रेत-बजरी माफिया के लम्बे होते हाथ

पंजाब में अवैध खनन को लेकर चिन्ताओं का ज्वार एक बार फिर बढ़ा है। नि:संदेह इस स्थिति के लिए खनन माफिया और स्थानीय प्रशासन समान रूप से उत्तरदायी हैं। इसका प्रमाण इस एक तथ्य से भी मिल जाता है कि पठानकोट में विभागीय कार्रवाई के अन्तर्गत अवैध खनन हेतु इस्तेमाल किए जाते 14 वाहनों जिनमें दो बड़ी मशीनें भी थीं, को कब्ज़े में लिया गया है जिनमें रेत भरी हुई थी, और इनके साथ आठ अन्य लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है। ये सभी लोग अवैध खुदाई करने वाले माफिया के कारिंदे बताये जाते हैं, किन्तु इस दौरान अवैध खनन करने वालों में से किसी एक को भी गिरफ्तार न किया जाना अनेक प्रकार के संदेहों को भी जन्म देता है। बेशक मौजूदा सरकार ने अवैध खनन की रोकथाम हेतु एक नई नीति भी तैयार की है, किन्तु इसके बावजूद इस अवैध कृत्य पर अंकुश नहीं लगाया जा  सका। इससे साफ पता चलता है कि कहीं न कहीं, किसी स्तर पर प्रशासनिक अधिकारियों और अवैध खनन करने वाले माफिया के बीच सांठ-गांठ है। तभी तो विभाग कभी भी किसी बड़े पक्ष पर कार्रवाई नहीं करता है। यह स्थिति कोई पहली बार नहीं उपजी है। प्रदेश में अवैध खनन की समस्या भी कोई नई नहीं है। दशकों से यह कार्य सरकार और स्थानीय प्रशासन की ठीक नज़रों के नीचे चलता आ रहा है। आज स्थिति यह हो गई है कि अवैध खनन ने बाकायदा एक माफिया का रूप धारण कर लिया है। तिस पर सितम यह भी है कि इस अवैध खनन कारोबार को राजनीतिज्ञों का भी वरद् हस्त प्राप्त हो गया है। सम्भवत: इसी का यह परिणाम है कि एक ओर जहां भवन-निर्माण कार्यों में प्रयुक्त होने वाले इस सामान रेत, मिट्टी और बजरी की कीमतें आसमान छूने लगी हैं, वहीं इस अवैध कृत्य से जुड़े लोगों की सम्पत्ति कई-कई गुणा बढ़ गई है। रेत-बजरी की कीमतों में इस अथाह वृद्धि का एक कारण यह भी है कि अवैध खनन माफिया की ओर से समय-समय पर इन वस्तुओं की अप्राकृतिक कमी उत्पन्न कर दी जाती है, और फिर कालाबाज़ारी के ज़रिये इनकी कीमतें बढ़ा दी जाती हैं। अवैध खनन माफिया राजनीतिक संरक्षण पाकर इतना शक्तिशाली और क्रूर हो चुका है कि कानून के धरातल पर कार्य करने वाले पुलिस दलों पर घातक हमले करने से भी नहीं चूकता। पंजाब और हरियाणा में इस प्रकार के हमलों की सूचनाएं अक्सर समाचार-पत्रों में सुर्खियां बनती रही हैं। दो वर्ष पूर्व हरियाणा में एक डी.एस.पी. को डम्पर के नीचे कुचल कर मार दिया गया था। पंजाब के बाहर मध्य प्रदेश में तो यह माफिया और भी शक्तिशाली है जहां अक्सर इस प्रकार की घटनाएं होती रहती हैं।
मिट्टी, रेत और बजरी ऐसी वस्तुएं हैं जिनके प्रयोग के बिना भवन निर्माण संबंधी कोई भी कार्य सम्पन्न नहीं होता। बजरी का उपयोग तो सड़कों के निर्माण में भी होता है, अत: जैसे-जैसे इनकी मांग बढ़ती हैं, इनकी कीमतें भी उसी अनुपात से बढ़ने लगती है। समस्या तब पैदा होती है जब छोटे-छोटे घरेलू निर्माण कार्यों हेतु भी इन वस्तुओं को गरीब और मध्यम- वर्गीय लोगों को अति महंगे भाव खरीदना पड़ता है। बेशक धनी-मानी लोगों को इसकी कीमत में हुई वृद्धि से कोई खास अन्तर नहीं पड़ता। सरकारें अक्सर इस मुद्दे को लेकर गम्भीरता का प्रदर्शन भी करती रही हैं किन्तु उनकी योजनाओं को उनके अपने ही मंत्री, विधायक और अन्य राजनीतिज्ञ तारपीडो कर देते हैं। सरकारें कई बार चाहे दिखावे के तौर पर ही सही, माफिया से जुड़े राजनीतिज्ञों के विरुद्ध कार्रवाई की घोषणाएं करती रही हैं, किन्तु कालांतर में ये घोषणाएं भी धरातल पर उतरते-उतरते दम तोड़ जाती रही हैं। तथापि, इन घोषणाओं एवं योजनाओं का परिणाम यह अवश्य निकलता है कि हर बार इन पदार्थों की कीमतें और बढ़ जाती रही हैं।
पठानकोट की ताज़ा घटना भी अवैध खनन माफिया को प्रशासनिक, राजनीतिक और सत्ता-संरक्षण प्राप्त होने का ही परिणाम प्रतीत होती है। यह कैसे सम्भव हो सकता है कि अवैध खनन सामग्री के साथ वाहनों, क्रेनों और डम्परों की मौजूदगी के बावजूद काबू में आये लोगों में निचले स्तर के कारिन्दे ही हों। पुलिस और नागरिक प्रशासन के हाथ इतने लम्बे क्यों नहीं हो सके कि किसी बड़े माफिया अथवा कारोबारी के गिरेबां तक पहुंच सकें। पुलिस के पास अवैध खनन होने और उसे ले जाए जाने हेतु वाहनों की मौजूदगी की पुख्ता ़खबर थी। फिर यह कैसे सम्भव हुआ, कि बड़े लोग साफ बच कर निकल गये, और शेष बची छाछ जिसे प्रशासनिक तंत्र जैसे चाहे, खंगालता रहे। अवैध खनन से उपजी गम्भीर स्थितियों को लेकर सैनिक संस्थान और अदालतें तक चिंता व्यक्त कर चुकी हैं। अवैध खनन से कई बार पुलों और नदी-तटों को भी ़खतरा पैदा हुआ है। इनमें कई पुल ऐसे भी रहे हैं जो सेनाओं के आवागमन हेतु अहम माने जाते हैं। यक्ष प्रश्न यह भी है कि खनन माफिया के हाथ पुलिस और सरकारों के हाथों से लम्बे कैसे हो गये।
हम समझते हैं कि सरकार को इस गम्भीर होती जाती समस्या से निपटने के लिए जहां अपनी ही नीति को दृढ़ता से अमल में लाये जाने की आवश्यकता है, वहीं राजनीतिक दखल को रोकने हेतु दृढ़ इच्छा-शक्ति अपनाने की भी बड़ी ज़रूरत है। जन-साधारण को नये निर्माण और छोटे-छोटे घरेलू कार्यों हेतु रेत-बजरी और मिट्टी सस्ते और उचित दामों पर मिल सके, इसकी व्यवस्था सरकार को ही करनी होगी। यह व्यवस्था जितना शीघ्र होगी, उतना ही प्रदेश की  जनता, और स्वयं सरकार के अपने हित में होगा।

#रेत-बजरी माफिया के लम्बे होते हाथ