सोशल मीडिया के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव
सोशल नेटवर्किंग और डिजिटल क्रांति 21वीं सदी की सबसे बड़ी उपलब्धियों में गिनी जा रही है, क्योंकि इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस युग ने सूचना के आदान-प्रदान, जनमत निर्माण, विभिन्न क्षेत्रों, संस्कृतियों और समाजों को जोड़ने तथा उन्हें सहभागी बनाने में एक अभूतपूर्व भूमिका निभाई है। आज सोशल मीडिया केवल संवाद का माध्यम नहींस बल्कि एक सामाजिक पहचान और स्टेटस सिंबल भी बन चुकी है। जितनी तेज़ी से इसने दुनिया को जोड़ा है, उतनी ही गहराई से इसने मानसिक, सामाजिक और पारिवारिक समस्याओं को जन्म भी दिया है।
सोशल मीडिया ने वैश्विक स्तर पर एक ऐसे नए नागरिक को जन्म दिया है जो स्वयं जागरूक है और दूसरों को भी जागरूक करता है, किंतु इसी प्रक्रिया में बच्चे और किशोर बहुत कम उम्र में वयस्क दुनिया के दबाव, तुलना, आभासी प्रतिस्पर्धा और मानसिक द्वंद्व का शिकार हो रहे हैं। सोशल मीडिया आज मानसिक रोगों को जन्म देने वाली एक अदृश्य मशीन के रूप में भी सामने आ रहा है। गांव से लेकर शहर तक लगभग हर व्यक्ति इसके प्रभाव में है और कई बार यह प्रभाव मानसिक संतुलन को डगमगाने की स्थिति तक पहुंच जाता है। अभिभावकों द्वारा मोबाइल फोन छीन लेने पर बच्चों में अवसाद और आत्मघाती प्रवृत्तियों के बढ़ते मामले इस खतरे की गंभीर चेतावनी हैं। वर्तमान समय में फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर (एक्स), इंस्टाग्राम, लिंक्डइन जैसे मंच इंटरनेट का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं जो दुनिया भर के अरबों लोगों को पलक झपकते जोड़ देते हैं।
इंटरनेट ने भौगोलिक दूरियों को लगभग समाप्त कर दिया है और वैश्विक समाज एक तरह से ‘आभासी राष्ट्र’ का नागरिक बन गया है। भारत जैसा विशाल जनसंख्या वाला देश सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं की संख्या में दुनिया में अग्रणी है और डिजिटल इंडिया के साथ यह संख्या लगातार बढ़ रही है। सोशल मीडिया का सकारात्मक पक्ष यह है कि इससे शिक्षा, व्यापार, पत्रकारिता, जन-जागरूकता, रोज़गार, सामाजिक अभियानों और त्वरित सूचना प्रसार को नई गति मिली है। कोविड-19 महामारी के दौरान स्वास्थ्य संबंधी सूचनाओं, बचाव उपायों और सरकारी दिशानिर्देशों के प्रसार में सोशल मीडिया ने मानवीय सहायता का ऐतिहासिक उदाहरण प्रस्तुत किया है। भारत जैसे देश में इतनी बड़ी आबादी के बावजूद महामारी पर नियंत्रण में सोशल मीडिया की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के पक्ष को रखने, सीमा संबंधी मुद्दों और वैश्विक जनमत को प्रभावित करने में भी सोशल मीडिया एक प्रभावी माध्यम बना, किंतु इसका नकारात्मक पक्ष उतना ही खतरनाक है क्योंकि अत्यधिक उपयोग मानव मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव डालता हैष अवसाद, अकेलापन, आक्रामकता, स्मरण शक्ति और चिंतन क्षमता में गिरावट जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। सोशल मीडिया फर्जी समाचार, भड़काऊ भाषण, अफवाहों और साइबर अपराध का बड़ा मंच बन चुका है। भारत जैसे बहुलतावादी लोकतंत्र में यह सामाजिक सौहार्द, राष्ट्रीय एकता और स्थिरता के लिए गंभीर चुनौती प्रस्तुत करता है।
साइबर स्कैम, निजी डेटा की चोरी, धार्मिक भावनाओं और राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान तथा कानूनों का उल्लंघन इसके दुष्परिणाम हैं। अनियंत्रित सोशल मीडिया उपयोग से आम लोगों के बीच सीधे व वास्तविक संवाद और संवेदना की दूरी बढ़ती जा रही है। इस प्रकार सोशल नेटवर्किंग ज्ञान, रोज़गार, संचार और सामाजिक जागरूकता का सशक्त माध्यम होने के साथ-साथ मानसिक, सामाजिक और नैतिक संकटों का कारण भी बन रही है। इसलिए यह आवश्यक है कि सोशल मीडिया के उपयोग में संतुलन, विवेक और ज़िम्मेदारी विकसित की जाए, निजता के अधिकार की रक्षा करते हुए इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए नए कानूनी, सामाजिक और नैतिक विकल्पों की खोज की जाए, ताकि इसकी सकारात्मक शक्तियों को आत्मसात करते हुए आने वाली पीढ़ियों को इसके संभावित दुष्प्रभावों से बचाया जा सके।
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