जाति आधारित जनगणना पर केंद्र ने मारी पलटी ? 

 

जाति आधारित गणना का मामला केंद्र सरकार के गले में हड्डी की तरह फंस गया है। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट में उसे एक ही दिन में दो हलफनामे दाखिल करना पड़े। पहले तो केंद्र सरकार ने एक हलफनामा देकर जनगणना कानून का हवाला दिया और कहा कि जनगणना या इससे मिलता-जुलता कोई भी काम करने का अधिकार सिर्फ  केंद्र सरकार को है यानी राज्य सरकार जनगणना नहीं करवा सकती है और न ही वह जनगणना से मिलता जुलता कोई काम करा सकती है। जिस दिन यानी 28 अगस्त को केंद्र ने यह हलफनामा दिया, उसी दिन देर शाम सरकार ने इसे वापस ले लिया। जो नया हलफनामा दिया गया, उसमें कहा गया कि जनगणना का काम सिर्फ  केंद्र सरकार कर सकती है। 
जनगणना से मिलते जुलते काम वाली बात उसमें से हटा ली गई। इसका मतलब है कि केंद्र ने बिहार में जाति गणना और सामाजिक-आर्थिक सर्वे का रास्ता साफ  कर दिया। सवाल है कि केंद्र ने ऐसा क्यों किया? दरअसल यह मामला वोट के लिहाज से बेहद संवेदनशील है। इसलिए केंद्र सरकार इस मामले में संशय बनाए रखना चाहती है। वह न तो इसके समर्थन में दिखना चाहती है और न विरोध में। इसलिए सरकार ने पहले जान-बूझकर बिहार की जाति गणना में अड़ंगा डालने वाला हलफनामा दायर किया और बाद में उसे वापस ले लिया। गौरतलब है कि भाजपा बिहार में जाति गणना का समर्थन कर रही है और उत्तर प्रदेश में विरोध कर रही है। केंद्र सरकार दोनों काम कर रही है।
किरण पटेल पर कौन मेहरबान है?
पिछले कुछ दिनों के दौरान एक के बाद एक ऐसे कई ठग और जालसाज पकड़े गए हैं जो खुद को प्रधानमंत्री कार्यालय या किसी केंद्रीय मंत्रालय का अधिकारी बता कर लोगों को ठगने का काम करते थे, परन्तु इन सब में किरण पटेल सबसे अलग था। उसने जम्मू-कश्मीर जाकर स्वयं को प्रधानमंत्री कार्यालय का एडिशनल डायरेक्टर बताया था और यह भी संकेत दिया कि उसे किसी बड़े मिशन में लगाया गया है। उसने अधिकारियों को बेवकूफ  बना कर ज़ैड श्रेणी की सुरक्षा भी हासिल कर ली थी। कई बार उसने सेना के मुख्यालय तथा सैन्य चौकियों का दौरा भी किया था और सैन्य अधिकारियों के साथ मीटिंग भी की थी। 
इस तरह उसने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा किया और किसी को पता नहीं कि उसकी वास्तविक मंशा क्या थी। इसीलिए उसके खिलाफ  ऐसी धाराओं में मुकद्दमे दर्ज हुए, जिनमें उम्र कैद तक की सज़ा होती है, लेकिन अचानक जम्मू-कश्मीर पुलिस ने धारा 467 हटा दी। इस धारा मेें उम्र कैद तक की सज़ा का प्रावधान है, जिसकी वजह से उसे पहली बार में ज़मानत नहीं मिली थी, लेकिन जैसे ही यह धारा हटाई गई उसके बाद उसके खिलाफ  केस कमज़ोर हो गया और उसे ज़मानत मिल गई। सवाल है कि ऐसा किस की मेहरबानी से हुआ? इसी से जुड़ा सवाल है कि देश क्या वाकई सुरक्षित हाथों में है? एक तरफ  लोग मामूली आरोप में जेल में सड़ रहे हैं तो दूसरी ओर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बना एक व्यक्ति, जिसने प्रधानमंत्री कार्यालय को बदनाम किया उसका केस कमज़ोर करके उसे ज़मानत दिलाई जा रही है। 
कम हो रही है मोदी की लोकप्रियता! 
सोशल मीडिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा की लोकप्रियता घट रही है। हाल की दो घटनाओं को लेकर कुछ लोगों ने स्वतंत्र रूप से आंकड़े जुटाए हैं, जिनके मुताबिक सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर भाजपा की पहुंच कम हो रही है और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की बढ़ रही है। इस तरह के अध्ययन प्रायोजित भी हो सकते हैं लेकिन कुछ आंकड़े ज़रूर सच के करीब हैं। जिन दो घटनाओं को लेकर इस तरह के आंकड़े आए हैं, उनमें से एक स्वतंत्रता दिवस के मौके पर शुरू किया गया अभियान है और दूसरा लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री का भाषण है। गौरतलब है कि स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री ने ‘मेरी मिट्टी-मेरा देश’ अभियान शुरू करने का ऐलान किया था। कहा गया था कि लोग एक मुट्ठी मिट्टी लेकर अपनी सेल्फी लें और उसे अपलोड करें। पिछले साल की तरह तिरंगे की सेल्फी अपलोड करने को भी कहा गया था और डीपी में तिरंगा लगाने की अपील भी की गई थी, लेकिन कहा जा रहा है कि पिछली बार के मुकाबले इस बार की अपील का असर आधे से भी कम रहा। इसी तरह अविश्वास प्रस्ताव पर हुई चर्चा में राहुल के भाषण को प्रधानमंत्री मोदी के भाषण से ज्यादा व्यूज मिले। पहले जब तक विपक्षी पार्टियों की ओर से सोशल मीडिया पर बहुत आक्रामक अभियान नहीं चलता था तब तक भाजपा को बढ़त थी लेकिन अब वह बढ़त कम हो रही है और मुकाबला बराबरी का हो रहा है।
अकाली दल और भाजपा
अकाली दल और भाजपा के बीच फिर से तालमेल की संभावना घटती जा रही है। भाजपा को लग रहा है कि अकाली दल का जनाधार अब बहुत कम हो गया है, इसलिए पुराने फार्मूले पर उसे ज्यादा सीटें देकर तालमेल नहीं किया जा सकता है। भाजपा को ऐसा इसलिए भी लग रहा है क्योंकि कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुनील जाखड़ कांग्रेस छोड़ कर भाजपा के साथ जुड़े हैं और भाजपा ने जाखड़ को प्रदेश की कमान सौंपी है। अकाली दल पुराने फार्मूले के हिसाब से ही भाजपा के लिए लोकसभा की चार से ज्यादा सीटें छोड़ने के लिए तैयार नहीं है जबकि भाजपा को कम से कम छह सीट चाहिए। अकाली दल को लग रहा है कि बहुजन समाज पार्टी के साथ उसका तालमेल फायदेमंद हो सकता है। अकाली नेता सुखबीर सिंह बादल इस बात पर नज़र रखे हुए हैं कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का तालमेल होता है या नहीं। अगर तालमेल होता है तो उन्हें मजबूरन भाजपा के साथ गठबंधन करना पड़ेगा, लेकिन तालमेल नहीं होता है और त्रिकोणात्मक या चारकोणीय मुकाबला होता है तो अकाली दल और बसपा के लिए मौका होगा। गौरतलब है कि पंजाब देश में सबसे ज्यादा दलित आबादी वाला प्रदेश है, जहां बसपा का साथ अकाली दल को कुछ सीटों पर बढ़त दिला सकता है, खास कर दोआबा के इलाके में।
भाजपा के प्रवक्ता
किसी भी राजनीतिक पार्टी में आमतौर पर प्रवक्ता ऐसे नेता को बनाया जाता है, जो लम्बे समय से पार्टी में रहा हो और पार्टी की रीति-नीति और विचारों को जानता हो। और लम्बे समय तक पार्टी में रहा हो, लेकिन भाजपा इसका उलटा कर रही है। वह दूसरी पार्टियों से तोड़ कर नेताओं को ला रही है तथा उन्हें तत्काल और कुछ नहीं तो प्रवक्ता बना रही है। इस सिलसिले में हाल ही में कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए अनिल एंटनी को पार्टी का राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया है। वह केरल के हैं और कांग्रेस के दिग्गज नेता ए.के. एंटनी के बेटे हैं। इससे कुछ दिन पहले ही भाजपा ने कांग्रेस के प्रवक्ता रहे जयवीर शेरगिल को अपना राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया। उससे पहले समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता रहे गौरव भाटिया को भी पार्टी का प्रवक्ता बनाया गया था और वे टेलीविजन चैनलों पर संबित पात्रा के साथ-साथ भाजपा की ओर से दिखने वाला सबसे चर्चित चेहरा हैं। बाहर से आए शहजाद पूनावाला को भी भाजपा ने प्रवक्ता बना दिया है। लम्बे समय तक कांग्रेस में रहे टॉम वडक्कन शिव सेना से आए प्रेम शुक्ल और आम आदमी पार्टी से आईं शाजिया इल्मी भी भाजपा की प्रवक्ता हैं।