भारतीय संविधान की सार्थकता संबंधी हो खुली चर्चा

भारत का संविधान दुनिया में सबसे बड़ा लिखित दस्तावेज़ है जो विस्तृत है, लचीला है और उसमें कभी भी संशोधन करने की मज़बूत प्रक्रिया है। देश के सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ की 75वीं वर्षगांठ पर गंभीर चर्चा, कार्यशाला, वार्तालाप और संवाद होना चाहिए था, लेकिन सरकारी खानापूर्ति और संवाद साधनों द्वारा मामूली खबर के रूप में लेना अचरज़ का विषय है। इस विशेष अवसर पर विस्तारपूर्वक विचार-विमर्श होना चाहिए था क्योंकि संविधान के अनुसार ही पूरा देश चलता है। उसके प्रावधानों का दुरुपयोग न हो सके, इसलिए निगरानी और सतर्कता आवश्यक है। अनेक संशोधन होने के बावजूद मूलभूत समस्याओं से प्रत्येक नागरिक जूझ रहा है, इसका विश्लेषण होना चाहिए। 
संविधान में हमें मौलिक अधिकार दिए गए हैं, लेकिन वे सब को मिलते क्यों नहीं, यह जानना आवश्यक है। समता यानी बराबरी का अधिकार है और उसके साथ ही धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव न करने का निर्देश भी है, कानून के सामने सब बराबर हैं, सही है, लेकिन इसे सिद्ध करना लंबी कानूनी प्रक्रिया है। न्याय लेने के लिए वर्षों गुज़र जाते हैं। कहने को सभी के लिए समान अवसर हैं लेकिन व्यवहार में पैसा, पहुंच और ताक्त का इस्तेमाल करने का सामर्थ्य रखने वाला ही उपयुक्त पाया जाता है। इसी तरह शेष सभी अधिकार हैं जो संविधान में बड़े  प्रभावशाली शब्दों में लिखे गए हैं, लेकिन प्रत्येक नागरिक को इनका लाभ मिलना चाहिए।
भ्रष्टाचार मुक्ति हेतु संशोधन : महत्वपूर्ण विषय है रिश्वतखोरी रोकने की कोशिशें की जाती हैं, लेकिन इसका बोलबाला कम नहीं होता। भ्रष्टाचारी की पहचान हो जाने और आरोप सिद्ध होने पर भी उसे दंड नहीं मिलता या कानूनी प्रक्रिया के मुताबिक कितने भी दोषी छूट जायें लेकिन एक भी निर्दोष को सज़ा न हो, के आधार पर सभी आरोपी धीरे-धीरे मुक्त होकर वही करने लगते हैं जिसके वे आरोपी थे। ऐसा संशोधन ज़रूरी है कि जिस व्यक्ति को भ्रष्टाचार के आरोप सिद्ध होने पर सज़ा मिली हो, उसे कोई रियायत न दी जाए। 
इंटरनेट और डिजिटल संसाधन : देश की गरिमा के लिए हरेक व्यक्ति का शिक्षित होना ज़रूरी है और शिक्षा भी कैसी, जो भारतीय पारम्परिक ज्ञान विज्ञान पर आधारित होने के साथ आधुनिक ज्ञान का भंडार हो। इसके लिए इंटरनेट, डिजिटल संसाधन और आधुनिक टेक्नोलॉजी तक पहुंच सकने का मौलिक अधिकार पाने के लिए संविधान में संशोधन होना चाहिए। अभी तक इस पर धनपतियों और वैश्विक कंपनियों का कब्ज़ा है और भारत में बनी टेक्नोलॉजी और तकनीक या हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर उनका नियंत्रण है। हरेक व्यक्ति को इनका इस्तेमाल का अधिकार बिना किसी शुल्क के होना चाहिए। यह ऐसा क्रांतिकारी संशोधन होगा जो विश्व की बौद्धिक संपदा के साथ भारतीय समाज के विकास में अभूतपूर्व योगदान देगा। आज की युवा पीढ़ी के लिए वरदान होगा और अपना देश छोड़कर विदेशों में प्रतिभा का पलायन करने की रोकथाम करेगा। 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल का यह स्वर्णिम अध्याय होगा और वह 2047 के बजाय 2030 तक ही अपनी घोषणाओं को साकार कर सकेंगे। देश भर में इंटरनेट और डिजिटल माध्यमों का उपयोग आसानी से करने के अधिकार से हरेक व्यक्ति इनसे अपनी और पूरे देश की सुरक्षा कर सकेगा। विदेशी या यहां तक कि कोई आतंकवादी भी भारतीय नागरिकों द्वारा स्वयं बनाये सुरक्षा चक्र को भेद नहीं सकेगा। ऐसी कोई भी गतिविधि तुरंत सार्वजनिक हो जाएगी और किसी विरोधी संगठन की हिम्मत नहीं होगी कि वह देश में किसी अनहोनी को अंजाम दे सके। प्रत्येक व्यक्ति का अपना सुरक्षा चक्र होगा और किसी भी क्षेत्र में इंटरनेट सेवाएं बंद करने की ज़रूरत नहीं रहेगी क्योंकि चोरी छिपे वारदात करने वाले देश या विदेश में कहीं भी हों, उन्हें हरेक नागरिक पहचान सकेगा। 
राजनीतिक सुधार हेतु संशोधन : राजनीतिक उथल-पुथल रोकने के लिए संविधान में संशोधन किया जाए कि कोई भी सज़ायाफ्ता व्यक्ति किसी भी स्थिति में चुनाव न लड़ सके, दल बदल कानून की खामियों को दूर किया जाए और जो नेता या दल सत्ता में रहते हुए किसी भी तरह का घोटाला करते पाए जाएं, वे सार्वजनिक रूप से अपमानित और दंडित हों तथा भविष्य में चुनाव लड़ने के अयोग्य हों। ‘एक देश-एक चुनाव’ लागू हो और चुनाव आयोग पर किसी भी सरकारी कर्मचारी का अपने किसी भी चुनाव संबंधी कार्य में उपयोग करने पर रोक हो। जब चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है तो वह अपने कार्य के लिए स्वयं अपना कैडर बनाये, चाहे सीमित अवधि के लिए जैसा कि सेना में किया गया है। उस तरह कर्मचारियों की नियुक्ति करे, उन्हें प्रशिक्षित करे और स्पष्ट करे कि जिसे नियुक्त किया गया है वह पद अस्थायी या निश्चित अवधि के लिए ही है। 
निष्कर्ष यह है कि यदि संविधान को समझना है तो उसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर वर्कशॉप, लर्निंग और ट्रेनिंग सेंटर हों। जो भी संशोधन प्रस्तावित हों, वे नई वास्तविकताओं को समझकर और उनके अनुसार योजनाएं बनाने के साथ किए जाने चाहिए। यदि किसी राजनीतिक उद्देश्य के लिए कोई संशोधन नहीं होना चाहिए। संविधान की विशेषता है कि आंदोलन अथवा हिंसा का सहारा लिए बिना संशोधन किया जा सकता है। बहुत-से संशोधन हुए हैं जिनका प्रभाव बहुत व्यापक स्तर पर पड़ा और नागरिकों का जीवन सुगम और सुरक्षित हुआ। 

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