रासायनिक तत्वों से ज़हरीले होते खाद्य-पदार्थ
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा भोजन सुरक्षा संबंधी मापदंडों की अपूर्णता एवं अक्षमता को लेकर व्यक्त की गई चिन्ता समाज में मौजूदा और भावी पीढ़ी के स्वास्थ्य संबंधी अनेक चिन्ताओं को उजागर करती है। अदालत ने एक ओर जहां समाज में खाद्यान पदार्थों संबंधी निरन्तर बिगड़ते हालात को लेकर चिन्ता व्यक्त की है, वहीं उसने केन्द्र सरकार तथा पंजाब और हरियाणा की सरकारों को अल्टीमेटम भी जारी किया है। अदालत ने यह निर्देश निरन्तर बिगड़ते जाते खाद्यान्न पदार्थों के स्तर को लेकर दायर की गई एक जन-हित याचिका के संदर्भ में दिया है। अदालत ने इस रिपोर्ट को कठोरता से ग्रहण किया है कि पंजाब और हरियाणा से खाद्यान्न पदार्थों और दूध से बने पदार्थों के प्राप्त किये गये नमूनों में से पंजाब में 80 प्रतिशत और हरियाणा में 30 प्रतिशत नमूने फेल साबित हुए हैं। यह रिपोर्ट आर.टी.आई. के ज़रिये प्राप्त की गई है। बहुत स्वाभाविक है कि इन आंकड़ों की गवाही सरकार भी देती है। ये आंकड़े 2021 से लेकर 2025 तक इसी प्रकार सामने आ रहे हैं। इसका अभिप्राय यह भी है कि केन्द्र, पंजाब और हरियाणा की प्रदेश सरकारों ने इस संबंध में कभी कोई निर्देशात्मक कार्रवाई नहीं की।
विगत कुछ समय से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के आस-पास के क्षेत्रों में पानी, दुग्ध पदार्थों, खाद्यान्न पदार्थों और फल-सब्ज़ियों के घटिया स्तर को लेकर कई तरह के समाचार प्रकाशित होते रहे हैं। फलों को टीके लगाकर, रसायनों से पकाया जाता है। फलों एवं सब्ज़ियों में कीट-नाशकों और रासायनिक खादों का इस्तेमाल आम बात है जिससे ये विषाक्त, दूषित और रोग-दायक होने लगती हैं। हाल ही में पंजाब और हरियाणा में खुलेआम बिकती कैमिकल मिश्रित कीड़े-मार दवाओं ने भी सितम ढाया है। इन दवाओं के उपयोग से उपजी फसलों से कैंसर का खतरा बढ़ता है, किन्तु इसके सस्ता होने के कारण किसान इसका उपयोग धड़ाधड़ करते हैं। यह दवा विश्व के लगभग 50 देशों में पूर्णतया अथवा आंशिक तौर पर प्रतिबंधित है। पंजाब में भी इस दवा पर रोक है किन्तु काला बाज़ार में यह धड़ाधड़ बिकती है। अभी हाल में अदरक और अन्य कई सब्ज़ी पदार्थों को धोने और इन्हें साफ करने में ़खतरनाक रासायनिक पदार्थ, तेज़ाब और टॉयलेट क्लीनर का इस्तेमाल किये जाने के समाचार ने सनसनी पैदा की थी। इस संदर्भ में एक बड़ी चिन्ताजनक बात यह है कि सरकारों ने ऐसे मामलों की जांच के लिए कड़े नियम और निर्देश जारी कर रखे हैं, किन्तु अधिकतर विभागों के बड़े अधिकारियों से कोई भी इसकी ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं। हाल ही में सब्ज़ियों-फलों को टीका लगा कर पकाये जाने के अनेक मामले उजागर हुए हैं। जांच किये जाने पर सम्बद्ध अधिकारियों में से किसी ने उच्च अधिकारी के उपलब्ध न होने, और किसी ने जानकारी न होने की बात कही। किसी अधिकारी ने टैलीफोन पर किसी अन्य शहर में होने की बात कह कर मामले को टालने की कोशिश की।
किस्साकोताह, समाज-विरोधी तत्वों की ओर से लाभखोरी के लालच में इस प्रकार के असामाजिक कार्यों के ज़रिये एक ओर तो समाज के लोगों के जीवन से खिलवाड़ किया जा रहा है, किन्तु दूसरी ओर समस्या का त्रासद पक्ष यह भी है कि सरकार का कोई भी विभाग अथवा अधिकारी इसकी ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं। ऐसा नहीं कि सरकारों को इसकी चिंता नहीं। सरकारें तो समय-समय पर कार्रवाई करती हैं, किन्तु सम्बद्ध विभागों में नि:संदेह कुछ काली भेड़ें हैं जो सरकार के हर अभियान का पथ-भंग कर देती हैं। इस विषय के विशेषज्ञों के अनुसार फूड सेफ्टी एंड स्टैंडड्ज़र् एक्ट इस मामले में काफी कमज़ोर सिद्ध हो रहा है। दोषी इस कानून की कमज़ोर धाराओं और लचीले पथ के कारण अक्सर बच कर निकल जाते हैं। वस्तुओं एवं पदार्थों के नमूने लेने और फिर उनके परीक्षण संबंधी कानून भी काफी कमज़ोर और लचीले हैं जिसके कारण दोषी अक्सर बच निकलते हैं।
हम समझते हैं कि यह एक बेहद गम्भीर समस्या है जिसका सीधा सम्बन्ध भावी पीढ़ी और मौजूदा समाज के स्वास्थ्य को लेकर है। इसका एक मानवीय पक्ष भी है कि जिसको लेकर समाज में व्यापक रूप से जन-चेतना जागृत किये जाने की बड़ी आवश्यकता है। इस संबंधी कानूनों की धाराओं में व्याप्त त्रुटियों को दूर किया जाना भी बेहद ज़रूरी है ताकि दोषी पाये जाने वाले के बच निकलने के चोर-मार्गों को अवरुद्ध किया जा सके। किसानों, व्यापारियों और थोक विक्रेताओं द्वारा कैमिकलों अथवा तेज़ाब आदि के प्रयोग को कठोर दण्डनीय अपराध घोषित किया जाना चाहिए। नि:संदेह कुछ इसी तरह के कठोर उपाय अपना कर ही इस निन्दनीय अपराध को रोका जा सकता है।

