मानसून की बौछारों में बहती बाढ़ की आपदा
इस साल अब तक (5 जुलाई, 2025) बाढ़, भू-स्खलन, बादल फटने और बिजली आदि गिरने से देश में 432 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, जिसमें सबसे ज्यादा मौतें उत्तराखंड, हिमाचल, असम, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा, मध्य प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र आदि में हुई हैं। अगर देश के अलग-अलग राज्यों की 5 जुलाई, 2025 तक उनके द्वारा अनुमानित नुकसान को समग्रता में देखा जाए, तो अब तक लगभग 5 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है और आशंका है कि इस साल पूरे मानसून के दौरान 20 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा का नुकसान हो सकता है। क्योंकि इस साल बारिश का पैटर्न ज्यादातर राज्यों में बहुत स्ट्रांग है और जिन राज्यों में कमजोर है, वहां बारिश न होने से कई सौ करोड़ रुपये के नुकसान की आशंका है।
सवाल है जब हर साल भारत में बाढ़ एक आपदा बनकर आती है, तो आज़ादी से अब तक करीब 78 सालों में विभिन्न सरकारों ने इससे निपटने का कोई स्थायी इंतजाम क्यों नहीं किया? क्या इसकी वजह यह है कि इस मौसमी आपदा से शासन-प्रशासन में बैठे बहुत से लोगों को अच्छी खासी कमाई हो जाती है? ये लोग मालामाल हो जाते हैं? इसलिए हर साल हजारों जानें, जाने और करोड़ों अरबों रुपये का नुकसान होने के बावजूद देश में शासक प्रशासक वर्ग इस आपदा को गंभीरता से नहीं लेते? कहीं इसके पीछे राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी तो नहीं है? बाढ़ से जुड़ी योजनाएं अकसर लंबी अवधि की होती हैं और इनका चुनावों में किसी तरह का फायदा नहीं मिलता, क्योंकि बारिश के तुरंत बाद या बारिश के आसपास कभी चुनाव नहीं होते। आम चुनाव आमतौर पर या तो मार्च, अप्रैल में होते हैं या सर्दियों में और भारत में किसी भी आपदा को भुलाने के लिए 60 से 90 दिन बहुत होते हैं। इसलिए बाढ़ से जो विभीषिका पैदा होती है, जनधन की हानि होती है, उसका कोई असर चुनावों पर नहीं पड़ता और अगर चुनाव का साल न हो, तब तो बाढ़ जैसी परेशानियों के बारे में सोचा भी नहीं जाता।
सवाल है क्या साल 2025 में जून और जुलाई के पहले सप्ताह में जो सामान्य से ज्यादा बारिश हुई है, उसके कारण देश की अर्थव्यवस्था को फायदा होगा या नुकसान होगा और इससे भी बड़ी बात है कि जो नुकसान होगा, क्या उसके बारे में अगली बार नुकसान न हो, ऐसा गंभीरता से सोचा जायेगा? या फिर जैसे पिछले लगभग 78 सालों से चला आ रहा है, वैसा ही यह रूटीन साल होगा? याद रखिए, अगर हम बाढ़ को लेकर इतना ही उदासीन रहे, तो सन् 2047 तक हम भारत को विकसित बनाने का जो ख्वाब देखते हैं, वह ख्वाब ही रह सकता है। यह समस्या भले अपने अपने फायदों के कारण शासन-प्रशासन में महत्वपूर्ण जगहों पर बैठे लोग न समझते हों, लेकिन देश के आम लोग जो इस बाढ़ से हर साल पीड़ित होते हैं, वो बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। इसलिए साल 2025 की सामान्य से बेहतर बारिश खुशियों के साथ जो समस्याओं पुलिंदा लेकर आयी है, उसके बारे में अब गंभीरता से सोचना होगा, नहीं तो इस आपदा को लेकर हमारा यह चालू रवैय्या हमें हमेशा के लिए इसके साथ नत्थी कर देगा।
हम सब जानते हैं कि भारत आज भी मूलत: कृषि प्रधान देश है। भले हमारी अर्थव्यवस्था दुनिया में चौथे पायदान पर पहुंच गई हो और इस अर्थव्यवस्था में कृषि की हिस्सेदारी सिर्फ 18.2 प्रतिशत हो, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश की अभी भी 42 प्रतिशत आबादी सीधे तौर पर और करीब 10 प्रतिशत आबादी अप्रत्यक्ष तौर पर कृषि पर ही निर्भर है। इस तरह देखें तो खेती अभी भी आधे से ज्यादा भारतीयों की जीविका है। हमारे यहां बारिश का होना इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि आज भी आधे से ज्यादा खेती मानसून पर ही टिकी है और देश में पेयजल का भी 60 प्रतिशत से ज्यादा आधार बारिश का पानी ही है। इसके अलावा देश में जो जलविद्युत बनती है, उसके लिए भी बारिश का होना बहुत ज़रूरी है। इसलिए भारत जैसे देश में मानसून का जल्दी आना जैसे इस साल आया अच्छी खबर मानी जाती है। मौसम विभाग की मानें तो इस बार जून से सितम्बर के बीच 106 प्रतिशत ज्यादा बारिश हो सकती है। बारिश की सामान्य परिभाषा में 87 सेंटीमीटर का दीर्घकालिक औसत के 96 से 104 प्रतिशत के बीच माना जाता है।
इस बार अधिकांश क्षेत्रों में सामान्य से अधिक बारिश की संभावना है। जबकि कुछ क्षेत्रों में बारिश कुछ कम भी हो सकती है, जिनमें बिहार, झारखंड़, पश्चिम बंगाल, ओड़िसा के कुछ हिस्से, पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु जैसे राज्य शामिल हैं। सवाल है क्या यह औसत से ज्यादा बारिश का अनुमान खेती के लिए खुशहाली की सूचना है? इसका जवाब ‘हां’ में भी है और ‘न’ में भी। क्योंकि अनुभव बताता है कि ज्यादा बारिश अपने यहां दुधारी तलवार की तरह है। यह खेती के लिए खुशखबरी भी हो सकती है और कई बार यह खेती के लिए परेशानी का सबब भी बनती है। क्योंकि इस साल अनुमान से करीब 10 दिन पहले मानसून सक्रिय हो गया है, इसलिए जुलाई के महीने में होने वाली खरीफ फसल बुआई का रकबा पिछले साल के मुकाबले 11.3 प्रतिशत बढ़ गया है। इस साल जून की आखिरी तारीख तक ही 26.2 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में खरीफ की बुआई हो चुकी थी। विशेषकर धान, सोयाबीन और तिलहनों का रकबा बढ़ा है।
लेकिन समय से पहले बारिश आने से सबकुछ अच्छा-अच्छा ही नहीं सोचा जा सकता। गुजरात में इस साल अब तक 135 प्रतिशत तक यानी सामान्य से 30 प्रतिशत ज्यादा बारिश हो चुकी है और चूंकि इतनी ज्यादा बारिश महज 20 दिनों के अंतराल में हुई है, इसलिए इसकी तीव्रता, बारिश के पानी का प्रवाह फसलों के लिए फायदेमंद नहीं, अभी तक तो नुकसानदायक साबित हुआ है। विशेषज्ञों की मानें तो अगर पूरी जुलाई यही स्थिति रही तो महाराष्ट्र के ज्यादातर हिस्सों में विशेषकर पुणे और मराठवाड़ा संभाग में 80 से 90 प्रतिशत तक खेती का नुकसान हो सकता है। इन सब बातों को देखते हुए अगर साल 2025 में हम बारिश के कम या ज्यादा के होने वाले नुकसानों के प्रति संवदेनशील नहीं हुए तो आने वाले दिनों में हमारे लिए यह लापरवाही बहुत भरी साबित होगी।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर