गांवों के विकास का नया संकल्प है ‘वी.बी.—जी राम जी’
भारत गांवों का देश है। गांवों का विकास किए बिना विकसित भारत का संकल्प पूरा नहीं हो सकता। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में गांवों को विकसित, आत्मनिर्भर, सशक्त और खुशहाल बनाने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। हाल ही में संसद में पास हुआ ‘विकसित भारत—जी राम जी’ बिल इसी दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। पिछले कई दशकों में कई सरकारें सत्ता में आईं और हर किसी ने ग्रामीण रोज़गार की गारंटी के लिए कई कोशिशें कीं। ‘मनरेगा’ भी इसी दिशा में एक अहम कदम था, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह थी कि कागज़ पर योजनाएं तो अच्छी दिखती थीं, जबकि गांवों में, खेतों में मेरे गरीब भाई-बहनों को वह फायदा नहीं मिल रहा था जिसका उनसे वायदा किया गया था।
विकसित भारत—रोज़गार के लिए गारंटी तथा आजीविका मिशन (ग्रमीण) (वीबी—जी राम जी) के बारे में कुछ लोगों की चिंताएं एक जायज़ डर से पैदा हुई हैं। इस ऐतिहासिक रोज़गार गारंटी में कोई भी बदलाव मज़दूरों के अधिकारों को कमज़ोर कर सकता है। इस बारे अंदाज़ा लगाने के बजाय यह भी ध्यान से पढ़ना ज़रूरी है कि ‘विकसित भारत—जी रामजी’ बिल में असल में क्या दिया गया है। बिल की सबसे खास बात यह है कि यह हर ग्रामीण परिवार को साल में 125 दिन की मज़दूरी वाली नौकरी की कानूनी गारंटी देता है। बिल में ‘मनरेगा-युग’ के हकदार उपबंधों को हटाकर आवेदन के 15 दिनों के अंदर रोज़गार न देने पर बेरोज़गारी भत्ते का भी प्रावधान किया गया है।
असली मज़बूती तक : आम आलोचना यह है कि ‘वीबी-जी राम जी’ ग्रामीण रोज़गार की मांग पर आधारित रोज़गार को कमज़ोर करता है। इस बिल को ध्यान से देखें तो पता चलता है कि 5(1) सरकार पर एक स्पष्ट कानूनी ज़िम्मेदारी डालती है कि वह प्रत्येक वित्त-वर्ष में उन योग्य ग्रामीण परिवार को कम से कम 125 दिनों का गारंटी वाला रोज़गार प्रदान करे, जिसके वयस्क सदस्य अपनी मज़र्ी से बिना कौशल वाला शारीरिक श्रम करते हैं। इस अधिकार को कमज़ोर करने के बजाय, यह बिल गारंटी वाले रोज़गार को 125 दिन तक बढ़ाकर और ‘मनरेगा-युग’ के अधिकार से वंचित रहने नियमों को हटाकर मज़बूत करता है, जिससे बेरोज़गारी भत्ते को एक असली कानूनी सुरक्षा के तौर पर बहाल किया जाता है। कानूनी गारंटी और लागू करने योग्य जवाबदेही के तरीकों में शामिल अधिकार अपने आप में ज़्यादा मज़बूत होता है और ‘वीबी—जी राम जी’ असल में यही करता है।
रोज़ी-रोटी की गारंटी को मज़बूत करना : यह बिल साफ तौर पर कानूनी रोज़ी-रोटी की गारंटी को पूरा करता है और रोज़गार को उत्पादक और दीर्घकालिक सार्वजनिक सम्पत्तियांबनाने से भी जोड़ता है। अनुसूची 1 के साथ पढ़ी गई धारा 4 (2) चार थीम वाले डोमेन की पहचान करती है। पानी की सुरक्षा, मुख्य ग्रामीण आधारभूत ढांचा, रोज़ी-रोटी से संबंधित आधारभूत ढांचा और मौसमी आपदाओं से बचाने के लिए काम। इससे यह सुनिश्चित होता है कि मज़दूरी रोज़गार न सिर्फ तुरंत आय सहायता में योगदान देता है, बल्कि लम्बे समय तक ग्रामीण लचकीलेपन और उत्पादिकता में भी योगदान देता है।
मज़दूरों की सुरक्षा और कृषि उत्पादन को संतुलित करना : शीर्ष सीजन में कृषि मज़दूरों की कमी संबंधी चिंताओं को स्पष्ट तौर पर हल किया गया है। धारा 6 राज्य सरकारों को एक वित्तीय वर्ष में 60 दिनों तक का समय पहले से बताने का अधिकार देता है, जिसमें शीर्ष बुआई और कटाई का मौसम शामिल है, जिसके दौरान बिल के तहत काम नहीं किए जाएंगे। खास बात यह है कि धारा 6(3) राज्यों को कृषि के माहौल के आधार पर जिलों, ब्लॉक या ग्राम पंचायतों के स्तर पर अलग-अलग नोटिफिकेशन जारी करने की इजाज़त देती है।
तकनीक को समर्थ बनाने के तौर पर : तकनीक-आधारित बेदखली बारे आशंका बिल में बनाए गए सुरक्षा उपायों को नज़रअंदाज़ करती हैं। धारा 23 और 24 बायोमेट्रिक प्रमाणिकता, जियो-टैग काम, रियल-टाइम डैशबोर्ड और नियमित सार्वजनिक खुलासे के ज़रिये तकनीक-आधारित पारदर्शिता को ज़रूरी बनाती हैं।
नवीनीकरण के रूप में सुधार : रोज़गार गारंटी बढ़ा कर स्थानीयय योजनाबंदी को जोड़कर, कृषि उत्पादन से श्रमिकों की सुरक्षा को संतुलित करके, योजनाओं को जोड़कर, बेहतर प्रशासनिक सहायता के ज़रिए अग्रणी कतार समर्था को मज़बूत करके और शासन को आधुनिक बनाकर यह बिल वादे की विश्वसनीयता को बहाल करने की कोशिश करता है।
यह ग्रामीण भारत के मेरे भाइयों और बहनों के सच्चे सशक्तिकरण की दिशा में एक ठोस और भरोसे वाला कदम है। यह गांवों के विकास का नया संकल्प है।
(लेखक केन्द्रीय ग्रामीण विकास, कृषि और किसान कल्याण मंत्री हैं)।



