हमला किये बिना भारत को आर्थिक नुकसान पहुंचा रहे हूती 

सरकार ने अदन की खाड़ी में सुरक्षा व्यवस्था को वाकई काफी चाक-चौबंद कर दिया है। इसका असर भी दिख रहा है। विगत कई हफ्तों से हूती हमलावरों ने भारतीय व्यापारिक जहाज़ों को नहीं छेड़ा है। मगर यमन से अपनी कारगुजारी को अंजाम देने वाले अल्पसंख्यक शिया जैदी समुदाय का यह हथियारबंद चरमपंथी गुट ‘हूती’ भारत जहाज़ों पर हमले किए बिना भी हमें नुकसान पहुंचा रहा है। देश छोटे निर्यातकों को बर्बादी की कगार पर धकेल रहा है। कर्मचारियों की नौकरियां खा रहा हैं और निकट भविष्य में कुछ वस्तुओं के दामों में अतिरिक्त उछाल की आशंका बढा रहा है।
सरकार ने सुरक्षा बंदोबस्त के अलावा वैदेशिक ताने-बाने को भी पुख्ता किया है, लेकिन हम उन  स्थितियों या महौल का क्या करें जो दूसरों द्वारा निर्मित हैं। भारतीय जहाज़ों के लिये किंचित निरापद स्थिति होने के बावजूद भारतीय व्यापारिक जहाज़ अभी भी अदन की खाड़ी को लाल सागर से जोड़ने वाले बाब अल मंदेब जलसंधि के तथा स्वेज नहर से गुजरने में कोताही बरत रहे हैं। हूती विद्रोहियों ने अब तक अपने 100 से अधिक हवाई हमलों में 35 से अधिक देशों के कारोबारी जहाज़ों को निशाना बनाया है। 
एक जहाज़ एमवी गैलेक्सी लीडर तो आजकल समुद्री पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है, क्योंकि इसके 25 सदस्य हूतियों के पास बंधक हैं। जबसे अमरीका के बनाए बहुराष्ट्रीय टास्क फोर्स ऑपरेशन प्रोस्परिटी गार्डियन जिसमें बहरीन, कनाडा, फ्रांस, इटली, नीदरलैंड, नॉर्वे, सेशेल्स, स्पेन और ब्रिटेन शामिल हैं तथा भारत के अलावा कुछ और होने वाले हैं, उसके मुखिया ने चेताया है कि हूती विद्रोहियों को अल कायदा, इस्लामिक स्टेट और दूसरे जिहादी गुटों का समर्थन प्राप्त है। वे ईरानी मिसाइलों के दम पर लाल सागर में मज़बूत हैं, जहाज़ के कप्तानों के अनुसार इन्हीं वजहों से ये हमले जल्दी नहीं रुकेंगे, बड़ा अभियान चलाना होगा जिसमें कुछ महीने लग सकते हैं।  
इस चेतावनी के बाद से तमाम देशों के मालवाही जहाज़ों के संचालक भयभीत हैं और कुछ देश फोर्स ऑपरेशन प्रोस्परिटी गार्डियन में शामिल होने की हामी भरने के बावजूद उससे जुड़े नहीं। ज़ाहिर है कि तमाम देशों के लिये खतरा अभी बना हुआ है। यूनाइटेड नेशन कॉन्फ्रैंस ऑन ट्रेड एंड डिवेल्पमेंट कहता है कि स्वेज नहर में कामर्शियल जहाजों की अवाजाही में 40 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आयी है और माल ढुलाई लगभग आधी रह गई है। इकोनॉमिक थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव की रिपोर्ट में भी इस बाबत चिंता जताई गई है कि ऐसा चलता रहा तो कुछ देशों के लिए नतीजे बहुत बुरे होंगे। अब इस स्थिति के देर तक खिंचने की बात तय हो चुकी है तो बुरे नतीजों की आहटें भी सुनाई दे रही हैं। दुनिया के समुद्री व्यापार के 15 प्रतिशत की आवाजाही वाले स्वेज नहर और निचले लाल सागर के रास्ते में यमन के हूतियों के हमले बढ़ने की खबरों के बीच यहां तमिलनाडु के तिरुपुर में अधिकतर की नौकरियां चली गई हैं। इसके पीछे वजह यह है कि इस बनियान सिटी के बहुत-से लोगों की हूतियों के आतंक के कारण नौकरी चली गयी है, क्योंकि यहां स्थित कई कपड़ा निर्यातक इकाइयों को अपनी यूनिट बंद करनी पड़ी है। ऐसा इसलिए हुआ है, क्योंकि जिन जहाज़ों से इनका सामान जाता था, उनमें से अधिकांश लाल सागर से हो के जाते थे, लेकिन हूतियों के हमले के कारण आजकल इनमें से ज्यादातर को  अपना रास्ता बदलकर स्वेज नहर से दूर अफ्रीका के दक्षिणी छोर पर केप ऑफ  गुड होप से हो कर जाना पड़ रहा है।
इस कारण इनके परिवहन खर्च में दो से अढ़ाई गुना का खर्च बढ़ जाता है और ज्यादातर इकाईयां इस बढ़े हुए मालभाड़े को बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं हैं। इसके साथ ही केप ऑफ  गुड होप से घूम कर जाना मतलब भारतीय जहाज़ों को यूरोप में अपने ठिकानों पर पहुंचने के लिए 15-20 दिन अधिक लगना। इस कारण अगर एक कंटेनर को ब्रिटेन भेजने में  50 हज़ार रुपये लगता थे तो अब यह लागत बढ़ कर तीन लाख से भी ज्यादा हो गयी है। ऐसे में  तीन से सात प्रतिशत के मामूली मुनाफे पर काम कर रहे छोटे निर्यातकों के लिए यह लागत बहुत भारी है। इसका नतीजा यह निकला है कि बहुत-सी इकाइयों ने फिलहाल अपना काम स्थगित कर दिया है और कर्मचारियों की छुट्टी कर दी है। संकट यह भी है कि इस समस्या का हल निकालने में देरी हुई तो भारतीय कंपनियों की जगह तुर्किये के  निर्यातक ले लेंगे उन्हें वरीयता मिलने भी लगी है। 
भारत साल में 3,735 अरब रुपये मूल्य के उत्पादों का निर्यात करता है और इसमें से 40 प्रतिशत हिस्सा छोटे निर्यातकों का ही है। निर्यातक सांसत में रहा तो देश के निर्यात में 30 अरब डॉलर तक की गिरावट आ सकती है। सरकार ने प्रभावित छोटे निर्यातकों की मदद नहीं की तो उनमें से कईयों को धंधा बदलना होगा। इस बीच उन्होंने चेतावनी दी है कि हालात नहीं संभले तो और नौकरियां जा सकती हैं। तो ड्रोन, टोही विमान भेजने और राडार की पकड़ में न आ सकने वाले आइएनएस कोच्ची और आईनएस कोलकाता जैसे युद्धपोतों, मिसाइलों, जहाज़ों की समुद्री सुरक्षा में तैनाती, बेशक एक बेहतर कदम है।  रूस व ईरान से रिश्ते बेहतर बनाए रखना और अमरीका द्वारा हूतियों के विरुद्ध चलाए जा रहे अभियानों से अपने को अलग करने की नीति भी बढिया है, लेकिन इससे अलग वैश्विक सप्लाई चेन के बाधित होने से देश के छोटे निर्यातकों को जिन विषम स्थितियों से जूझना पड़ रहा है, उस पर भी अलग से ध्यान देने की ज़रूरत है। यूरोप और अमरीका के साथ भारत के मर्चेंडाइज व्यापार का 80 प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्सा सामान्य रूप से लाल सागर से होकर गुज़रता है। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर