भारत की चिंता में वृद्धि
विगत दिवस पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हुआ सैन्य समझौता बहुत अहम माना जा रहा है। इसके कई तरह के अर्थ भी निकाले जा रहे हैं और यह भी चर्चा हो रही है कि इसका पश्चिमी एशिया और दक्षिणी एशिया के क्षेत्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा। निश्चय ही भारत के लिए भी यह बेहद गम्भीर और चिन्ताजनक बात है। इस समझौते का अहम संकल्प है कि यह दोनों देश किसी भी हमले के विरुद्ध मिलकर काम करेंगे। यदि दोनों देशों में किसी एक के विरुद्ध कोई हमला होता है तो यह हमला दोनों देशों पर माना जाएगा। पाकिस्तान के साथ जिस तरह के भारत के संबंध बने हुए हैं, उनके दृष्टिगत इस समझौते का भारत पर भी प्रभाव पड़ सकता है। जहां तक सऊदी अरब का संबंध है, पिछले लम्बे समय से भारत और सऊदी अरब के संबंधों में बहुत निकटता देखी जाती रही है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी अप्रैल महीने में वहां गए थे, जहां उनका भव्य स्वागत किया गया था। सऊदी क्राऊन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने भी भारत का दौरा किया था। पिछले एक दशक में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का इस वर्ष अप्रैल में सऊदी अरब का तीसरा दौरा था।
सऊदी अरब सहित खाड़ी के ज्यादातर देश विगत लम्बी अवधि से अमरीका के साथ खड़े दिखाई देते रहे हैं। इन देशों में अमरीकी अड्डों सहित उनकी सेना की भी उपस्थिति है। दूसरी तरफ खाड़ी देश इज़रायल-हमास युद्ध पर भी भयभीत हुए प्रतीत होते हैं। इस कारण भी कि कतर जो इज़रायल और हमास के बीच लगातार समझौता करने के लिए यत्न करता रहा है, पर भी विगत दिवस वहां हमास नेताओं की उपस्थिति को बहाना बनाकर इज़रायल ने हमला कर दिया था। 4 महीने पहले पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के भीतर आतंकवादियों के हैड-क्वार्टरों पर विनाशकारी हमले किए थे परन्तु ऐसा होते हुए भी उस समय पाकिस्तान भारत के विरुद्ध युद्ध छेड़ने की हिम्मत नहीं कर सका था परन्तु इस पूरे समय में वह भारत के विरुद्ध ज़हर ज़रूर उगलता रहा है। दूसरी तरफ कतर पर इज़रायली हमले के बाद सऊदी अरब सहित खाड़ी देश डर गए प्रतीत होते हैं। पैदा हुई ऐसी स्थिति ने भी सऊदी अरब को पाकिस्तान के निकट लाया है। भारत को इस समझौते का एक बड़ा नुकसान हो सकता है, क्योंकि पाकिस्तान में भारत के विरुद्ध सक्रिय आतंकवादी संगठन इस समझौते के कारण भारत के विरुद्ध पुन: सक्रिय हो सकते हैं। पाकिस्तान ने भी कभी इस बात से इन्कार नहीं किया और न ही इस बात को छिपाने का यत्न किया है कि उसने भारत के विरुद्ध अपने देश में आतंकवादी शिविरों का जाल बिछाया हुआ है, जो आज भी प्रतिदिन भारत को घायल करने की योजनाएं बनाते रहते हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि यदि ऐसे हमले जारी रहते हैं और भारत इनकी प्रतिक्रिया स्वरूप कोई कार्रवाई करता है, तो क्या सऊदी अरब सामने आकर भारत के विरुद्ध खड़ा होगा? ऐसी स्थिति में भारत के लिए ज़ोखिम और भी बढ़ जाएगा। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के साथ चीन के अतिरिक्त तुर्की भी आ खड़ा हुआ था। इस ताज़ा समझौते के अनुसार सऊदी अरब भी इस पंक्ति में खड़ा हो गया दिखाई देता है।
आज जिस तरह विश्व के कई देशों में अनिश्चितता वाली स्थिति पैदा हो चुकी है, भारत को भी इसके मुकाबले में स्वयं को तैयार करना होगा। इसके साथ ही यह भी देखने वाली बात होगी कि क्या ऐसा समझौता बड़ी आर्थिक मंदी में फंसे पाकिस्तान को इसमें से बाहर निकाल सकेगा और वहां जो राजनीतिक स्तर पर बड़ा हड़कम्प मचा हुआ प्रतीत होता है, क्या अब पाकिस्तान उस स्थिति से भी निकल पाएगा? परन्तु इस समय तो पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति का भार ही इस सीमा तक बढ़ता जा रहा है, जिसे उठा पाने में असमर्थ हुआ दिखाई देता है। इस कारण भी उसके भविष्य पर अनेक तरह के प्रश्न-चिन्ह लगते दिखाई देते हैं। इस तरह की मुश्किलों में घिरे पाकिस्तान की सऊदी अरब कितनी और किस तरह सहायता कर सकेगा और इस समझौते के बाद सऊदी अरब के भारत के साथ आर्थिक और राजनीतिक रिश्ते किस प्रकार के रहते हैं, यह भी देखने वाली बात होगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द