क्या मोदी-ट्रम्प के सार्थक संवाद से कटुता कम होगी ?

नई दिल्ली में भारत-अमरीकी व्यापार वार्ता की बाधाओं को दूर करने पर दोनों पक्षों के बीच सकारात्मक बातचीत के दौरान करीब तीन महीने बाद अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को फोन करके जन्मदिन की बधाई देते हुए रूस-यूक्रेन युद्ध-विराम का समर्थन करने के लिए आभार जताना, दोनों देशों के बीच रिश्तों में आई तल्खी को कम करने की कोशिश मानी जानी चाहिए। मोदी और ट्रम्प के बीच हुई इस बातचीत ने दोनों देशों के रिश्तों में नई आशा और सकारात्मकता का संचार किया है। क्योंकि अमरीका के एकतरफा टैरिफ और कुछ सख्त बयानों के बावजूद भारत ने संयम बरता एवं तीखी प्रतिक्रिया की बजाय मसले के सुलझने का इंतजार करते हुए विवेक एवं समझदारी का परिचय दिया। भारत पर थोपे गए ट्रम्प के 50 प्रतिशत टैरिफ  को लेकर अमरीका में साफ  तौर पर दो विरोधी स्वर सुनाई पड़े। ऐसे माहौल में ज़रूरी हो गया है कि दोनों देशों के बीच शीर्ष स्तर पर संवाद जारी रहे। इसी बात को अमरीकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने स्वीकार करते हुए यह उम्मीद जताई थी कि आखिरकार अमरीका और भारत साथ आएंगे, यही मौजूदा वक्त की सबसे बड़ी ज़रूरत है। मोदी एवं ट्रम्प का ताजा संवाद इसी की निष्पत्ति बना है। यह संवाद मोदी के 75वें जन्म दिन के अवसर पर हुआ और इसमें अतीत की कई कड़वाहटों को पीछे छोड़कर भविष्य की संभावनाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया। दरअसल, दोनों नेताओं की बातचीत का बड़ा कारण शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में रूस, चीन और भारत के शीर्ष नेताओं की गर्मजोशी भी बना, जिससे ट्रम्प की चिंताएं बढ़ी थी। इस बैठक के बाद ही पहली बार ट्रम्प के रुख में नरमी के संकेत मिले थे। उसके बाद दस सितम्बर को फिर ट्रम्प ने कहा कि भारत-अमरीका व्यापार वार्ताओं की बाधाओं को दूर करने पर बातचीत जारी है। ताज़ा वार्ता ने यह संदेश दिया कि भारत और अमरीका के रिश्ते किसी एक घटना या परिस्थिति पर निर्भर नहीं, बल्कि दीर्घकालीन रणनीति और साझा हितों की नींव पर खड़े हैं।
आज की दुनिया में भारत और अमरीका का रिश्ता केवल द्विपक्षीय ही नहीं, बल्कि वैश्विक परिदृश्य को भी प्रभावित करता है। अमरीका जहां विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सैन्य शक्ति है, वहीं भारत उभरती हुई आर्थिक ताकत और सबसे बड़ा लोकतंत्र है। दोनों की साझेदारी लोकतांत्रिक मूल्यों, पारदर्शिता और वैश्विक शांति की आकांक्षाओं पर आधारित है। हाल के वर्षों में कभी-कभी मतभेद ज़रूर सामने आए-जैसे व्यापार शुल्क, वीज़ा नीतियां, भारत-पाक युद्ध विराम और रक्षा समझौते इन मतभेदों के बावजूद रणनीतिक साझेदारी मजबूत होती रही है। भारत और अमरीका के बीच व्यापारिक संबंध लम्बे समय से चर्चा का विषय रहे हैं। कभी शुल्क वृद्धि को लेकर तनाव हुआ, तो कभी आयात-निर्यात की नीतियों को लेकर असहमति, किन्तु ट्रम्प-मोदी वार्ता के बाद एक बार फिर नए समझौते और अवसर सामने आ सकते हैं। अमरीका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और आईटी, सेवा क्षेत्र, ऊर्जा और तकनीकी निवेश में दोनों के बीच गहरा सहयोग है। प्रधानमंत्री मोदी ने व्यापारिक अड़चनों को दूर करने पर ज़ोर दिया है और ट्रम्प ने भी व्यापार घाटे को कम करने के लिए सहयोग का संकेत दिया। यह संकेत आने वाले समय में द्विपक्षीय व्यापार को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं।
भारत और अमरीका का रक्षा सहयोग पिछले एक दशक में तेज़ी से बढ़ा है। अमरीका ने भारत को महत्वपूर्ण रक्षा तकनीक उपलब्ध कराई है और संयुक्त सैन्य अभ्यासों से सुरक्षा साझेदारी मजबूत हुई है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत-अमरीका का रक्षा सहयोग न केवल द्विपक्षीय है, बल्कि पूरे क्षेत्रीय संतुलन के लिए अहम है। चीनी मनमानी पर नियंत्रण के लिए अमरीका को खासतौर पर भारतीय सहयोग की ज़रूरत है। इसी मकसद से क्वॉड का गठन किया गया, जिसे अमरीकी सरकार ने तवज्जो भी दी। लेकिन, ट्रम्प की टैरिफ  पॉलिसी की वजह से क्वॉड के भविष्य पर सवाल उठने लगे हैं। वहीं, वॉशिंगटन में यह भी चिंता बनी कि पिछले दो दशकों में भारत-अमरीका रिश्तों में जो प्रगति हुई थी, वह ट्रम्प की महत्वाकांक्षाओं एवं अतिश्योक्तिपूर्ण हरकतों से पिछले कुछ दिनों में बेकार होती हुई दिख रही थी, लेकिन ‘देर आयद दुरस्त आयद’ की कहावत के अनुसार दोनों शीर्ष नेताओं की बातचीत से अब अंधेरे छंटते हुए दिख रहे हैं। अमरीका चाहता है कि भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संतुलन कायम रखने में और बड़ी भूमिका निभाए, वहीं भारत अपनी सामरिक स्वतंत्रता बनाए रखते हुए सहयोग को और गहरा करना चाहता है। 

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