महिला आरक्षण विधेयक : 27 साल करना पड़ा इंतज़ार

महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा में पारित होने के बाद राज्यसभा में भी पारित हो गया है। अब राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह कानून का रूप ले लेगा। जनगणना व हदबंदी के बाद यह लागू होगा। इससे पहले सन् 1996 के बाद से कई बार महिला आरक्षण विधेयक संसद के पटल पर रखा गया और हर बार इसे विरोध का ही सामना करना पड़ा। सन् 2019 के लोकसभा चुनाव से भी  दो साल पहले सन 2017 में कांग्रेस अध्यक्ष रहीं सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम महिला आरक्षण विधेयक को लेकर पत्र लिखा था। महिला आरक्षण बिल 2010 के राज्यसभा से पास होने के बाद भी लोकसभा में पेश नहीं हो सका था, इसी वजह से अभी तक यह महिला आरक्षण विधेयक अधर में लटका रहा था।
 महिला आरक्षण विधेयक का सिलसिला 12 सितम्बर सन 1996 से शुरू हो गया था। उस समय भी यह बिल संसद में गया था लेकिन विरोध के कारण यह विधेयक पास नहीं हो सका। इसके बाद सन् 1999, 2003, 2004 और 2009 में भी महिला आरक्षण बिल के पक्ष में माहौल नहीं बन सका। इस कारण यह विधेयक पास नहीं हो सका, लेकिन अब नई संसद में कदम रखते ही फिर महिला आरक्षण विधेयक उस समय चर्चाओं में आ गया जब इसे पुन: लोकसभा के पटल पर रखा गया। इस मुद्दे पर आखिरी बार कुछ सार्थक कदम सन् 2010 में उठाया गया था, जब राज्यसभा ने हंगामे के बीच बिल पास कर दिया था और मार्शलों ने कुछ सांसदों को बाहर कर दिया था जिन्होंने महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का विरोध किया था, हालांकि यह विधेयक रद्द हो गया क्योंकि यह बिल लोकसभा से पारित नहीं हो सका था। जब संसद के पटल पर पहली बार सन 1996 में महिला आरक्षण बिल रखा गया थाए उस समय में एचडी देवगौड़ा की सरकार थी। उक्त महिला आरक्षण बिल को विरोध का सामना करना पड़ा था।
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक पेश किया था। इस विधेयक में महिलाओं के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है। लोकसभा में भी अब महिलाओं के लिए 181 सीटें आरक्षित होंगी। महिलाओं को लोकसभा और अलग-अलग राज्यों की विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। यह कानून लागू हो जाने के बाद सदन में महिलाओं की संख्या कम से कम 33 प्रतिशत बढ़ जाएगी। महिला आरक्षण की अवधि 15 साल तक के लिए तय की गई है। भविष्य में इसकी अवधि बढ़ाने का अधिकार लोकसभा के पास होगा। नारी शक्ति वंदन अधिनियम बिल मंजूर हुआ तो लोकसभा और राज्यसभा के साथ राज्यों की विधानसभाओं की तस्वीर बदल जाएगी। अभी तक देश के आधे से अधिक राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत से भी कम है। देश के विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं में महिला विधायकों की संख्या भी बढ़ जाएगी जिससे देश की राजनीति भी बदलेगी।
अब तक देश की 19 राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी 10 प्रतिशत से भी कम है। महिलाओं की भागीदारी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 68 सदस्यों वाली हिमाचल प्रदेश की विधानसभा में सिर्फ  एक महिला विधायक है। पिछले 50 साल में हिमाचल से सिर्फ तीन महिलाएं लोकसभा सांसद बनी हैं। 30 सदस्यों वाली पुडुचेरी विधानसभा में भी सिर्फ  एक महिला विधायक है। उत्तराखंड की 70 सीटों वाली विधानसभा में कभी भी महिला विधायकों की संख्या आठ से अधिक नहीं हुई है। बड़े राज्यों में भी महिलाओं को उनकी आबादी के हिसाब से प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है।
33 प्रतिशत महिला आबादी को आरक्षण मिलने से उत्तर प्रदेश में  विधानसभा की 132 सीटों पर महिलाओं पर कब्ज़ा हो जाएगा। अभी तक 403 विधायकों वाली विधानसभा में सिर्फ  48 महिलाएं विधायक हैं। उत्तर प्रदेश से महिला आरक्षण लागू होने पर 26 महिलाएं लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर सकेगी। बिहार विधानसभा में 243 सीटें हैं और फिलहाल 26 महिला विधायकों की सदन में मौजूदगी है। महिला आरक्षण विधेयक पारित होते ही 80 सीटों पर महिलाओं की दावेदारी होगी जबकि लोकसभा में 13 महिलाएं बिहार से चुनी जाएंगी। मध्य प्रदेश की 230 सदस्यों वाली विधानसभा में भी 76 महिला विधायक चुनी जाएंगी। मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटें हैं, इस दृष्टि से 10 सीटों पर महिलाओं का कब्जा होगा। 288 विधानसभा सीटों वाले महाराष्ट्र में सिर्फ  23 महिला विधायक हैं। 48 लोकसभा सीटों में 8 पर महिलाओं को सन् 2019 में जीत मिली थी। नारी शक्ति वंदन अधिनियम बिल-2023 पारित हो गया है तो अब विधानसभा में 96 और लोकसभा में 16 महिलाएं महाराष्ट्र से चुनी जाएंगी।
इसी तरह राजस्थान की 203 सदस्यों वाली विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या 27 है, जबकि 3 महिलाएं ही लोकसभा में राज्य से चुनी गई हैं। राजस्थान में लोकसभा की 25 सीटें हैं। महिला आरक्षण कानून बनने के बाद राज्य से 8 महिला सांसद चुनी जाएंगी और विधानसभा में भी 66 महिला सदस्य चुनी जाएंगी। अभी तक दिल्ली विधानसभा में सिर्फ  8 महिलाएं हैं, जबकि कुल सीटों की संख्या 70 है। महिला आरक्षण बिल पास होने पर  दिल्ली में 23  महिलाएं विधायक होंगी व 3 महिलाएं सांसद चुनी जाएंगी। 117 विधायकों वाले पंजाब में भी 39 सीटों पर महिलाओं का कब्जा होगा। 2022 में हुए चुनाव में पंजाब विधानसभा में सिर्फ  13 महिलाओं को जीत मिली थी। 2022 के चुनाव में पंजाब के सभी राजनीतिक दलों ने मिलाकर 93 महिलाओं को टिकट दिया था जिनमें से 13 महिलाएं ही जीत पाईं। (अदिति)