क्या पुन: हो सकता है अकाली दल व भाजपा में गठबंधन ?
पंजाब में सवा साल बाद यानी 2027 के मार्च में विधानसभा चुनाव होने वाला है। उससे पहले अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के बीच फिर गठबंधन बनाने के लिए ‘बैक चैनल’ वार्ता शुरू हो गई है। दोनों पार्टियों को अंदाज़ा हो गया है कि अकेले चुनाव लड़ कर उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है। दोनों पार्टियों का करीब 25 साल का गठबंधन तीन विवादित कृषि कानूनों और किसान आंदोलन की वजह से टूट गया था। उसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में और फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियों को बड़ा झटका लगा। अब फिर विधानसभा का चुनाव आ रहा है। दोनों पार्टियों को लग रहा है कि अगर दोनों साथ आ जाएं तो मजबूत त्रिकोणात्मक मुकाबला हो जाएगा। यह बात 2022 और 2024 के चुनाव में दोनों पार्टियों को मिले वोट प्रतिशत में भी दिख रही है। 2022 के विधानसभा चुनाव में अकाली दल को 20 फीसदी से कुछ ज्यादा वोट मिले थे और भाजपा के गठबंधन को करीब 8 फीसदी वोट मिले थे। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 18.5 फीसदी और अकाली दल को 13.5 फीसदी वोट मिले थे। दोनों पार्टियों का संयुक्त वोट 32 फीसदी था, जो आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को मिले 26-26 फीसदी वोट से 6 फीसदी ज्यादा था। इसीलिए दोनों पार्टियों को लग रहा है कि गठबंधन करके त्रिकोणात्मक मुकाबले में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को हराया जा सकता है।
भारत में लड़खड़ाता पर्यटन कारोबार
एक और साल भारत में पर्यटन कारोबार के लिए निराशाजनक साबित हो रहा है। अब तक के रुझान के मुताबिक इस वर्ष भारत आए विदेशी पर्यटकों की संख्या में 12 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान है। कोरोना महामारी के पहले 2019 में जितने विदेशी पर्यटक भारत आए, कोरोना काल के बाद वह संख्या फिर कभी हासिल नहीं हुई। जबकि दुनिया के दूसरे देशों में यह कारोबार अपनी चमक वापस पा चुका है। हकीकत तो यह है कि अमीर भारतीय पर्यटक भी अब विदेश जाने में अधिक दिलचस्पी ले रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक क्रिसमस व नव वर्ष के अवसर पर गत वर्ष 24 लाख से अधिक भारतीय पर्यटन के लिए विदेश गए, जबकि इस बार यह संख्या 25 लाख पार हो सकती है। सवाल है कि भारतीय पर्यटन स्थल पर्यटकों को क्यों आकर्षित नहीं कर पा रहे हैं? पर्यटन कारोबार से जुड़े लोगों के मुताबिक भारत में पर्यटन अधिक महंगा है, यहां का बुनियादी ढांचा कमज़ोर है और सुरक्षा संबंधी चिताएं संगीन बनी रहती हैं। इस वर्ष पर्यटकों की संख्या में भारी गिरावट इसलिए भी आई, क्योंकि बांग्लादेश से बिगड़े रिश्तों के कारण वहां से पर्यटक कम आए और पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद बने माहौल के बीच पर्यटकों ने अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया। साल के आखिर में इंडिगो एयरलाइन्स के संकट की भी इसमें भूमिका रही होगी। पर्यटन ऐसा कारोबार है जिससे बिना जोखिम उठाए विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है और लाखों लोगों को रोज़गार मिलता है। मगर इस उद्योग का सीधा संबंध देश के कुल हालात से होता है। यानी यह कारोबार लड़खड़ा रहा है।
अजित पवार की आरएसएस से दूरी
एनसीपी के नेता और महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री अजित पवार भाजपा के साथ गठबंधन सरकार में बने हुए है, लेकिन भाजपा की अन्य सहयोगी पार्टियों की तरह भाजपा की नीति पर नहीं चलते यानी नितीश कुमार जैसी राजनीति करते हैं। जैसे अजित पवार ने विधानसभा चुनाव में मुस्लिम को टिकट नहीं देने की राजनीति का अनुसरण नहीं किया। उन्होंने नवाब मलिक को उम्मीदवार बनाया, जिनको भाजपा के नेता दाऊद इब्राहिम का आदमी बताते थे। अजित पवार सार्वजनिक कार्यक्रमों में कहते रहे हैं कि उनके रहते मुसलमानों को किसी तरह की परेशान नहीं होगी। इसी तरह वे हमेशा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े कार्यक्रमों से भी दूर रहते हैं। पिछले दिनों महाराष्ट्र की महायुति यानी भाजपा, शिव सेना और एनसीपी के विधायकों का नागपुर में हेडगेवार स्मृति मंदिर में जाने का कार्यक्रम था। हर साल विधानसभा सत्र के बाद भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों के विधायक वहां जाकर आरएसएस के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार को श्रद्धांजलि देते हैं। मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस और उप-मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ उनकी पार्टियों के सारे विधायक वहां श्रद्धांजलि देने गए, लेकिन अजित पवार और उनकी पार्टी के विधायक इसमें शामिल नहीं हुए। ऐसा लगातार तीसरे साल हुआ। एनसीपी के नेताओं का कहना है कि भाजपा और शिव सेना की एक जैसी राजनीति है और एक जैसा एजेंडा है लेकिन एनसीपी की राजनीति मुसलमानों और मराठों के बिना सफल नहीं हो सकती है।
भाजपा की ओर बढ़ते थरूर के कदम थमे
एक के बाद एक तीन ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनसे लगता है कि केरल के तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस सांसद शशि थरूर के कदम थम गए है और वे भाजपा की ओर बढ़ने की बजाय जहां हैं, वहीं रहना चाहते हैं। एक हफ्ते पहले तक ऐसा लग रहा था कि थरूर बस भाजपा में जाने ही वाले हैं। वह हर बात पर सरकार का समर्थन कर रहे थे और कांग्रेस की रणनीति पर सवाल उठा रहे थे, लेकिन अब स्थिति बदली हुई है। लगता है इसकी वजह केरल के स्थानीय निकाय के चुनाव नतीजे हैं। कांग्रेस ने इन चुनावों में बड़ी जीत हासिल की है जबकि भाजपा सिर्फ तिरुवनंतपुरम में अच्छा प्रदर्शन कर पाई है, जहां से थरूर सांसद है। थरूर का हृदय परिवर्तन होने की शुरुआत सावरकर पुरस्कार लेने के इन्कार से हुई। भाजपा के बड़े नेताओं के हाथों पुरस्कार का वितरण होना था। लेकिन ऐन मौके पर थरूर ने कहा कि वह पुरस्कार नहीं लेंगे। उन्होंने कहा कि उनसे सहमति नहीं ली गई थी। इसके बाद दूसरा मामला मनरेगा को समाप्त करके नया कानून लाए जाने का है। थरूर ने सरकार की इस पहल के खिलाफ सोशल मीडिया में लिखा और संसद में भी मनरेगा का नाम ‘जी राम जी’ करने पर भी आपत्ति जताते हुए कहा कि ‘राम का नाम बदनाम ना करो।’ इसके बाद सरकार परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में निजी कंपनियों को मंजूरी देने का विधेयक लेकर आई तो थरूर ने उसका भी ज़ोरदार विरोध किया। सरकार के दोनों विधेयकों पर थरूर का विरोध मामूली नहीं है।
़गालिब के साथ फिर अन्याय
दुनिया भर में शे’अरो-शायरी में दखल रखने वाले लोग जानते हैं कि मिज़र्ा असदुल्ला खां गालिब ऐसे शायर हैं, जिन्हें सबसे ज़्यादा गलत कोट किया गया और सबसे कम समझा गया। संसद के शीतकालीन सत्र के आखिरी हफ्ते के पहले दिन कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने एक शे’अर पढ़ाए जिसे उन्होंने गालिब का बताया। मेघवाल ने कांग्रेस को नसीहत देते हुए कहा, ‘उम्र भर गालिब यही भूल करता रहा, धूल चेहरे पर थी और आईना साफ करता रहा।’ असल में यह शेर गालिब का नहीं है। लेकिन अंग्रेजी के एक बड़े अखबार ने बिना सवाल उठाए अगले दिन इसे जस का तस छाप दिया। जून 2019 में यानी 17वीं लोकसभा के चुनाव के बाद संसद के पहले सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यही शे’अर पढ़ा था। उस समय जावेद अख्तर ने सोशल मीडिया के ज़रिये बताया था कि प्रधानमंत्री ने गालिब का बता कर जो शे’अर पढ़ा है वह असल में गालिब का नहीं है। उन्होंने यह भी लिखा कि शे’अर की दोनों लाइनें शायरी के मीटर पर सही नहीं उतरती हैं। कुछ संदर्भ मिलते हैं, जिनमें इसे असर फैज़ाबादी का शे’अर बताया गया है, लेकिन सोशल मीडिया ने इसे गालिब के नाम से प्रचारित कर दिया। आम लोगों के साथ प्रधानमंत्री और मंत्री भी किसी और का शेर गालिब के नाम से पढ़ते रहे। अपनी विरासत के प्रति अज्ञानता का एक नमूना यह भी है।





