गैर-स्तरीय दवाइयां - खतरे की घंटी
देश में दवाइयों के नमूने व्यापक स्तर पर फेल होना एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया है। हिमाचल प्रदेश में बनने वाली बहुत ज़रूरी और मानव उपयोगी दवाइयों के लगभग 49 नमूने फेल हो गए हैं जबकि देश भर में दवाइयों के लगभग 200 नमूने फेल हुए हैं। इन अति आवश्यक दवाइयों में पैरासिटामोल भी बताई गई है। इस संबंधी स्टेट ड्रग कंट्रोल यूनिट द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार फेल हुए नमूनों में कुछ दवाइयां बहुत उपयोगी और जन-साधारण के उपचार के लिए बहुत ज़रूरी हैं। इनमें दिल की बीमारी के उपचार से संबंधित कई दवाइयां भी शामिल हैं। शूगर, मिर्गी, मांसपेशियों के खिंचाव और मानवीय शरीर के साथ जुड़ी कई अन्य ज्यादा ज़रूरी दवाइयों के नमूने भी फेल हो गए हैं। पैरासिटामोल के अनेक स्थानों से लिए गए नमूने फेल हो जाना भी स्वास्थ्य संबंधी क्षेत्रों में बड़ी चिंता के रूप में देखा जा रहा है। यह दवाई भी दिल के रोग और अन्य हालातों में एक कारगर मानी जाती है। स्वाभाविक है कि इतनी ज़रूरी और बहुत उपयोगी दवाइयों के 200 से अधिक नमूने फेल होना सचमुच बहुत चिंता पैदा करने वाला समाचार है। इस संबंध में ड्रग कंट्रोलर विभाग ने हिमाचल प्रदेश के सोलन, सिरमौर और ऊना के बड़ी भारी मात्रा में दवाई निर्माताओं और डिस्ट्रीब्यूटरों को नोटिस जारी किए हैं। वर्णनीय है कि इन क्षेत्रों में बनती दवाइयों की बिक्री पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सहित पूरे उत्तर और दक्षिण भारत में व्यापक स्तर पर की जाती है। नि:संदेह इस समाचार ने देश भर में चिंता पैदा कर दी है। जिन प्रयोगशालाओं में इन दवाइयों के नमूनों की जांच की गई, उन्होंने भी इनके मानव उपयोगी न होने की पुष्टि की है।
नि:संदेह दवाइयों के मानवीय स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पाए जाने की रिपोर्टें बहुत पहले से आ रही थीं, परन्तु इस बार मानव उपयोगी और आम उपयोग की जाने वाली दवाइयों का संदेह के दायरे में आना बहुत विपरीत और चिंताजनक पहलू है। अक्तूबर महीने के पहले सप्ताह में एक बड़ी कम्पनी के ‘कफ सिरप’ के सही स्तर पर पूरा न उतरने ने देश की कई प्रदेश सरकारों को हैरान कर दिया था। इस ‘कफ सिरप’ ने तो पड़ोसी देश नेपाल और बांग्लादेश को भी अपने दायरे में ले लिया था, जबकि इन देशों को भेजी जाने वाली इस दवाई का बड़ा स्टॉक निर्यात करने से पहले ही ज़ब्त कर लिया गया था। इस दवाई ने उत्तर प्रदेश में व्यापक स्तर पर हंगामा खड़ा कर दिया था। हरियाणा में भी एक बड़े राजनेता के बेटे का नाम इस मामले में शामिल बताया गया है। ़गैर-स्तरीय दवाइयों के इस कारोबार से इस वर्ष के शुरू में जम्मू-कश्मीर के साथ तार जुड़े होने का भी पता चला था। इस संबंध में कुछ गिरफ्तारियां भी हुई थीं परन्तु हमेशा की तरह इस मामले संबंधी समाचारों को भी राजनीतिक ताकतों द्वारा दबा दिया गया था।
इस वर्ष अक्तूबर में भी केन्द्र ड्रग कंट्रोल संगठन द्वारा पंजाब सहित कई पड़ोसी प्रदेशों में छापेमारी के दौरान 112 दवाइयों को जांच के दौरान फेल पाया गया था। गुजरात, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश में भी कुछ दवाइयों को मानव उपयोग के लिए अयोग्य पाया गया था। पश्चिम बंगाल, राजस्थान, कर्नाटक और महाराष्ट्र के साथ भी इसके तार जुड़े हुए पाए गए हैं। इस तरह इन ़गैर-स्तरीय दवाइयों का कारोबार लगभग देश भर में फैला हुआ है।
हम समझते हैं कि नि:संदेह गैर-स्तरीय दवाइयों का यह कारोबार देश के लिए खतरे की घंटी की तरह है। देश का स्वास्थ्य ढांचा पहले ही बहुत कमज़ोर है। देश के आम तथा गरीब लोगों के लिए उपचार बहुत महंगा है। सरकारें इस स्तर पर बेबस पाई जा रही हैं। दवाइयां बहुत महंगी हैं, जिस कारण इनकी उपलब्धता में भी कमी रहती है। ज़ोरदार मांग के बावजूद सरकारें उचित कीमतों पर स्तरीय दवाइयां उपलब्ध करवाने में विफल रही हैं। इसलिए यह बहुत ही ज़रूरी हो जाता है कि जीवन-रक्षक दवाइयों को जहां सस्ता तथा आसान पहुंच वाला बनाया जाए, वहीं इनकी गुणवत्ता बारे भी सरकारों को पूरी समर्था से कोशिश करनी चाहिए। यदि देश की सरकारें आम लोगों को मुफ्त उपचार नहीं दे सकतीं तो कम से कम यह सुनिश्चित बनाना चाहिए कि उन्हें सस्ती तथा स्तरीय दवाइयों की व्यवस्था की जाए।

