महत्वपूर्ण है ‘एक राष्ट्र-एक मिशन’ अभियान
पिछले दिनों वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक के इस्तेमाल को रोकने के लिए ‘एक राष्ट्र-एक मिशन’ नाम से देशव्यापी अभियान शुरू किया है। इसमें देशभर के सभी सार्वजनिक स्थलों जैसे समुद्र और नदियों के तटों, पार्कों, पर्यटन स्थलों, रेलवे स्टेशन व ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता अभियान चलाए जाएंगे। इस अभियान के अंतर्गत सिंगल यूज़ प्लास्टिक के इस्तेमाल को लेकर लोगों को जागरूक किया जाएगा। जन जागरण हेतु इंटरनेट मीडिया, नुक्कड़ नाटक, सार्वजनिक संकल्प, पोस्टर और निबंध प्रतियोगिता तथा मैराथन जैसी गतिविधियां भी आयोजित की जाएंगी।
सर्वविदित है कि सिंगल यूज़ प्लास्टिक आज जीवन के लिए खतरा बनता जा रहा है। सिंगल यूज़ प्लास्टिक में पानी की बोतलें, डिस्पेंसिंग कंटेनर्स, बिस्कुट ट्रेज, बैग्स, कंटेनर्स, फूड पैकेजिंग फिल्म, शैंपू की बोतलें, दूध एवं विभिन्न प्रकार के जूस की बोतलें, आइसक्रीम कंटेनर्स, चिप्स के रैपर्स, फल व सब्ज़ियों और अन्य सामान के लिए प्रयोग की जाने वाली थैलियां आदि शामिल हैं। ये सभी उत्पाद अलग-अलग श्रेणी के प्लास्टिक से तैयार किए जाते हैं। इन्हें एक बार प्रयोग करके फेंक दिया जाता है और यह प्लास्टिक सैकड़ों वर्षों तक भी नहीं गलता।
आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रतिदिन लगभग 26 हज़ार टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है और हज़ारों टन कचरा ऐसा भी है जो एकत्र ही नहीं किया जाता। खुले में पड़े और सेनेटरी लैंड फील्ड पर पहुंचे इस प्लास्टिक कचरे को अनेक बार जला दिया जाता है, जो खतरनाक वायु प्रदूषण का कारण बनता है। आंकड़े बताते हैं कि पूरे विश्व में प्रतिवर्ष लगभग 40 करोड़ टन से अधिक प्लास्टिक कचरे का उत्पादन होता है जिसमें से लगभग 5.2 लाख टन कचरा या तो जला दिया जाता है या खुले में फेंक दिया जाता है। अनेक देशों में इसके एकत्रीकरण एवं निस्तारण की समुचित व्यवस्थाएं नहीं हैं। लगभग 15 प्रतिशत वैश्विक आबादी की प्लास्टिक कचरा संग्रहण तक पहुंच ही नहीं है। लीड्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के वर्ष 2020 के आंकड़ों के अनुसार भारत एक वर्ष में लगभग 93 लाख टन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन करके शीर्ष पर था। वर्ष 2019 में एक समाचार प्रकाशित हुआ था जिसके अनुसार दुनिया की 10 बड़ी नदियों से होकर प्रतिवर्ष 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा सीधे समुद्र में पहुंचता है। नदियों और समुद्र में मछलियां एवं अन्य जीव इन्हें खा लेते हैं और फिर उन जीवों को मनुष्य खाता है। इस प्रकार मनुष्य के शरीर में भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्लास्टिक के हज़ारों सूक्ष्म कण जमा होते चले जाते हैं। प्लास्टिक उत्पादों को जलाने, मिट्टी में फेंकने अथवा जल स्रोतों में जाने से प्रदूषण फैलता है जो खतरनाक बीमारियों का कारण बनता है। प्लास्टिक प्रदूषण से कैंसर, श्वास संबंधित रोग, त्वचा रोग, प्रजनन और जन्म दोष, सिर दर्द एवं स्मरण क्षमता में कमी आदि देखे जा सकते हैं। छोटे बच्चों, वृद्धों एवं बीमारों को यह प्रदूषण अधिक प्रभावित करता है।
सिंगल यूज प्लास्टिक ग्लोबल वार्मिंग का भी एक बड़ा कारक है। भारत जैसे देश में जनसंख्या सर्वाधिक है, अनेक स्थानों पर पॉलिथीन एवं अन्य उत्पादों की वैध एवं अवैध फैक्टरियां चल रही हैं। कचरा प्रबंधन भी समुचित नहीं है। सस्ते प्लास्टिक से बने खिलौने एवं अन्य उत्पाद बाज़ारों में खूब उपलब्ध हैं। यद्यपि सिंगल यूज़ प्लास्टिक के संबंध में नियम बने हैं, लेकिन धरातल पर नहीं उतर पाए। भारत में वर्ष 2016 प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स के अंतर्गत राज्यों के सभी स्थानीय निकायों को ऐसी आधारभूत सुविधाएं विकसित करने पर ज़ोर दिया गया जिससे प्लास्टिक कचरे को अलग किया जा सके, उन्हें एकत्र और प्रोसेसिंग करके खत्म किया जा सके। वर्ष 2018 में इस नियम में संशोधन हुआ और निर्माता की जवाबदेही भी तय की गई। फिर यह नियम लागू क्यों नहीं किए गए? क्या इन नियमों का उल्लंघन प्रकृति- पर्यावरण और प्रत्येक जीवधारी के जीवन से खिलवाड़ नहीं है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विगत कई वर्षों से ‘मन की बात’ एवं विभिन्न मंचों से प्लास्टिक का प्रयोग न करने का आह्वान करते रहे हैं, फिर भी स्थिति यथावत है। ज्ञात हो कि भारत सरकार ने 1 जुलाई, 2022 से सिंगल यूज़ प्लास्टिक से बने पान, गुटका, तंबाकू के रैपर, स्ट्रा, कप, प्लेट, चम्मच आदि 19 प्रकार की वस्तुओं पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके अंतर्गत इनके निर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध है, लेकिन आज भी ऐसी अनेक वस्तुओं और उत्पादों का निर्माण और बाज़ार में उनकी बिक्री जारी है। सिंगल यूज प्लास्टिक को लेकर जन भागीदारी और जन जागरूकता बहुत आवश्यक है। (अदिति)