ऐतिहासिक संबंधों की छाया में झुलसते भारत-नेपाल सीमा के लोग !

नेपाल में अब शांति है। इस महीने के दूसरे सप्ताह के दो तीन दिन नेपाल में भारी उथल-पुथल भरे और अराजक हो गए थे। नेपाल की युवा पीढ़ी जिसे ‘जेन-ज़ैड’ नाम दिया गया है, ने सरकार के भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंध के बाद जो आंदोलन शुरू किया था, वह दो दिन में ही इतना उग्रहो गया था, जिसके कारण के.पी. शर्मा ओली की पूरी सरकार को ही इस्तीफा देना पड़। तीन दिन के बाद ही स्थिति नियंत्रण में आ गयी और पांचवें दिन यानी12 सितम्बर, 2025 को देर शाम नेपाल सर्वोच्च न्यायलय की मुख्य न्यायाधीश रह चुकीं 73  वर्षीय सुशीला कार्की को अंतरिम सरकार का प्रधानमंत्री बनाने पर सहमति बनी। उसी दिन रात नौ बजे के आसपास सुशीला कार्की ने अपने पद की शपथ भी ले ली थी। 
वहां पर यह शांति कब तक रहेगी, कोई नहीं जानता, क्योंकि सुशीला कार्की ने अंतरिम प्रधानमंत्री बनने के बाद ही भारत के संबंध में जो बयान दिये हैं, उससे नेपाल की कुछ पार्टियों में हलचल मचनी स्वाभाविक है। सुशीला कार्की ने कहा है कि वह भारत और नेपाल के बीच लिपुलेक, लिम्पिया धुरा और काला पानी जैसे विवादों पर संविधान की आत्मा के मुताबिक हल करवाने की कोशिश करेंगी। अब उनके इस बयान पर देखना है कि नेपाल में उन्हें कहीं भारत की एजेंट के रूप में तो कुछ लोग बदनाम करने की कोशिश नहीं करेंगे? भारत के बीएचयू से राजनीति विज्ञान में परास्नातक की डिग्री हासिल कर शिक्षा और विधि के क्षेत्र में अपना कॅरियर आगे बढ़ाने वाली नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि वह आंदोलनकारी युवाओं के सपनों को कैसे पूरा करती हैं। 
भारत और नेपाल के रिश्तों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि दोनों देशों के सीमावर्ती क्षेत्रों में कुछ इस तरह का आलम देखने को मिलता है, जो चीज भारत में सस्ती मिलती है, उसे खरीदने के लिए नेपाली लोग बेरोक-टोक भारत चले आते हैं और ऐसी ही कोई दूसरी खरीदने के लिए भारत के लोग नेपाल जाने से परहेज़ नहीं करते। उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय की एक प्रैस में नेपाल के स्कूल के प्रश्नपत्र तक छपने आते रहे हैं। इसी तरह उत्तर प्रदेश के लखीमपुर सरीखे कई सीमावर्ती ज़िलों के प्रमुख शहरों में नेपाल के लोग अपनी कार सर्विस कराने आते हैं। भारत के लोग भी सीमा पार कर नेपाल से आयातित सामान खरीदने जाते हैं। यह परस्पर निर्भरता का ही नमूना है कि भारतीय लोगों की रिश्तेदारी नेपाल में है। बिहार, उत्तर प्रदेश और सिक्किम में भी ऐसे लोग होंगे ही। लिहाजा नेपाल और भारत दो अलग-अलग देश होते हुए भी एक दूसरे के पूरक हैं। 
लिहाजा 8 से 10 सितम्बर, 2025 के बीच तीन दिन की अवधि में भी नेपाल में जो कुछ हुआ, उसका असर भी भारत पर प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप अवश्य ही पड़ेगा। नौकरी और रोज़गार के सिलसिले में भी भारत और नेपाल के बीच गजब का रिश्ता है। इसी तरह भारत का व्यवसायी जितनी जल्दी नेपाल में जाकर अपना कारोबार शुरू कर लेता है और मुनाफा कमाते हुए वहां अपना व्यवसाय जमा लेता है, उतनी आसानी से किसी अन्य देश में शायद ही संभव हो। नेपाल की हर घटना का भारत पर और भारत की हर घटना का नेपाल पर असर होता है। इस बार भी ऐसा ही हुआ। भारत और नेपाल के आर्थिक और रोज़गार संबंधी मामलों में परस्पर निर्भरता का एक उदाहरण इस रूप में भी देखा जा सकता है कि विगत 8 और 9 सितम्बर, 2025 को जब नेपाल में हिंसा का दौर था, इस दौरान दोनों का हर तरह का संपर्क टूटा हुआ था।
नेपाल और भारत के संबंधों का आलम यह है कि नेपाल के कई राजनीतिक घरानों के नेताओं ने भारत में रहकर ही पढ़ाई भी की। राजनीति के साथ ही फिल्म क्षेत्र में भी नेपाल और भारत के सम्बन्ध जग जाहिर हैं।  असंख्य उदाहरण हैं जिनसे पता चलता है कि नेपाल और भारत अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से बंधे दो अलग-अलग राष्ट्र ज़रूर हैं, लेकिन अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए इन दोनों ही देशों के नागरिक एक-दूसरे की ज़मीन से कुछ इसी तरह से जुड़े हुए हैं, जिस तरह से एक ही शहर में रहने वाले दो व्यक्ति रोज़ी-रोटी कमाने और नौकरी करने के लिए एक-दूसरे के स्थान पर आते-जाते दिखाई देते हैं। 
नेपाल में फैली अराजकता ने दोनों देशों के नागरिकों पर चौतरफा मार की है। सुशीला कार्की सरकार को भारत और नेपाल की इस सांस्कृतिक आत्मा को मज़बूत करने की कोशिश करनी चाहिए, जिससे दोनों देशों के सीमावर्ती लोगों का भला हो और सियासी उथल-पुथल उन्हें परेशान न कर सके।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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