एस.आई.आर. : क्या अधिक दबाव में काम कर रहे हैं बीएलओ
देश के 12 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में 4 नवम्बर से मतदाता सूची की विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया चल रही है। विपक्षी दलों की कई सरकारों ने इस प्रक्रिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की हैं और माननीय अदालत द्वारा उन पर सुनवाई जारी है। बिहार में चुनाव आयोग इस प्रक्रिया को पूरी कर चुका है और उसका भी विपक्षी दलों ने जबरदस्त विरोध किया था। बिहार में जब एसआईआर की प्रक्रिया चल रही थी तो कई भी दल इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में नहीं गया था, लेकिन माननीय अदालत ने इस प्रक्रिया पर रोक लगाने से इंकार कर दिया। जब इस प्रक्रिया का दूसरा चरण शुरु किया गया तो विपक्षी दल सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं।
वैसे देखा जाए तो चुनाव आयोग कोई नया काम नहीं कर रहा है बल्कि भारत में ये प्रक्रिया पहले भी 11 बार की जा चुकी है। हैरानी की बात यह है कि पहले इस प्रक्रिया के बारे में किसी को पता भी नहीं चला क्योंकि इसका बिल्कुल भी विरोध नहीं हुआ था। देखा जाए तो यह चुनाव आयोग का संवैधानिक कर्त्तव्य है जिसे वह पूरा कर रहा है। इसके लिए संविधान द्वारा ही उसे अधिकार दिए गए हैं जिनके अनुसार वह काम कर रहा है। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट भी इसमें दखल नहीं दे पा रहा है।
इस प्रक्रिया द्वारा मतदाता सूची को अपडेट किया जाना है। इसमें 18 साल से ज्यादा उम्र के नए मतदाताओं को जोड़ा जाएगा। जिन लोगों की मौत हो चुकी है या वे लोग जो स्थायी रूप से अपना घर छोड़ चुके हैं, उनका नाम इस प्रक्रिया द्वारा हटाया जाना है। इसके अलावा मतदाता सूची में नाम और पते में हुई गलतियों को ठीक किया जाना है। चुनाव आयोग द्वारा एसआईआर कराने का उद्देश्य यह है कि कोई भी योग्य मतदाता सूची में न छूटे और कोई भी अयोग्य मतदाता सूची में शामिल न रहे। इस काम के लिए चुनाव आयोग ने सभी राज्यों में बीएलओ की नियुक्ति की है । सभी बीएलओ सरकारी कर्मचारी हैं, जिन्हें एक निश्चित समय में चुनाव आयोग द्वारा दिए गए काम को पूरा करना है। इसके लिए इन्हें घर-घर जाकर फार्म देना है और फिर उसे लेकर मतदाता सूची में संशोधन करना है ।
चुनाव आयोग के पास चुनावी कार्य के लिए कर्मचारी नहीं होते हैं। वह यह काम राज्य और केंद्र सरकार के कर्मचारियों से करवाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार 22 दिन में 7 राज्यों में 25 बीएलओ की एसआईआर की प्रक्रिया के दौरान मौत हो चुकी है। सबसे ज्यादा 9 मौतें मध्य प्रदेश में हुई हैं जबकि तमिलनाडु और केरल में एक-एक मौत हुई है। इसके अलावा बंगाल में 3 मौतों की खबर है जबकि वहां ही बीएलओ की मौत बड़ा मुद्दा बनी हुई है। पश्चिम बंगाल के मंत्री अरूप बिश्वास ने कहा है कि एसआईआर के चलते राज्य में 34 लोगों ने जान दे दी है। इन मौतों का चुनाव आयोग ने भी संज्ञान लिया है और सभी राज्यों से रिपोर्ट मांगी गई है। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि बीएलओ काम के दबाव में अपनी जान दे रहे हैं। सवाल यह है कि क्या बीएलओ काम के इतने दबाव में हैं कि वे आत्महत्या तक करने के लिए मजबूर हो रहे हैं? क्या एसआईआर करना इतना मुश्किल है कि सरकारी कर्मचारी इस काम को करने में मुश्किल महसूस कर रहे हैं? कुछ बीएलओ की मौत से यह सवाल खड़ा हुआ है और विपक्षी दलों ने भी इसे मुद्दा बना दिया है। उनका कहना है कि सरकार का बीएलओ पर इतना दबाव है कि वे मानसिक तनाव के कारण आत्महत्या तक करने के लिए मजबूर हो रहे हैं।
बिहार में एसआईआर की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है जिसमें किसी भी कर्मचारी द्वारा आत्महत्या करने की खबर नहीं आयी और न ही किसी कर्मचारी के दिल के दौरे से मरने का समाचार प्राप्त हुआ। बिहार में एसआईआर के दौरान किसी भी कर्मचारी ने काम के दबाव का आरोप नहीं लगाया। चुनाव आयोग का कहना है कि इस प्रक्रिया के दौरान कर्मचारी को लगभग एक हज़ार मतदाताओं के फार्म बांटने और जमा करने हैं। यह काम कर्मचारियों के लिए नया नहीं है और इसके लिए उनको पूरा प्रशिक्षण दिया गया है। आयोग का कहना है कि अगर इन घटनाओं में सच्चाई है तो बिहार में ऐसी घटनाएं सामने क्यों नहीं आईं? उसका यह भी कहना है कि बिहार में तो कम समय में इस प्रक्रिया को पूरा किया गया है। इसके अलावा आयोग का कहना है कि दूसरे चरण की प्रक्रिया में बीएलओ को कोई दस्तावेज़ भी नहीं लेने हैं। आयोग ने कहा है कि ये घटनाएं तब सामने आ रही हैं, जब एसआईआर का अधिकांश काम पूरा हो गया है। उसका कहना है कि ये घटनाएं जिन राज्यों में सामने आई हैं, उनसे इस संबंध में रिपोर्ट मांगी गई है, लेकिन अभी तक किसी भी राज्य से रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई है। चुनाव आयोग का बयान ठीक हो सकता है लेकिन इस सच्चाई कोअनदेखा नहीं किया जा सकता। दो दर्जन से ज्यादा कर्मचारियों की मौत गंभीर मामला है। इसकी जांच तो होनी ही चाहिए कि इन कर्मचारियों की मौत कैसे हुई है। आत्महत्या करने की कुछ और वजह भी हो सकती है लेकिन ये घटनाएं एसआईआर की प्रक्रिया के दौरान हुई हैं। इन सवालों का जवाब ढूंढने की ज़रूरत है।
इस समस्या का दूसरा पहलू भी है। बीएलओ पर सिर्फ काम का ही दबाव हो, ऐसा नहीं हो सकता है। उनकी आत्महत्याओं के कुछ और भी कारण हो सकते हैं। जिन बीएलओ की दिल के दौरे से मौत हुई है, उनका स्वास्थ्य पहले से खराब हो सकता है। हो सकता है कि कुछ जगहों पर बीएलओ पर गलत काम करने का दबाव बनाया जा रहा हो।
कुछ भी हो लेकिन सच्चाई जनता के सामने आनी चाहिए क्योंकि हर व्यक्ति की जान की कीमत होती है। बीएलओ की मौत देश का ज़रूरी काम करते हुए हुई हैं, इसलिए भी यह एक गंभीर मामला है। (युवराज)

