भारतीय संस्कृति की परिचायक है होली

भारतीय संस्कृति में त्योहारों एवं उत्सवों का आदि काल से ही काफी महत्व रहा है। हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां पर मनाये जाने वाले सभी त्योहार समाज में मानवीय गुणों को स्थापित करके, लोगों में प्रेम, एकता एवं सद्भावना को बढ़ाते हैं। भारत में त्योहारों एवं उत्सवों का सम्बन्ध किसी जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र से न होकर समभाव से है। यहां मनाये जाने वाले सभी त्योहारों के पीछे की भावना मानवीय गरिमा को समृद्धता प्रदान करना होता है। यही कारण है कि भारत में मनाये जाने वाले सभी प्रमुख त्योहारों एवं उत्सवों को सभी धर्मों के लोग आदर के साथ मिलजुल कर मनाते हैं। होली भारतीय समाज का एक प्रमुख त्योहार है, जिसका लोग बेसब्री के साथ इंतजार करते हैं। 
होली को लेकर देश के विभिन्न अंचलों में अनेक मान्यतायें हैं और शायद यही विविधता में एकता, भारतीय संस्कृति का परिचायक भी है। उत्तर पूर्व भारत में होलिका दहन को भगवान कृष्ण द्वारा राक्षसी पूतना के वध दिवस के रुप में जोड़कर, पूतना दहन के रूप में मनाया जाता है दक्षिण भारत में मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने कामदेव को तीसरा नेत्र खोल भस्म कर दिया था। तत्पश्चात् कामदेव की पत्नी रति के दु:ख से द्रवित होकर भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया, जिससे प्रसन्न होकर देवताओं ने रंगों की वर्षा की। इसी कारण होली की पूर्व संध्या पर दक्षिण भारत में अग्नि प्रज्जवलित कर उसमें गन्ना, आम की बौर और चन्दन डाला जाता है। यहां गन्ना कामदेव के धनुष, आम की बौर कामदेव के बाण, प्रज्जवलित अग्नि शिव द्वारा कामदेव का दहन एवं चन्दन की आहुति कामदेव को आग से हुई जलन हेतु शांत करने का प्रतीक है। 
समाज की समस्त बुराइयों का अंत
होली भारत के सबसे पुराने पर्वों में से एक है। होली की हर कथा में एक समानता है कि उसमें ‘असत्य पर सत्य की विजय’ और ‘दुराचार पर सदाचार की विजय’ का उत्सव मनाने की बात कही गई है। इस प्रकार होली मुख्यत: आनंदोल्लास तथा भाई-चारे का त्योहार भी है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता व दुश्मनी को भूल कर एक-दूसरे के गले मिलते हैं और फिर दोस्त बन जाते हैं। राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व बसंत का संदेशवाहक भी है। किसी कवि ने होली के सम्बन्ध में कहा है कि नफरतों के जल जाएं सब अंबार होली में। गिर जाये मतभेद की हर दीवार होली में।। बिछुड़ गये जो बरसों से प्राण से अधिक प्यारे, गले मिलने आ जाऐं वे इस बार होली में।
प्रभु के प्रति अटूट भक्ति
मान्यता है कि प्राचीन काल में हिरण्य कश्यप नाम का एक अत्यंत बलशाली एवं घमण्डी राक्षस राज अपने को ही ईश्वर मानने लगा था। हिरण्यकश्यप ने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्य कश्यप का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर का परम भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से कुद्ध होकर हिरण्य कश्यप ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु भक्त प्रह्लाद ने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्य कश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्य कश्यप के आदेश पर होलिका प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से उसे अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई, किन्तु आश्चर्य, कि आग में बैठने पर होलिका तो जल गई परंतु ईश्वर भक्त प्रह्लाद बच गये। इस प्रकार होलिका के विनाश तथा भक्त प्रह्लाद की प्रभु के प्रति अटूट भक्ति एवं निष्ठा के प्रसंग की याद दिलाता है यह महान पर्व। 
सभी धर्मों के लोग मनाते हैं ‘होलिकोत्सव’
होली जैसे पवित्र त्योहार के सम्बन्ध में सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक अलबरूनी ने अपने ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में भी वर्णन किया है। भारत के अनेक मुस्लिम कवियों ने अपनी रचनाओं में इस बात का उल्लेख किया है कि होलिकोत्सव केवल हिंदू ही नहीं अपितु मुसलमान लोग भी मनाते हैं। इसके सबसे प्रामाणिक इतिहास की तस्वीरेें मुगल काल की हैं और इस काल में होली के किस्से उत्सुकता जगाने वाले हैं। इन तस्वीरों में अकबर को जोधा बाई के साथ तथा जहाँगीर को नूरजहां के साथ होली खेलते हुए दिखाया गया है। शाहजहाँ के समय तक होली खेलने का मुगलिया अंदाज ही बदल गया था। इतिहास में वर्णन है कि शाहजहाँ के जमाने में होली को ‘ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी’ (रंगों की बौछार) कहा जाता था। अंतिम मुगल बादशाह शाह जफर के बारे में भी प्रसिद्ध है कि होली पर उनके मंत्री उन्हें रंग लगाया करते थे। (सुमन सागर)