वैश्विक संकट खड़ा कर रहे युद्ध
वैश्विक स्तर पर लगभग प्रतिवर्ष किसी न किसी राष्ट्र के बीच य़़ुद्ध और गृह युद्ध ने तबाही का मंजर ही दिखाया है। इन युद्धों के बाद इंसान की मौतों और उनके विस्थापन की संख्या अब चौंकाने लगी है। एक लम्बे अरसे तक चले रूस-ब्रिटेन युद्ध ने भारी तबाही का दौर देखा है। हज़ारों-लाखों में मौते और अरबों-खरबों की सम्पत्ति नष्ट होने के साथ उस युद्ध असर वैश्विक स्तर पर पड़ा था। आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की संख्या 7.35 करोड़ हो गई। गृहयुद्ध से जूझ रहा से सूडान तो दुनिया के सबसे बड़े विस्थापन संकट का केंद्र बन गया है, जहां संघर्ष के कारण 1.4 करोड़ से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। अब इज़रायल और ईरान के बीच जो युद्ध चल रहा है, उसका तात्कालिक असर भी दिखने लगा है।
रूस और ब्रिटेन के बीच संघर्ष के दौरान नौसैनिक घटनाएं और साइबर युद्ध भी शामिल थे। फरवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया और देश के अधिक हिस्से पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया था, जिससे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप में सबसे बड़ा संघर्ष कहा गया। अब इज़रायल ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर अचानक हमला करके सबको चौंका दिया है, जिससे क्षेत्र में अनिश्चितता बढ़ गई है। अमरीका ने इस कार्रवाई में अपनी भागीदारी से इन्कार किया है। इसके जबाब में ईरान ने इज़रायल पर ड्रोन और मिसाइल से हमला किया है। यही नही ईरानी अधिकारियों की तरफ से अमरीका, ब्रिटेन और फ्रांस के सैन्य ठिकानों पर हमले की धमकी दी गई है। इज़रायली कार्रवाई के वैश्विक दुष्प्रभावों का संकेत इसी एक तथ्य से मिल जाता है कि पहले हमले के कुछ घंटों के अंदर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतें 13 प्रतिशत बढ़ गईं। इसमें दो राय नहीं कि इज़रायल लम्बे समय से कहता रहा है कि ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने से हर हाल में रोका जाए और ज़रूरी हो तो उसके लिए बल प्रयोग से भी हिचका न जाए। उसका कहना है कि ईरान इस स्थिति में आ गया था कि कुछ दिनों के अंदर 15 परमाणु बम बना सकता था।
इज़रायल ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम ठिकानों सैन्य बेसों पर हमला किया है। इज़रायल ने ईरान के खिलाफ अपनी कार्रवाई को ऑपरेशन राइजिंग लायन नाम दिया है, जो बताता है कि यह अपने आप में महज एक कार्रवाई नहीं बल्कि नया सिलसिला हो सकता है। हमलों का व्यापक रूप भी इसकी गंभीरता को स्पष्ट कर देता है। कम से कम छह राउंड में किए गए हवाई हमलों के तहत ईरान के परमाणु कार्यक्रम ठिकानों को निशाना बनाया गया। ईरान ने माना है कि इन हमलों में उसके कम से कम छह परमाणु वैज्ञानिक मारे गए। यही नहीं, ईरान के सबसे बड़े सैन्य अधिकारी इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स के चीफ हुसैन सलामी के भी मारे जाने की खबर है।
यह बात भी सच है कि इस मसले पर अमरीका से ईरान की बातचीत चल रही थी। रविवार को दोनों पक्षों में अगले दौर की वार्ता होनी थी। ऐसे में इज़रायल की अचानक की गई इस कार्रवाई के बाद सभी पक्षों की नजरें इस पर टिक गई थीं कि आगे घटनाक्रम कैसा रूप लेता है। अगर ईरान की जवाबी कार्रवाई का स्वरूप इज़रायल तक सीमित रखता है तो ठीक वरना अगर अमरीकी दूतावासों व अन्य ठिकानों को भी जद में लेता है या होरमुज की खाड़ी से गुजरते जहाज़ों को भी निशाना बनाता तो यह खतरनाक होगा, क्योकि यहां से 21 प्रतिशत ग्लोबल तेल की सप्लाई होती है।
वैश्विक स्तर पर आए दिन होने वाले युद्धों के परिणामस्वरूप आम लोगों को अपना घर-बार छोड़ कर दूसरी जगह ठिकाना तलाशने की मजबूरी जीवन की डगर को और कठिन बना देती है। ऐसे लोगों के पास विस्थापन का दर्द झेलने के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह जाता है। यह किसी एक देश की बात नहीं है, बल्कि दुनिया भर में विभिन्न कारणों से विस्थापित होने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी की एक रपट के मुताबिक, दुनिया में जबरन विस्थापितों का आंकड़ा 12.2 करोड़ से अधिक हो गया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 20 लाख अधिक है। गत दशक की अपेक्षा लगभग दोगुना है। लोगों के विस्थापन के लिए युद्ध, आंतरिक हिंसा और उत्पीड़न मुख्य रूप से ज़िम्मेदार हैं। गौरतलब है कि वर्तमान में दुनिया में मुख्य रूप से दो मोर्चों पर आमने-सामने का युद्ध हो रहा है। रूस-यूक्रेन और इज़राइल-ईरान के बीच भीषय युद्ध जारी है। निकट भविष्य में इस युद्ध का अंत होने के आसार अभी नज़र नहीं आ रहे हैं। इजराइल-हमास के बीच युद्ध में ईरान का हस्तक्षेप भी किसी से छिपा नहीं है। दूसरी ओर, सीरिया एक दशक से अधिक समय से गृहयुद्ध झेल रहा है, जिस कारण वहां भी बड़ी संख्या में लोगों को विस्थापन का दर्द झेलना पड़ रहा है।