दुबई में ‘क्लाउड सीडिंग’ से करवाई बारिश ने मचाया कहर

कुछ दिन पहले दुबई से मेरे एक दोस्त ने व्हाट्सएप्प पर एक वीडियो भेजा, जिसमें दिखाया गया था कि भयंकर बारिश के बाद आसमान हरा हो गया था, दुबई की सड़कों पर पानी इतना भर गया था कि कारें तैर रही थीं और लोगों को एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए नावों का इस्तेमाल करना पड़ रहा था। बाढ़ की सी स्थिति थी। मुझे वीडियो पर विश्वास न हुआ। लगा कि शायद एआई जनरेटिड होगा। दुबई जैसे रेगिस्तानी इलाके में जहां लोग बारिश की मामूली बूंदें देखने को तरस जाते हैं वहां सैलाब की उम्मीद कौन कर सकता था। वैसे भी दुबई व अरब के अन्य शेख बारिश देखने के लिए अक्सर मुंबई का सफर करते हैं। लेकिन जब ओमान, बहरीन, सऊदी अरब आदि से भी मेरे मोबाइल पर ऐसे ही वीडियो आने लगे तो मेरा माथा ठनका। 19 अप्रैल, 2024 को वास्तव में दुबई व अरब के अन्य मुल्कों में अप्रत्याशित भयंकर बारिश हुई थी।
बहरहाल, इससे एक दिन पहले यानी 18 अप्रैल, 2024 को दुबई में क्लाउड सीडिंग करायी गई थी। इसलिए यह चर्चा होने लगी कि भयंकर बारिश क्लाउड सीडिंग का नतीजा थी; वेदर मोडिफिकेशन व जियो-इंजीनियरिंग पर भी बहस छिड़ गई, जोकि होनी भी चाहिए थी। इनके अतिरिक्त ग्लोबल वार्मिंग व पानी की ख़राब निकासी व्यवस्था पर भी बातें हुईं। क्या वास्तव में क्लाउड सीडिंग ही कारण था? उत्तर से पहले क्लाउड सीडिंग को समझना आवश्यक है। मौसम को बदलने की क्लाउड सीडिंग पुरानी तकनीक है। इसमें बारिश लाने के लिए कुछ रसायन जैसे सिल्वर आयोडाइड व सामान्य नमक बादलों में छिड़के जाते हैं नाभिक बनाने के लिए, जिनके इर्द-गिर्द बादल का मोईसचर जमा हो जाता है बूंदें बनाने के लिए। जब पर्याप्त बूंदें बन जाती हैं तो बादल भारी हो जाते हैं और बूंदें बारिश बनकर गिरने लगती हैं। ज्ञात रहे कि साफ आसमान में क्लाउड सीडिंग से बारिश नहीं हो सकती। बादल हों और उनमें पर्याप्त नमी भी हो, तभी क्लाउड सीडिंग काम करती है। इसलिए क्लाउड सीडिंग का आमतौर से वहां प्रयोग किया जाता है जहां बादल तो हों मगर बरसते न हों। इसी तरह, बादलों में जितनी बारिश पहले से ही मौजूद होती है उससे ज्यादा क्लाउड सीडिंग से उत्पन्न नहीं हो सकती।
दुबई में जिस तूफान से बहुत बड़ी बाढ़ आयी वह छह या सात हवाई जहाजों से प्रभावित नहीं हो सकती जो यूएई के मौसम विभाग एनसीएम ने क्लाउड सीडिंग के लिए उड़ाये थे। जिस वेदर सिस्टम से ज़बरदस्त बारिश हुई उसमें विशाल मात्रा में नमी थी और उसने हज़ारों वर्ग किमी में भारी बारिश हुई, जिसकी चपेट में यूएई, ओमान, बहरीन, कतर व सऊदी अरब आये। ओमान के महदा में दुबई से अधिक बारिश हुई और सबसे ज्यादा जानमाल का नुकसान हुआ। यह अप्रत्याशित भी न था। एनसीएम ने ‘अस्थिर मौसम स्थितियों’ की भविष्यवाणी करते हुए लोगों को घर से ही काम करने की सलाह दी थी। संक्षेप में बात केवल इतनी सी है कि इतने विशाल क्षेत्र पर इतनी भयंकर बारिश क्लाउड सीडिंग से नहीं हो सकती। अगर क्लाउड सीडिंग हुई भी होती तो भी बारिश की तीव्रता पर मामूली प्रभाव ही डालती। दरअसल, मौसम की रिपोर्टें स्पष्ट बता रही हैं कि यह बारिश इस वजह से हुई क्योंकि इस क्षेत्र पर लो-प्रेशर था और अरब सागर पर एंटीसाइक्लोन था। एंटीसाइक्लोन ने इस क्षेत्र में विशाल मात्रा में नमी भेज दी, जिससे भारी बारिश हुई। लेकिन इस कहानी में ग्लोबल वार्मिंग के भी पर्याप्त चिन्ह हैं।
अरब सागर बहुत तेज़ दर से गर्म हो रहा है। पिछले चार दशकों के दौरान इसका सरफेस तापमान 1.2 डिग्री सेल्सियस से बढ़कर 1.4 डिग्री सेल्सियस हो गया है। सरफेस के गर्म होने से वाष्पीकरण दर बढ़ गई है, जिससे वातावरण में नमी बढ़ गई है। साथ ही ग्लोबल वार्मिंग के कारण गर्म वातावरण अधिक नमी को तीव्र बारिश के रूप में बरसा देता है। यह असल वजह है अरब प्रायद्वीप और पश्चिमी भारत में भयंकर बारिश व साइक्लोनों की। फरवरी में भी दुबई में भयंकर बारिश हुई थी। अगर आपको याद हो तो 8 मार्च, 2016 को भी दुबई में भयंकर तूफान आया था। यह ट्रेंड एकदम स्पष्ट है- अरब सागर के पास जो शहर हैं, जिनमें मुंबई भी शामिल है, जैसे जैसे ग्लोबल वार्मिंग तीव्र होगी, उनमें भयंकर बारिश व साइक्लोन आयेंगे। गर्म ग्रह किसी को भी नहीं बख्शेगा, चाहे अरब के रईस शेख हों या मुंबई के कॉर्पोरेट राजा। हालांकि क्लाउड सीडिंग पर चर्चाएं गलत सूचनाओं पर आधारित हैं, लेकिन इनसे मालूम होता है कि इस प्रकार की तकनीक से जनता डरी हुई है। वैसे अब समय आ गया है कि इन तकनीकों पर गंभीरता से चर्चा की जाये क्योंकि यह वास्तविक व बड़ी होती जा रही हैं और इनसे पृथ्वी ग्रह को तो ज़बरदस्त नुकसान होगा ही, साथ ही विभिन्न देशों के बीच में टकराव भी उत्पन्न हो जायेगा, जो युद्ध का भी कारण बन सकता है।
इस प्रकार की तकनीकों को आप सरहद में नहीं बांध सकते। काम कोई करेगा और नुकसान किसी और का हो जायेगा। ध्यान रहे कि बिना किसी अंतर्राष्ट्रीय निगरानी के वेदर मोडिफिकेशन दुनियाभर में किया जा रहा है। मसलन, क्लाउड सीडिंग ही 50 से अधिक देशों में की जा रही है, जिसमें अमरीका, चीन, यूएई आदि देश शामिल हैं। चीन की योजना है कि 2025 तक 5.5 मिलियन वर्ग किमी (डेढ़ गुना भारत के बराबर क्षेत्र) में वेदर मोडिफिकेशन कार्यक्रम लाया जाये। इसका पड़ौस के देशों व ग्लोबल क्लाइमेट पर क्या प्रभाव पड़ेगा? जियो-इंजीनियरिंग बहुत तेज़ी से विकास कर रही है। क्लाइमेट संकट के समाधान हेतु इस बात की गम्भीरता से खोज हो रही है कि सोलर रेडिएशन मोडिफिकेशन के ज़रिये सूरज की रोशनी को स्पेस में रिफ्लेक्ट कर दिया जाये ताकि पृथ्वी ठंडी हो जाये। इस कार्यक्रम में शामिल हैं सल्फर बूंदों को स्ट्रेटोस्फियर में इंजेक्ट करना, नमकीन पानी को समुद्र के ऊपर वाले बादलों में स्प्रे करना और पोलर आइस पर ग्लास बिछाना ताकि धूप स्पेस में रिफ्लेक्ट हो जाये। इनके अतिरिक्त भी बहुत से कार्यक्रम हैं, जिनकी सूची से ही अख़बार के कई पेज भर जायेंगे। अफसोसजनक व चिंताजनक बात यह है कि यह सारे टेक प्रयोग बिना घरेलू व अंतर्राष्ट्रीय नियमों व दिशा-निर्देशों के हो रहे हैं। इसलिए इनसे फायदा कम व नुकसान की आशंका अधिक है। इंसान को प्रकृति से छेड़छाड़ महंगी पड़ रही है और अगर अब भी लगाम न कसी गई तो फिर शायद पछताने के लिए भी कोई मनु, श्रद्धा व इड़ा न बचें।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर