बस, एक कदम और!

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की 18वीं लोकसभा के लिए सात चरणों में  सम्पन्न होने जा रहे चुनाव हेतु छठे पड़ाव का मतदान प्राय: शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न हो जाना न केवल भारतीय गणराज्य के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, अपितु इतने विशाल देश में इतने व्यापक स्तर पर पूर्ण हुई इस प्रक्रिया ने विश्व मानचित्र पर लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की महत्ता को द्विगुणित किया है। पहले पड़ाव का मतदान 19 अप्रैल को हुआ था, और इसी क्रम से सातवें चरण का मतदान प्रथम जून 2024 को होना है जिसमें पंजाब और हिमाचल के राज्यों की क्रमश: 13 और चार सीटों के लिए मतदान भी शामिल है। मौजूदा छठे चरण वाले मतदान में राजधानी दिल्ली की सभी सात सीटों सहित उत्तर प्रदेश की 14, हरियाणा की सभी 10, बिहार और पं. बंगाल की आठ-आठ, ओडिशा की छह, झारखंड की चार और जम्मू-कश्मीर की एक सीट को मिला कर आठ राज्यों की कुल 58 सीटों पर लगभग 58 प्रतिशत मतदान हुआ है। इस चरण वाली सीटों पर कुल 889 उम्मीदवरों के भाग्य का फैसला 11.13 करोड़ मतदाताओं ने अपनी उंगली पर चुनावी स्याही लगा कर ई.वी.एम. के खाते में सुरक्षित एवं संरक्षित कर दिया है। इस प्रकार अब तक सम्पन्न हुए छह चरणों में 543 सदस्यीय लोकसभा की कुल 484 सीटों पर मतदान पूर्ण हो गया है। अब सातवें चरण के लिए शेष सात राज्यों व एक केन्द्र-शासित क्षेत्र की 57 सीटों पर प्रथम जून के मतदान के साथ लोकतंत्र के पथ पर एक और महा-आयाम स्थापित हो जाएगा। इस छठे चरण के साथ ओडिशा राज्य की विधानसभा की 42 सीटों एवं हरियाणा की करनाल और उत्तर प्रदेश  की गैसड़ी विधानसभा सीट पर उप-चुनाव हेतु भी मतदान सम्पन्न हुआ।
पिछले पांच चरणों की ही भांति इस पड़ाव पर भी देश की 17वीं लोकसभा हेतु वर्ष 2019 में सम्पन्न हुए चुनावों की अपेक्षा कुछ सीमा तक कम मतदान हुआ है। इसके मूल कारण का विश्लेषण तो चुनाव आयोग की निर्णायक मत-प्रतिशतता की घोषणा के बाद ही होगा, किन्तु इसके लिए एक बड़ा कारण उत्तर भारत सहित देश के कुछ मैदानी भागों में चल रही तीव्र लू का प्रकोप भी हो सकता है। इसका सहज अनुमान मौजूदा चरण के दौरान एक चुनावी कार्यालय में मतदान सामग्री की प्रतीक्षा करते स्टाफ में से एक महिला कर्मी के बेहोश हो जाने से भी लगाया जा सकता है। यह पिछली बार हुए अधिक मतदान प्रतिशत का असर था, अथवा प्रधानमंत्री मोदी का करिश्मा कि कुल 58 सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा और उसके सहयोगी दलों को 44 सीटें हासिल हुई थीं। इनमें से 36 अकेले भाजपा को मिली थीं जबकि जनता दल (यू), लोक जन-शक्ति पार्टी और ऑल इंडिया झारखंड स्टूडैंट यूनियन आदि आठ सीटों पर जीते थे। कांग्रेस को अकेले इन 58 सीटों में से एक भी सीट हासिल नहीं हुई थी। तथापि, इस बार मतदान प्रतिशतता में आई कमी और संप्रग घटकों के इस दौर के कुछ बेहतर प्रचार कार्यक्रम के दृष्टिगत, कांग्रेस की कारगुज़ारी में कुछ सुधार होने की सम्भावनाएं व्यक्त की जा रही हैं। महाराष्ट्र में शिव सेना के विभाजन और उद्धव गुट के कांग्रेस एवं संप्रग के साथ जुड़ने से भी कांग्रेस के पक्ष में पलड़े का थोड़ा अधिक झुकाव होने की सम्भावना है। विगत तीन लोकसभा चुनावों की बात करें, तो भाजपा ने 2009 से 2019 तक के चुनावों के छठे चरण में अपनी सीटों की संख्या 7 से 40 तक निरन्तर बढ़ाई है। दिल्ली और हरियाणा में भी पिछले चुनाव में भाजपा ने क्लीन-स्वीप किया था। इस बार का सर्वेक्षण थोड़ा-बहुत परिवर्तन दर्शाता है।
इस छठे चरण में जिन बड़ी तोपों वाली सीटों का भविष्य ई.वी.एम. में संरक्षित होगा, उनमें हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री रहीं जम्मू-कश्मीर की अनन्तनाग-राजौरी सीट से पी.डी.पी. की प्रत्याशी महबूबा मुफ्ती, मेनका गांधी और हरियाणा कांग्रेस के दो पूर्व प्रधान कुमारी सैलजा और अशोक तंवर भी शामिल हैं। मौजूदा चरण के प्रारम्भ में मतदान करने वालों में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, केन्द्रीय मंत्री एस. जयशंकर और हरदीप सिंह, कांग्रेस के दो पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी अग्रणी रहे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस-अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा जन-साधारण को लोकतंत्र के इस उत्सव में बढ़-चढ़ कर भाग लेने की नवीकृत अपील से नि:संदेह मतदान प्रतिशत में इज़ाफे वाला प्रभाव पड़ने की सम्भावना बलवती होते दिखाई देती थी, किन्तु अब तक की घोषित मत-प्रतिशतता आगे बढ़ते हुये नहीं प्रतीत होती।
नि:संदेह विश्व के इस सबसे बड़े चुनावी ़फलक पर आखिरी तारे को छू लेने में सिर्फ एक कदम की दूरी रह गई है। चार जून को इस देश की 18वीं लोकसभा का रूप-रंग धीरे-धीरे सामने आने लगेगा। वैसे तो अभी तक सम्पन्न हुए सभी चरण, अपने तौर पर काफी अहम रहे हैं, किन्तु सातवें चरण की सम्पन्नता के साथ पूत के पांव पालने से बाहर दिखने लगेंगे। हम समझते हैं कि अतीत के झीने पर्दे से मुड़कर पीछे झांकें, तो साफ पता चलता है कि देश के चुनाव आयोग ने अभी तक अनेकानेक पर्वत-घाटियों को लांघा है, और बहुत-सी नदियों को भी पार किया है। नि:संदेह चुनाव आयोग की अब तक की उपलब्धियां बेहद श्रेयस्कर रही हैं, और भविष्य में भी इसके मुकुट पर और मोर-पंखों के सजते जाने की उम्मीद है। अतीत के कई चुनावों में देश के कई भागों में होती रही हिंसा की घटनाओं के विपरीत, इस बार ऐसी कोई बड़ी घटना न होना भी एक बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है।