पेपर लीक के बढ़ते मामले चिंता का विषय

बीते कुछ महीनों में देश में विभिन्न प्रतियोगी और व्यवासायिक पाठयक्रमों में प्रवेश परीक्षाओं के प्रश्न-पत्र लीक होने और संदेह के घेरे में आने के मामले लगातार उजागर होते रहे हैं। निश्चित रूप से सुनहरे भविष्य की आस में रात-दिन एक करने वाले प्रतियोगियों के सपने चकनाचूर होने के समान तो है ही। वहीं इस तरह के मामलों से प्रतिभागियों का विश्वास व्यवस्था से उठ जाता है। मैडीकल परीक्षा की पुरानी प्रक्रिया में व्याप्त विसंगतियों को दूर करने के लिये लाई गई नई व्यवस्था भी अब सवालों के घेरे में है। राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) और नीट के तहत परीक्षाओं की जो पवित्रता भंग की गई है, लाखों युवाओं के करियर और भविष्य अधर में लटके हैं, जिससे युवाओं व अभिभावकों में नाराज़गी का माहौल है। नीट पेपर लीक मामले कीं पृष्ठभूमि में परीक्षा-माफिया सक्रिय है। सिर्फ पेपरलीक और सॉल्वर गैंग की ही साजिशें नहीं हैं, बल्कि ‘बड़ी मछलियां’ भी हैं।
परीक्षाएं आयोजित करने वाली संस्थाओं से जुड़े लूप होल्स के कारण ही परीक्षाओं पर सवालिया निशान लगते रहते हैं। जैसे एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है वही कहावत यहां पर चरितार्थ होती है। धनबल से पेपर, परीक्षा केन्द्र, पेपरसेटर आदि खरीदे जा सकते हैं। धनबल के इस खेल में सबसे ज्यादा नुकसान उन बच्चों का होता है जो ईमानदारी एवं एकाग्रतापूर्वक अपनी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। 
सरकार ने राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षाओं में पारदर्शिता लाने के लिए नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी एनटीए की स्थापना की थी। संसद के कानून से बनी इस स्वायत्त संस्था के जिम्मे राष्ट्रीय स्तर पर उच्च शिक्षा के संस्थानों मसलन इंजीनियरिंग कॉलेजों, मैडीकल कॉलेजों, केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए दाखिला परीक्षा आयोजित करना और उनके नतीजे देना है। इस संस्था को जिम्मेदारी दी गई कि वह पूरी पारदर्शिता के साथ अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के लिहाज से परीक्षाएं आयोजित करेगी। लेकिन नीट परीक्षा के नतीजों पर उठे सवालों ने इस संस्था और उसके कार्यों को संदेह के दायरे में ला दिया है। विवाद होने के बाद कुछ बच्चों और उनके अभिभावकों ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करके नीट की परीक्षा फिर से कराने और दाखिले के लिए काउंसलिंग कराने पर रोक लगाने की मांग की।  नीट की डॉक्टरी प्रवेश परीक्षा की धांधलियां सामने आ रही हैं। सवाल है कि जो माता-पिता अपने बच्चे की परीक्षा पास कराने के लिए 40 लाख रुपए प्रश्न-पत्र के लिए खर्च कर सकते हैं, क्या वे देश में ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ पैदा करना चाहते हैं? यह घोर दंडनीय अपराध है। नीट प्रकरण के अलावा, यूजीसी नेट, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और नीट-पीजी परीक्षाएं भी रद्द या स्थगित की गई हैं। इस तरह 37 लाख से अधिक युवाओं के भविष्य घोर अनिश्चित हो गए हैं। यह कोई सामान्य बात नहीं है। आखिर वे युवा कब तक परीक्षाएं देते रहेंगे? छात्रों के सामने उम्र निकल जाने का खतरा भी है। इन बर्बादियों का सवाल और आरोप एनटीए पर ही क्यों है? 
यह केंद्र सरकार को भी सोचना चाहिए और एनटीए को खंगालना चाहिए। एनटीए की प्रक्रिया, परीक्षा-प्रणाली, आउटसोर्स की मज़बूरी, विशेषज्ञता के अभाव और मूल में भ्रष्टाचार आदि ऐसे बुनियादी कारण हैं कि इस संस्थान को ही समाप्त करने की मांगें की जा रही हैं। युवाओं के विरोध-प्रदर्शन इतने उग्र और व्यापक हो गए हैं कि एनटीए के महानिदेशक सुबोध कुमार सिंह को हटा कर एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी प्रदीप सिंह खरोला को इस पद का दायित्व सौंपना पड़ा है।
परीक्षा-प्रणाली और उसके ईमानदार, पेशेवर तंत्र को आईएएस लॉबी के हवाले करना कोई सार्थक समाधान नहीं है। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने एक विशेष समिति का गठन किया है। बेशक उसमें महाविशेषज्ञ किस्म के महाबौद्धिक चेहरे शामिल हैं, लेकिन वे एनटीए की तकनीक, परीक्षा-प्रविधि और अंतर्विरोधों के समाधान नहीं दे सकते। यह उनकी विशेषज्ञता से बिल्कुल अलग क्षेत्र है। समिति को दो माह का समय दिया गया है। सर्वोच्च अदालत में भी एनटीए, नीट परीक्षा के मामले विचाराधीन हैं, जिनकी सुनवाई 8 जुलाई को है। 
निश्चित रूप से जहां नीट परीक्षा के पेपर लीक व ग्रेस मार्क्स में अनियमितताओं को लेकर उठे सवालों के समाधान तलाशने की ज़रूरत है, वहीं हिंदी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के परीक्षार्थियों के साथ न्याय होना भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। परीक्षा के वर्तमान स्वरूप में व्यापक स्तर पर सुधार और साफ-सफाई करनी पड़ेगी, क्योंकि लाखों युवा भारतीयों का भविष्य दांव पर है। बहरहाल, यह मामला जांच के लिए सीबीआई को सौंप दिया गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि गुनाहगार पकड़े जाएंगे और प्रतिभागियों को भी न्याय मिलेगा।