पहलगाम से सिडनी तक वैश्विक आतंकवाद का घिनौना रूप

समकालीन दुनिया कई प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रही है जिनमें वैश्विक आतंकवाद एक जटिल एवं गंभीर समस्या है जिसका सामना न केवल किसी एक देश या धर्म को बल्कि पूरी दुनिया को करना पड़ रहा है। वैश्विक आतंकवाद संगठित हिंसा का वह रूप है जिसका उद्देश्य आम नागरिकों में आतंक का माहौल पैदा करना है। कुछ विद्वानों का मानना है कि वैश्विक आतंकवाद का उद्देश्य वैचारिक या धार्मिक लक्ष्यों की प्राप्ति करना होता है जबकि इसका वास्तविक उद्देश्य वैचारिक या धार्मिक लक्ष्य नहीं बल्कि आम लोगों में आतंक फैलाना हो सकता है क्योंकि वैचारिक या धार्मिक उद्देश्यों की पूर्ति अन्य माध्यमों से भी की जा सकती है। 
इस आतंकवाद की शुरुआत कब और कैसे हुई, इस पर विद्वानों में मतभेद हैं लेकिन यह स्पष्ट है कि आतंकवाद किसी न किसी रूप में मानव इतिहास में हमेशा मौजूद रहा है। इससे बचने के लिए मानवीय सभ्यता ने निरन्तर प्रयास किए हैं। लाखों लोगों ने मानव सभ्यता को बेहतर बनाने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यदि हम इतिहास के पन्नों पर नज़र डालें तो यह स्पष्ट होता है कि सत्ता, संसाधनों और पहचान के लिए हज़ारों हिंसक संघर्ष हुए हैं, जिनमें लाखों लोगों की जान गई है। हालांकि विभिन्न माध्यमों के द्वारा मानवीय सभ्यता को अधिक शांतिपूर्ण और बेहतर बनाने का निरन्तर प्रयास भी किया गया है।  
इस संदर्भ में यह प्रश्न अक्सर उठता है कि क्या इस्लामिक समाज आतंकवाद को समाप्त करने का प्रयास नहीं कर रहे हैं? यह कहना न केवल तथ्यात्मक रूप से गलत है होगा बल्कि गैर-जिम्मेदाराना भी। इस्लामिक समाजों के भीतर भी बहुसंख्यक लोग आतंकवाद के विरोधी हैं क्योकि वह स्वयं इसके सबसे बड़े शिकार हो रहे हैं। इस्लामिक समाज में कुछ कट्टरपंथी संगठन धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या और हिंसा को सही ठहराने की कोशिश करते हैं। जिसकी बहुसंख्यक इस्मालिक समाज द्वारा आलोचना की जाती है, लेकिन सिर्फ आलोचना से काम नहीं चलेगा। अब महत्त्वपूर्ण सवाल यह कि इस आतंकवाद का खत्म कैसे हो है?  इस्लामिक आतंकवाद को खत्म करने के लिए इस्लामिक समाज को आगे आना होगा। उन्हें उस हर मान्यता का विरोध करना चाहिए जो मानवता के विरोध में है। 
भारत भी लंबे समय से आतंकवाद से पीड़ित है। सीमा पार आतंकवाद और कट्टरपंथी नेटवर्क देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती है।  साउथ एशिया टेररिज़्म पोर्टल की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 से लेकर दिसम्बर 2025 तक भारत में कुल 24,507 आतंकवादी घटनाएं हुईं, जिनमें 14,566 नागरिकों और 7,605 सुरक्षा कर्मियों की जान गई। ये आंकड़े केवल संख्या नहीं हैं बल्कि वे उन परिवारों की पीड़ा और सामाजिक क्षति को दर्शाते हैं जिनकी भरपाई संभव नहीं है। 22 अप्रैल, 2025 को कश्मीर घाटी के पहलगाम में हुआ आतंकवादी हमला इसी त्रासदी का एक और उदाहरण है। इस हमले में 25 हिंदू और एक मुस्लिम सहित कुल 26 निर्दोष लोगों की हत्या कर दी गई। यह घटना स्पष्ट रूप से दिखाती है आतंकवाद भारत के लिए गंभीर चुनौती है। इसका तभी खात्मा हो सकता है जब इस प्रत्येक तरह का संरक्षण मिलना बंद हो जाएगा। आतंकवाद से केवल दक्षिण एशिया ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया प्रभावित है।
 इसी आतंकवाद का प्रभाव ऑस्ट्रेलिया में भी देखने को मिला। 14 दिसम्बर को ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर के बोंडी बीच के समीप स्थित आर्चर पार्क में यहूदी समुदाय को लक्ष्य बनाकर किया गया आतंकवादी हमला इस तथ्य को उजागर करता है। ये यहूदी लोग हनुक्का पर्व के आयोजन हेतु एकत्रित हुए थे। ये लोग हनुक्का पर्व को ‘रोशनी का त्योहार’ के रूप में मानते है। ऐसे शांतिपूर्ण धार्मिक आयोजनों को निशाना बनाना स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है कि आतंकवाद का उद्देश्य केवल शारीरिक क्षति पहुंचाना नहीं, बल्कि व्यापक स्तर पर भय का माहौल पैदा करना होता है। पहलगाम से सिडनी तक फैली आतंकवादी घटनाएं हमें यह याद दिलाती हैं कि यह एक वैश्विक समस्या है जिसका समाधान भी वैश्विक स्तर पर किये गए प्रयासों से ही निकल सकता है। इसलिए आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई केवल किसी एक देश की नहीं बल्कि पूरी मानवता की साझी ज़िम्मेदारी है। जब तक दुनिया के समाज मिलकर इस प्रकार की घटनाओं के खिलाफ खड़े नहीं होंगे,  तब तक रोशनी के त्योहार अंधेरे में डूबते रहेंगे। (युवराज)

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