कटघरे में केजरीवाल

आम आदमी पार्टी के संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की ई.डी. द्वारा गिरफ्तारी के बाद दिल्ली की एक अदालत की ओर से उनको 28 मार्च तक रिमांड पर भेजने के घटनाक्रम ने जहां देश के राजनीतिक मंच पर एक तरह से भूकम्प ला दिया है, वहीं इसने कई सवाल भी खड़े किए हैं। आम लोग एवं राजनीतिज्ञ अपने-अपने ढंग-तरीके से प्रतिक्रिया दे रहे हैं। इस घटनाक्रम के प्रति सामने आये तथ्यों से यह ज़रूर पता चलता है कि केजरीवाल स्वयं को गिरफ्तारी से बचाने के लिए अनेक ही ढंग-तरीकों से पिछले काफी समय से यत्न करते आ रहे थे। गिरफ्तारी से पहले लम्बे समय से इन्फोर्समैन्ट डायरैक्टोरेट द्वारा उन्हें पेश होने के लिए लिखित रूप में कहा जाता रहा था। इन समनों के प्रति वह अपने जज स्वयं ही बन गये थे तथा बयानों के रूप में फैसले सुनाते रहे थे। ई.डी. द्वारा उन्हें शराब मामले में 2 नवम्बर, 2023 को पेश होने के लिए पहला समन भेजा गया था, उसके बाद लगातार उन्हें 9 समन भेजे गये परन्तु इनके जवाब में वह स्वयं ही फैसला सुनाते रहे। दिल्ली के आम आदमी पार्टी के नेताओं के विरुद्ध यह मामला केजरीवाल सरकार द्वारा 17 नवम्बर, 2021 में वर्ष 2021-22 के लिए लागू की गई आबकारी नीति की घोषणा के साथ शुरू हुआ था। 
इसकी घोषणा के साथ ही इस संबंध में कई तरह की चर्चा शुरू हो गई तथा बाद में इस नीति में पाई गईं अनियमितताओं की परतें खुलनी शुरू हो गई थीं। व्यापक स्तर पर इसकी सामने आईं त्रुटियों के कारण जुलाई, 2022 को दिल्ली के उप-राज्यपाल वी.के. सक्सेना ने सी.बी.आई. को इस संबंध में जांच करने संबंधी लिख दिया, लगातार पुख्ता साक्ष्य सामने आने के बाद इस एजेन्सी ने 15 व्यक्तियों पर मामला दर्ज किया, जिनमें दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी शामिल थे। खुलती इन परतों में हवाला द्वारा प्राप्त की गई राशियां भी सामने आईं। ऐसी आलोचना के सामने सरकार ने यह नीति खत्म करके उससे पहले वर्ष वाली 2020-21 की नीति ही लागू करने की घोषणा तो कर दी परन्तु उस समय तक कमान से तीर निकल चुका था।  सामने आये साक्ष्यों के आधार पर जांच एजेन्सी द्वारा मनीष सिसोदिया को 26 फरवरी, 2023 को गिरफ्तार कर लिया गया था। सिसोदिया ने इस संबंधी अदालतों का सहारा लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय में सम्पर्क किया था परन्तु पुख्ता साक्ष्यों के कारण उन्हें अब तक ज़मानत नहीं मिल सकी। इस मामले में आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह को भी पिछले वर्ष 4 अक्तूबर को गिरफ्तार किया गया था। लगातार यत्न करने के बाद उन्हें भी किसी अदालत से राहत नहीं मिल सकी। इसी सिलसिले में के. कविता जो कि तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव की बेटी हैं, को भी गिरफ्तार किया जा चुका है।
सौ करोड़ के इस घोटाले में आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता विजय नायर को सबसे पहले गिरफ्तार किया गया था, उसके बाद दक्षिण के शराब कारोबारियों के ग्रुप से संबंधित कई अन्य व्यक्तियों को भी गिरफ्तार किया जा चुका है। दर्जन से अधिक गिरफ्तार हुए इन व्यक्तियों में कई तो वायदा माफ गवाह बन गये हैं। इस नीति अधीन थोक शराब की कमिशन में भारी वृद्धि करके इस ग्रुप को एक तरह से ज्यादातर ठेके दे दिये गये थे। इस संबंध में आरोप हैं कि आम आदमी पार्टी ने दक्षिण के शराब कारोबारियों से पैसा लेकर इसे गोवा एवं पंजाब के चुनावों के साथ-साथ अन्य स्थानों पर भी खर्च किया। 10 वर्ष पहले बनी इस पार्टी का मुख्य लक्ष्य देश में से भ्रष्टाचार को खत्म करके लोगों को वैकल्पिक  साफ-स्वच्छ राजनीति देना था, परन्तु समय की सितमज़रीफी देखें कि पहले दिल्ली में एवं फिर पंजाब में इसकी बनी सरकारें भ्रष्टाचार के मामले में ही बेहद बदनाम हो चुकी हैं।
शुरू में ही इस नई बनी पार्टी के ज्यादातर वरिष्ठ नेता केजरीवाल की कार्यशैली को देखकर पार्टी छोड़ गये थे। धीरे-धीरे यह कतार लम्बी होती गई। पिछले लम्बे समय से इस ‘ईमानदार’ पार्टी का जिस तरह का दृष्टिकोण सामने आया है, वह बेहद निराशाजनक है। आज चाहे भाजपा के विरोध में खड़ीं ज्यादातर पार्टियों के नेता इस मामले पर केन्द्र सरकार के तानाशाही व्यवहार की आलोचना कर रहे हैं परन्तु इस संबंध में लगातार सामने आ रहे तथ्यों को झुठलाया जाना मुश्किल है। इस संबंध में हम मोदी सरकार को भी इसलिए साफ-स्वच्छ नहीं समझते, क्योंकि उनकी ओर से हर ढंग-तरीके से अपने राजनीतिक विरोधियों पर शिकंजा कसा जा रहा है। इन विरोधियों में से जो भी भाजपा या उसकी सरकार का दम भरने लगते हैं, वे भ्रष्टाचारी होने से बाहर निकल कर पाक-साफ हो जाते हैं।
नि:संदेह ऐसी नीतियों ने देश के लोकतांत्रिक ढांचे को बुरी तरह से हिला कर रख दिया है, परन्तु इसके बावजूद केजरीवाल एवं उनके साथियों के दामन पर लगे भ्रष्टाचार के बड़े द़ागों को धोया नहीं जा सकता।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द