बिहार की नई सरकार से उम्मीदें

बिहार में सुलझे हुए राजनीतिज्ञ नितीश कुमार ने दसवीं बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण कर ली है। अभी हुए चुनावों के दौरान बिहार के लोगों ने एक बार फिर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को ऐसा भरपूर समर्थन दिया है, जो आश्चर्यजनक है। ऐसे परिणामों की उम्मीद नहीं की जा सकती थी परन्तु इस जीत ने यह ज़रूर अहसास करवा दिया है कि बिहार के लोग नितीश कुमार के नेतृत्व से बड़ी सीमा तक सन्तुष्ट हैं। विगत 20 वर्ष से वह प्रदेश की राजनीति में छाये हुए हैं। वर्ष 2005 में जब नितीश कुमार पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे, तो उस समय भी यह बड़ी उम्मीद बंधी थी कि वह प्रदेश को बेहतर बनाने के लिए अपना अहम योगदान डालेंगे। वहां के लोगों ने वर्ष 1990 से लेकर वर्ष 2005 तक लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी के शासन को देखा था। उस समय बड़ी आलोचना होती रही थी कि लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में प्रदेश बुरी तरह से पिछड़ गया है। विपक्षी दल इसे जंगल राज कहते थे। तब अमन-कानून की स्थिति भी बेहद बिगड़ी हुई थी। उस समय बिहारी लोग भारी संख्या में देश के अन्य राज्यों में रोज़गार के लिए जाते थे। प्रदेश में मूलभूत सुविधाओं की बेहद कमी महसूस होती रही थी।
 परिवारवाद और भ्रष्टाचार ने प्रदेश में अपना जाल पूरी तरह फैला लिया था। इसी कारण मुख्यमंत्री होते हुए लालू प्रसाद और उनके साथियों को अनेक घोटालों में शामिल होने के कारण लम्बी सज़ाएं सुनाई गई थीं, परन्तु लालू प्रसाद की कुर्सी पर बने रहने की लालसा नहीं गई। जेल में होते हुए भी उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी जो राजनीति से अनजान थी, को मुख्यमंत्री की उच्च कुर्सी पर बिठा दिया था। केन्द्रीय मंत्री होते हुए भी लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार पर अनेक आरोप लगते रहे थे। ऐसे कारणों के दृष्टिगत ही वह और उनके ज्यादातर पारिवारिक सदस्य आज तक सज़ाएं भुगत रहे हैं या ज़मानत पर बाहर आए हुए हैं। उनके बाद नितीश कुमार ने चुनाव लड़ते समय प्रदेश की मूलभूत ज़रूरतों को पूरा करने संबंधी कुछ वायदे किए थे, जिनमें बेहतर सड़कें और अमन-कानून की स्थिति में भारी सुधार लाना भी शामिल था। मुख्यमंत्री बन कर उन्होंने 5 वर्षों में सन्तुष्टिजनक ढंग से ये वायदे पूरे कर दिए थे। इसीलिए वह वर्ष 2010 में पुन: मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हो गए थे। उस समय उन्होंने प्रदेश में बिजली व्यवस्था को बेहतर करने का वायदा किया था, जो उन्होंने अपने कार्यकाल में बड़ी सीमा तक पूरा कर लिया था। 
दो दशकों की अवधि में समय-समय पर उन्होंने जो वायदे किए थे, उनमें प्रत्येक घर में उपयोग हेतु पानी पहुंचाना और विद्यार्थियों को ब्याज रहित ऋण देना आदि मुख्य रूप से शामिल थे। अपने इन वायदों पर भी वह ज्यादातर सीमा तक पूरे उतरे थे, परन्तु इस दौरान उन पर अवसरवादी राजनीति खेलने के आरोप भी लगते रहे थे, जिससे उनकी छवि धूमिल ज़रूर हुई थी, परन्तु भ्रष्टाचार और परिवारवाद के आरोपों से वह हमेशा बचे रहे। अभी हुए चुनावों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को हुई बड़ी जीत ने भी यह दर्शा दिया है कि लोग महागठबंधन जिसमें लालू प्रसाद यादव का राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ-साथ कुछ वामपंथी पार्टियां भी शामिल थीं, द्वारा लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव को लम्बी हिचकिचाहट और लम्बी देरी के बाद मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया गया था। इस गठबंधन ने चुनाव में जीतने के लिए प्रयास तो पूरे किए परन्तु इन पार्टियों में चुनावों के दौरान एकजुटता की कमी महसूस होती रही और सीटों के विभाजन के मामले में भी यह महागठबंधन समय पर बेहतर तालमेल नहीं कर सका था। 
दूसरी तरफ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में भाजपा, नितीश कुमार का जनत दल (यू) और चिराग पासवान की लोक जन शक्ति पार्टी मुख्य रूप में शामिल थीं, जिनमें सीटों के विभाजन को लेकर कोई विलगाव नहीं देखा गया। विधानसभा की 243 सीटों के लिए हुए चुनावों में भाजपा ने 101 और जनता दल (यू) ने भी इतनी ही सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें भाजपा बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई और जनता दल (यू) दूसरे स्थान पर रहा। भाजपा ने परिपक्वता दिखाते हुए मुख्यमंत्री पद के लिए नितीश कुमार को ही चुना, जिससे उनका कद और भी बढ़ा  दिखाई देता है। अब जिस तरह की सरकार पुन: बनी है, उससे यह उम्मीद की जानी स्वाभाविक है, कि वह जहां अपने चुनावी वायदों को पूरा करने के लिए यत्नशील होगी, वहीं देश के अहम प्रदेश बिहार को तेज़ी से विकास के मार्ग पर लाने में भी तेज़ी से काम करेगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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