अडानी विवाद : इस बार मामला गम्भीर है
अडानी ग्रीन एनर्जी लि. के चेयरमैन गौतम अडानी व उनके भतीजे सागर अडानी (पुत्र राजेश अडानी) सहित 11 व्यक्तियों को अमरीका के न्याय विभाग ने भारत में अधिकारियों को रिश्वत देने व निवेशकों को गुमराह करने के आरोप में इंडिक्ट किया है और उनके खिलाफ गिरफ्तारी के वारंट जारी किये हैं। इन लोगों पर आरोप है कि अनुकूल शर्तों पर सोलर पॉवर कॉन्ट्रैक्ट्स हासिल करने के लिए 285 मिलियन डॉलर (लगभग 2,200 करोड़ रूपये) रिश्वत में देने की जो विस्तृत योजना बनायी गई थी, उसमें यह लोग शामिल थे। इंडिक्टमेंट का अर्थ है अभियोग। जांच के बाद ग्रैंड जूरी यह तय करती है कि जो साक्ष्य रिकॉर्ड में हैं, वह ट्रायल आरंभ करने के लिए पर्याप्त हैं और अभियोग जारी किया जाता है- बचाव पक्ष के विरुद्ध औपचारिक आरोपों की सूची। अभियोग अमरीका में इसलिए हुआ है क्योंकि बचाव पक्ष पर आरोप है कि कथित रिश्वत देने के लिए पैसा अमरीकी निवेशकों से एकत्र किया गया, उन्हें गलत स्टेटमेंट्स से गुमराह करके और मटेरियल तथ्यों को छुपाकर।
हालांकि अभियोग में कहा गया है कि रिश्वत देने के कृत्य को विस्तृत तौर पर डॉक्यूमेंट किया गया है कि सागर अडानी ने इसकी डिटेल्स को अपने सेलफोन पर ट्रैक किया, विनीत जैन (सीईओ अडानी ग्रीन एनर्जी) ने फोन का इस्तेमाल करते हुए रिश्वत राशि को डॉक्यूमेंट करने के लिए तस्वीरें लीं और रुपेश अग्रवाल (चीफ स्ट्रेटेजी एंड कमर्शियल ऑफिसर, अज़ूर पॉवर) ने पॉवरपॉइंट, एक्सेल पर रिश्वत की समीक्षा की, लेकिन अडानी समूह ने इन विस्फोटक आरोपों का यह कहते हुए खंडन किया है कि जब तक दोषी साबित न हों, तब तक निर्दोष हैं। बहरहाल, इस घटनाक्रम का व्यापक प्रभाव संभावित है, जिसमें शामिल है अडानी समूह की इज़्जत पर बट्टा लगना। अमरीकी बाज़ार से भविष्य में फंड्स एकत्र न कर पाना, विदेश यात्राओं में कटौती करने की मजबूरी, भारतीय राजनीति में भूचाल आना जबकि संसद का शीतकालीन सत्र आरंभ होने जा रहा है, आदि।
विपक्ष जहां नये सिरे से जेपीसी जांच और गिरफ्तारी की मांग करेगा वहीं अमरीका भारत के दूसरे सबसे रईस व्यक्ति गौतम अडानी व उनके भतीजे सागर अडानी सहित अन्य आरोपियों के प्रत्यर्पण के लिए दबाव बनायेगा। भारत और अमरीका के बीच 25 जून, 1997 से प्रत्यर्पण संधि है। अब यह जानी पहचानी सी बात हो गई है कि अडानी समूह के लिए बुरी खबर आती है और उसके स्टॉक्स क्रैश कर जाते हैं, बांड इश्यू को रोक दिया जाता है, समूह की प्रैस रिलीज़ आरोपों का खंडन करती है और सियासी भूचाल आ जाता है। लेकिन इस बार कहानी काफी अलग है। हिंडनबर्ग अमरीका में निजी समीक्षा फर्म है, एसईसी (सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन), जिसने समानांतर सिविल केस दायर किया है, अमरीका का शक्तिशाली बाज़ार नियामक है। एसईसी की जांच का प्रभाव भी बड़ा व गहरा होने जा रहा है। साथ ही इस बार आरोप रिश्वत के व अमरीकी निवेशकों को गलत सूचनाएं देने के हैं और वह भी अमरीका के विशिष्ट कानून के तहत। ज़ाहिर है कि तुलनात्मक दृष्टि से इसके दांत अधिक पैने हैं, बजाय निजी आरोपों के कि समूह के स्टॉक मज़बूत करने के लिए पैसे का हेर-फेर किया गया था।
अडानियों के लिए समस्या इस बार अधिक गंभीर इसलिए भी है क्योंकि न्यूयॉर्क में उनके खिलाफ गिरफ्तारी के वारंट भी जारी हुए हैं। हां, यह सही है कि इस बारे में भविष्यवाणी करना असंभव है कि एसईसी जांच का नतीजा आखिरकार क्या निकलेगा? याद रखें कि कॉर्पोरेट के अन्य बड़े नामों जैसे सीमेंस, पेट्रोब्रास, हालीबर्टन, गोल्डमैन साश आदि ने भी खुद को एसईसी के निशाने पर पाया है। एक बड़े कॉर्पोरेट समूह के लिए यह दुर्लभ ही है कि वह बहुत कम समय में अनेक विवादों में फंस जाता है। विवाद में फंसने के बाद स्वयं का बचाव करने की प्रक्रिया में भी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। अनेक देशों में काम करने वाले अडानी समूह जैसे बड़े कॉर्पोरेट के लिए वैश्विक स्तर पर यह अच्छी खबर नहीं है। केन्या के राष्ट्रपति विलियम रुटो ने कहा है कि अमरीका के रिश्वत व धोखाधड़ी अभियोग के बाद उन्होंने अडानी समूह के साथ एअरपोर्ट विस्तार व एनर्जी के मल्टीमिलियन डॉलर करार को रद्द कर दिया है। अब कम से कम निकट भविष्य में तो अडानी समूह के लिए अमरीका में फंड एकत्र करना कठिन हो जायेगा।
जो लोग अडानी के लिए योजना बनाते हैं उन्हें मालूम होगा कि अपने पहले कार्यकाल में डोनल्ड ट्रम्प फ ॉरेन करप्ट प्रैक्टिसेज एक्ट को यह कहते हुए निरस्त करना चाहते थे कि यह विदेश में कारोबार कर रही अमरीकी कम्पनियों के लिए अनुचित है। इसके बावजूद इस उम्मीद पर योजना बनाना बेवकफी होगी कि ट्रम्प अपने दूसरे कार्यकाल में इस कानून को रद्द ही कर देंगे। ट्रम्प आग में अन्य लोहों को गर्म कर रहे हैं। जब बात सरकारों और व्यापार की आती है तो हर भारतीय यह मानकर चलता है कि मेज़ के नीचे से ही सौदेबाज़ी होती है, भले ही यह आरोप सच हो या केवल कल्पना। आर्थिक सुधारों के बाद से तो ऊर्जा सेक्टर में विशेषरूप से सैंकड़ों विवाद सामने आये हैं, जो एनरोन से आरंभ हुए थे। हर एक की कहानी अलग अलग है, सभी आरोप कानूनन साबित भी न हो सके और अनेक मामले बहुत जटिल भी थे। लेकिन एक साधारण सा पैटर्न है—व्यापारी तथाकथित तौर पर खेल करते हैं, जो कागज़ पर नियम-आधारित होता है और सरकारी अधिकारी व नेता तथाकथित तौर पर किसी चीज़ के एवज़ में उन्हें अनुगृहीत करने में खुश रहते हैं। अत: यह मुश्किल ही लगता है कि नवीनतम विवाद से दोनों पक्षों के नज़रिए में कोई सकारात्मक परिवर्तन आयेगा।
इस आशंका के बावजूद, अडानी विवाद 2.0 का एक बड़ा सबक यह है कि वैश्विक स्तर पर काम करने के लिए भारतीय कॉर्पोरेट को अपनी तरीकों में सुधार लाना होगा। इसका अर्थ यह है कि कॉर्पोरेट और राजनीतिक दलों के बीच जो ‘एक दूसरे को खुश करने का चक्र है’ उसे तोड़ना पड़ेगा। यह तभी हो पायेगा जब राजनीतिक फंडिंग केवल कॉर्पोरेट पर ही निर्भर न रहे। जब तक हर प्रकार की सियासत को कॉर्पोरेट फंडिंग रहेगी तब तक भ्रष्टाचार जारी रहेगा, विधायक बिकते रहेंगे, पैसे देकर रैलियों में भीड़ जुटायी जाती रहेगी और मतदान की पूर्व संध्या पर कैश बंटता रहेगा। चुनावी बांड्स इस भ्रष्टाचार की एक मिसाल है। संक्षेप में बात इतनी सी है कि सियासत साफ सुथरी होगी, अपने फंड मतदाताओं के ऐच्छिक योगदान से एकत्र करेगी तो कॉर्पोरेट के भ्रष्टाचार पर भी नियंत्रण किया जा सकेगा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर