

अंग्रेज़ों के ज़माने से चला आ रहा देशद्रोह या राजद्रोह कानून को समाप्त करने की पहल उचित है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मानसून सत्र के अंतिम दिन गुलामी के प्रतीक रहे तीन प्रमुख कानूनों में आमूलचूल बदलाव के विधेयक लोकसभा में पेश किए। इनमें परिवर्तन की प्रतीक्षा लम्बे समय से की जा रही थी, क्योंकि अंग्रेज़ी हुकूमत के समय वजूद में लाए गए ये कानून स्वतंत्रता सेनानियों को अधिकतम दंड देने की मानसिकता से बनाए गए थे। जबकि कोई भी विधि सम्मत प्रक्रिया दंड की अपेक्षा न्याय के सारोकारों से जुड़ी होनी चाहिए। शाह ने इन्हें संसद के पटल पर रखते हुए कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 15 अगस्त को लाल किले से किये संबोधन में पांच प्रण किए थे, इनमें एक प्रण गुलामी की निशानियों को खत्म करना था। ये प्रस्तावित विधेयक उसी परिप्रेक्ष्य में हैं। इन नए कानूनों के अंतर्गत दंड अपराध रोकने की भावना पैदा करने के लिए दिया जाएगा। ये नए कानून महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा पर केंद्रित हैं। 
पहली बार मॉब लीचिंग के लिए सात साल उम्र कैद या मौत की सज़ा का प्रावधान किया गया है। राजद्रोह कानून ब्रिटिश सत्ता को कायम रखने के लिए था, इसे अब खत्म किया जा रहा है।’ कुछ प्रचलित धाराओं की संख्या भी बदली गई है। जैसे धोखाधड़ी 420 धारा के अंतर्गत थी, इसे अब धारा 316 के रूप में जाना जाएगा। इसी तरह दुष्कर्म की धारा 376 को 63 में बदला जाएगा।
मुख्य रूप से अंग्रेज़ी शासन का पर्याय बने तीन मूलभूत कानूनों में आमूलचूल परिवर्तन किए गए हैं। 1860 में बने इंडियन पैनल कोड को अब भारतीय न्याय संहिता, 1898 में बने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और 1872 में बने इंडियन एविडेंस कोड को अब भारतीय साक्ष्य संहिता के नाम से जाना जाएगा। कुल 313 धाराएं बदली जाएंगी। इनमें चार धाराएं सबसे ज्यादा प्रभावी साबित होंगी। एक, राजद्रोह कानून से ‘राजद्रोह’ शब्द विलोपित कर दिया जाएगा। नए प्रारूप में धारा 150 के तहत आरोपी को सात साल की सज़ा से लेकर उम्र कैद तक की सज़ा दी जा सकती है। वर्तमान में आईपीसी की धारा 124-ए में राजद्रोह के आरोप में तीन साल से उम्र कैद तक की सज़ा का प्रावधान है। 
दो, मॉब लीचिंग यानी उन्मादी भीड़ द्वारा हत्या और हिंसा के लिए अलग से सज़ा का प्रावधान किया गया है। इसे पंथ निरपेक्ष रखा गया है क्योंकि कभी-कभी चोर को भी भीड़ मार देती है। झारखंड और अन्य कई अशिक्षित क्षेत्रों में महिलाओं को डायन बताकर समूह मार देता है। इन हत्याओं पर अब मॉब लीचिंग कानून लागू होगा। अभी तक ऐसे मामलों में हत्या की धारा 302 और दंगा या बलवा की धाराएं 147-148 के तहत कार्यवाही होती है। तीन, नाबालिग से दुष्कर्म या पहचान छिपाकर किए गए दुष्कर्म के आरोप में 20 साल का कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। विरोध नहीं करने के अर्थ का आशय सहमति नहीं निकाला जाएगा। मौजूदा स्थिति में नाबालिग से दष्कर्म पर न्यूनतम सज़ा में सात साल की व्यवस्था है। इसी तरह राज्यों को अब असली पहचान छिपाकर संबंध बनाने वाले अपराधियों के लिए लव जिहाद जैसा पृथक कानून बनाने की ज़रूरत नहीं है। प्रस्तावित कानून में गलत पहचान बताकर नौकरी, पदोन्नति और अन्य प्रलोभन दिलाने के झूठे वादे कर दुष्कर्म के अंजाम को सज़ा के दायरे में लाया गया है। लव जिहाद इसी के अंतर्गत आएगा। चैथा, देश में पहली बार छोटे-मोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा का क्रांतिकारी प्रावधान किया गया है।
सबसे बड़ा परिवर्तन 1860 में अस्तित्व में आए औपनिवेषिक कानून ‘राजद्रोह’ में किया गया है। इसके औचित्य पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। संसद में भी इस धारा के औचित्य पर कई बार प्रश्नचिन्ह खड़े किए गए हैं। लेकिन बदलाव के इस प्रस्ताव से पहले कोई भी सरकार ने इस कानून में परिवर्तन की हिम्मत नहीं जुटा पाई। संप्रग सरकार में जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, तब 2012 में राज्यसभा में प्रस्तुत एक निजी विधेयक में सांसद डी राजा ने कहा था कि ‘देश में चले स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों के दमन और उन पर अमानुषिक अत्याचार के लिए अंग्रेज़ हुकूमत ने 1860 में देशद्रोह का कानून बनाया था। इसे और कठोर 1870 में धारा 124-ए को दण्ड प्रक्रिया संहिता में शामिल कर लिया गया था। लिहाजा इस कानून में अब बदलाव की ज़रूरत है।’ लेकिन इस निजी विधेयक को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। यह सब जानते हुए भी तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने धारा 124-ए को आतंकवाद और सांप्रदायिक हिंसा जैसी देशद्रोही समस्याओं से निपटने के लिए आवश्यक और संविधान सम्मत बताया था। सरकार ने उस समय संसद में यह भी स्पष्ट किया था कि समुचित दायरे में रहकर सरकार की आलोचना करने पर कोई रोक नहीं है, लेकिन जब आपत्तिजनक तरीकों का सहारा लिया जाए, तब यह धारा प्रभावी हो सकती है। तब बहस में भाजपा समेत कई दलों के सांसदों ने मौजूदा सरकार के इस रुख का समर्थन किया था। इस धारा के आतंकवाद और उग्रवाद के परिप्रेक्ष्य में चले आ रहे महत्व के कारण ही इसे पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी नहीं हटा पाए थे जबकि वह इसे हटाए जाने के पक्ष में थे। 
धारा 124-ए के अंतर्गत लिखित या मौखिक शब्दों, चिन्हों प्रत्यक्ष या अप्रत्क्ष तौर से नफरत फैलाने या असंतोष ज़ाहिर करने पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया जा सकता है। इस धारा के तहत दोषी पर आरोप साबित हो जाए तो उसे तीन साल के कारावास तक की सज़ा हो सकती है। 
इन नए कानूनों को गृह संबंधी मामलों की संसदीय स्थाई समिति को जांच-परख के लिए भेजा गया है, जिससे ये कानून आमजन के लिए युक्तिसंगत तो रहें ही, भारत की अखंडता की सुरक्षा के लिहाज से भी इनकी तार्किकता पेश आती रहे। 
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