लोकसभा चुनाव के निकट पंजाब कांग्रेस की फूट कौन-से रंग दिखाएगी ?

दुश्मनी जम कर करो मगर ये गुंजाइश रहे,
जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों।
पंजाब कांग्रेस में फूट इस समय शिखर पर है। पंजाब कांग्रेस कुछ के नेता प्रसिद्ध शायर बशीर बद्र की इस नेक सलाह को दृष्टिविगत करते हुए एक ही पार्टी में रहते हुए भी एक-दूसरे के खिलाफ ऐसे शब्द एवं वाक्य इस्तेमाल कर रहे हैं, जिनसे यह निश्चित है कि यदि कांग्रेस हाईकमान इनमें समझौता करवाने में सफल रही, तो भी जब यह दोबारा एक-दूसरे के गले लगेंगे तो भीतर से शर्मिंदा हुए बिना नहीं रह सकेंगे। वैसे कांग्रेस को 2022 के विधानसभा चुनावों में भी नेताओं की यह फूट ही ले बैठी थी। यदि अब भी कांग्रेस हाईकामन इस फूट को नियंत्रित करने में विफल रही तो इसका खमियाज़ा उसे लोकसभा चुनाव में भी भुगतना पड़ेगा। वास्तव में जब पंजाब के कांग्रेसी नेताओं को ये संकेत मिले कि पंजाब कांग्रेस का प्रभारी एवं अध्यक्ष दोनों बदले जा सकते हैं, तो सबसे पहले नवजोत सिंह सिद्धू सक्रिय हुए और वह अपनी ताकत का प्रदर्शन करने लगे। दूसरी ओर विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा तथा सिद्धू के अन्य विरोधी भी सक्रिय हो गए कि कहीं कांग्रेस हाईकमान सिद्धू को पुन: पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष न बना दे। पहले बाजवा और  सिद्धू के बीच इशारों-इशारों में तल्ख-कलामी शुरू हुई। इस बीच पंजाब कांग्रेस प्रभारी तो बदल गया और ये संकेत भी दे दिए गए कि पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष 2024 के लोकसभा चुनावों तक नहीं बदला जाएगा। नवजोत सिंह सिद्धू चाहे यह दावा करते हैं कि वह पंजाब एजेंडे की बात करते हैं, परन्तु उनका प्रत्येक कदम और प्रत्येक टिप्पणी पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष को अप्रत्यक्ष रूप में कमज़ोर करने तथा साथ ही यह दोष लगाने की ओर केन्द्रित है कि वह सत्तारूढ़ पार्टी से गुप्त समझौता करके चल रहे हैं। 
जब सिद्धू ने इशारों में राजा वड़िंग को कमज़ोर कहा तो जवाब में राजा वड़िंग ने कहा कि किसी को कमज़ोर न समझें। कभी-कभी कमज़ोर भी ऐसा टीका लगाता है कि व्यक्ति ढूंढें से भी नहीं मिलता। इसके जवाब में आज ही नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब कांग्रेस के नये प्रभारी दविन्द्र यादव को मिलने जाने से पहले एक वीडियो टिप्पणी कर दी और कहा—
कौड़ी-कौड़ी बिके हुए लोग,
समझौता कर घुटनों पे टिके हुए लोग।
अरे ‘बरगद’ की बात करते हैं,
़गमलों में उगे हुए लोग।
नवजोत सिंह सिद्धू का यह शे’अर चाहे ़गज़ल लिखने के विधि-विधान  ‘इल्म-ए-अरूज़’ से कोसों दूर है, परन्तु इसमें व्यंग्य किसी गाली से भी तीखा है। 
इसके बाद पंजाब कांग्रेस के प्रभारी दविन्द्र यादव से मुलाकात के बाद जब नवजोत सिंह सिद्धू बाहर आए तो चाहे उनका रवैया अभी भी सख्त ही दिखाई दे रहा था, परन्तु उनके शब्दों के अर्थ एक्स और वीडियो ट्वीट से अलग तरह के थे। उन्होंने कहा कि जो रैलियां पंजाब कांग्रेस के नये प्रभारी बनने के पहले रखी हुई थीं, उन्हें वह अवश्य करेंगे, परन्तु साथ ही उन्होंने कहा कि अध्यक्ष (राजा वड़िंग) तथा प्रभारी (दविन्द्र यादव) ने भी कहा है कि लोगों में जाने पर कोई आपत्ति नहीं अर्थात वह राजा वड़िंग को अध्यक्ष मान रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हाईकमान के आदेश को मानना हमारा धर्म है। उन्होंने अपने पंजाब एजेंडे की बात करते हुए कहा कि पंजाब के लोगों को बताना होगा कि हमने पंजाब के लिए क्या करना है। उन्होंने कहा कि संवाद की ज़रूरत है। सिद्धू की इन टिप्पणियों से एक और ज़बरदस्त संकेत भी मिलता है, जो बहुत गहरे अर्थ रखता है और दिलचस्प भी है। इस अवसर पर सिद्धू ने 25 वर्षों की लूट की बात करते हुए प्रकाश सिंह बादल तथा कैप्टन अमरेन्द्र सिंह नाम तो लिया, परन्तु ‘आप’ के किसी नेता का नाम नहीं लिया जो उनके ‘आप’ के प्रति नर्म होते व्यवहार का संकेत है और इसके वास्तविक राजनीतिक संकेत तो आगामी दिनों में ही स्पष्ट हो सकेंगे। हम समझते हैं कि दविन्द्र यादव ने सिद्धू को साफ-साफ समझा दिया है कि आप प्रस्तावित रैलियां तो करें, परन्तु पंजाब कांग्रेस तथा हाईकमान से तालमेल करके। अब मोगा तथा करतारपुर साहिब में सिद्धू के दौरों में जो कुछ भी होगा, उससे पंजाब कांग्रेस की फूट को समाप्त होने या बढ़ने का फैसला हो जाएगा।
इस बीच 26 दिसम्बर को पंजाब के कांग्रेसी नेताओं की राहुल गांधी से हुई बैठक की कुछ बातों का ज़िक्र करना भी ज़रूरी है। इस बैठक में पंजाब कांग्रेस के 90 प्रतिशत नेता ‘आप’ के साथ समझौते के खिलाफ बोले जबकि सिद्धू ने समझौते के पक्ष में स्टैंड लिया। समझौते के विरोध में स्टैंड लेने वाले बहुत-से नेता अंत में यह भी कहते रहे कि बाकी हाईकमान जो फैसला करेगा, वह स्वीकार होगा, परन्तु बातचीत के अंत में बोलने वाले प्रताप सिंह बाजवा का स्टैंड ‘आप’ से समझौता करने के सख्त विरुद्ध था जबकि पंजाब कांग्रेस के कार्यकारी भारत भूषण आशू ने तो राहुल गांधी के समक्ष यह कह कर सनसनी पैदा कर दी कि हमें हाईकमान का ‘आप’ से समझौता स्वीकार नहीं होगा। हमारे लिए आत्म-सम्मान सबसे ऊपर है। हमें चोर कहने तथा जेलों में भेजने वाली ‘आप’ के साथ हम कोई समझौता नहीं मानेंगे, परन्तु पंजाब कांग्रेस के नेताओं में चल रही तकरार खत्म होती है या नहीं, इससे ही कांग्रेस के पंजाब बारे भविष्य का कोई फैसला होगा। वैसे ब़ेखुद देहलवी के शब्द कांग्रेस नेताओं के मान लेने चाहिएं—
भूले से कहा मान भी लेते हैं किसी का,
हर बात में तकरार की आदत नहीं अच्छी।  
राम मंदिर तथा शिरोमणि कमेटी 
श्री राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्रा ट्रस्ट द्वारा राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने के लिए श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह तथा शिरोमणि कमेटी के प्रधान एडवोकेट हरजिन्दर सिंह धामी को भी निमंत्रण-पत्र मिले हैं। श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार को यह निमंत्रण-पत्र राष्ट्रीय सिख संगत के महासचिव संदीप सिंह के माध्यम से भेजा गया है। शेष तख्त साहिबान के जत्थेदारों को भी निमंत्रण-पत्र भेजे जा रहे हैं। हमारे लिए हैरानी की बात यह है कि लगभग दो वर्ष बाद राष्ट्रीय सिख संगत अचानक पुन: सक्रिय हो गई है। हमारी जानकारी के अनुसार आर.एस.एस. प्रमुख मोहन भागवत को कुछ सिख दानिशवर मिले थे, जिनके साथ विचार-विमर्श करने के बाद राष्ट्रीय सिख संगत को ‘धीरे चलो’ का संदेश दिया गया था। उसके बाद ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह तथा भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा सिखों से प्रत्यक्ष सम्पर्क बनाने लग पड़े थे। उल्लेखनीय है कि गत दो वर्षों के भाजपा या भाजपा सरकार द्वारा सिखों संबंधी किए गये बड़े-बड़े समारोहों तथा कार्यक्रमों में राष्ट्रीय सिख संगत कहीं भी सक्रिय भूमिका में नज़र नहीं आई, परन्तु अब अचानक इस नीति में क्या परिवर्तन आया है, इसे समझने में अभी समय लगेगा। वैसे भी हैरानी की बात है कि राम मंदिर समारोह का निमंत्रण-पत्र श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार को देने के लिए राष्ट्रीय सिख संगत के प्रतिनिधि को किस हैसियत से भेजा गया?
इस बीच पता चला है कि शिरोमणि कमेटी इस कार्यक्रम के निमंत्रण-पत्रों के देखते हुए इस कार्यक्रम में शामिल होने बारे गम्भीरता से विचार कर रही है। हमारी जानकारी के अनुसार प्रधान शिरोमणि कमेटी इस बारे जत्थेदार श्री अकाल तख्त साहिब से विचार-विमर्श करेंगे तथा हो सकता है कि जत्थेदार पांच सिंह साहिबान से भी विचार-विमर्श करें। इस बीच यह भी पता चला है कि इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए लगभग 100 प्रमुख व्यक्तियों को निजी निमंत्रण-पत्र भी भेजे गये हैं, जिनमें कुछ सिख भी हैं। इनमें अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन इकबाल सिंह लालपुरा तथा पूर्व चेयरमैन तरलोचन सिंह का नाम सामने आया है, परन्तु पता चला है कि कुछ अन्यों को भी निमंत्रण-पत्र भेजे जा रहे हैं।   
भाजपा के लिए बड़ी हार तथा बड़े सवाल
राजस्थान में अभी-अभी हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा की बड़ी जीत के बाद हुए पहले उप-चुनाव में भाजपा को पंजाब से सटे श्री गंगानगर ज़िले के श्री कर्णपुर विधानसभा के उप-चुनाव में बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। यह हार इसलिए और भी बड़ी हो गई क्योंकि सिख प्रभाव वाले इस क्षेत्र में भाजपा में शामिल सिख नेता भी भाजपा के लिए पूरा ज़ोर लगाते रहे और भाजपा ने अपने उम्मीदवार सुरिन्द्रपाल सिंह टी.टी. को जिताने के लिए  परम्परा के विपरीत जाकर बिना कोई परवाह किये चुनाव अभियान के बीच ही मंत्री भी बना दिया। भाजपा ने यह ब्रह्मास्त्र टी.टी. को जिताने के लिए चलाया ताकि क्षेत्र के लोगों को लगे कि यदि भाजपा जीतेगी तो मंत्री हमारा होगा, परन्तु हुआ यह कि कांग्रेस उम्मीदवार रुपिन्द्र सिंह कूनर जो स्वर्गीय कांग्रेसी विधायक गुरमीत सिंह कूनर के बेटे हैं, 11000 से अधिक वोटों के अंतर से जीत गये जबकि कांग्रेस के विपक्ष में होने के कारण उनके मंत्री बनने का सवाल भी उत्पन्न नहीं होता। उल्लेखनीय है कि श्री कर्णपुर पंजाब से लगभग 90 किलोमीटर ही दूर है। यहां लगभग 12 प्रतिशत सिख वोट भी हैं। दोनों उम्मीदवार सिख घरानों के ही थे। अत: भाजपा की यह हार भाजपा के लिए बड़े सवाल खड़े कर गई है कि क्या सिख तथा किसान अभी भी भाजपा के साथ नहीं आये? क्या यह हार भाजपा के लिए संकेत है कि विधानसभा चुनाव जीतने एवं सरकार बना लेने के बावजूद 2024 के लोकसभा चुनावों में राजस्थान में ‘इंडिया’ गठबंधन से मुकाबला बहुत आसान नहीं होगा? 
सुबाह-ए-विसाल पूछ रही है अजब सवाल,
वो पास आ गया कि बहुत दूर हो गया।
(बशीर बद्र)
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