विपक्ष के नेता का पद हासिल करने के लिए प्रयासरत है कांग्रेस

लोकसभा में कांग्रेस दूसरी बार विपक्ष के नेता के पद पर दावा करने के लिए पर्याप्त सीटें हासिल नहीं कर सकी। नियमों के अनुसार विपक्ष के नेता के पद पर दावा करने के लिए किसी पार्टी के पास लोकसभा के कुल 545 सदस्यों में से 10 प्रतिशत सदस्य होने आवश्यक है। परन्तु कांग्रेस के पास सिर्फ 52 ही सदस्य हैं और इस पद के लिए दो सदस्य कम हैं। दरअसल विपक्ष के नेता का रुतबा कैबिनेट मंत्री जितना होता है। इस पद पर दावा करने के लिए कांग्रेस द्वारा आर.एस.पी. तथा केरल कांग्रेस (मनी) जैसी छोटी पार्टियों और महाराष्ट्र के अमरावती से आज़ाद सदस्य नवनीत रवि राणा का समर्थन हासिल करने की कोशिशें जारी हैं। इस मामले में अंतिम फैसला स्पीकर का है। फैसला जो मर्ज़ी  हो, निश्चित रूप में राहुल गांधी इसलिए नहीं हैं। यह दौड़ दो पूर्व मंत्री शशि थरूर तथा मनीष तिवारी के बीच है। जब तक केरल के कांग्रेसी संसद सदस्य किसी एक का चुनाव नहीं करते, कांग्रेस संसदीय पार्टी की नई चुनी गई नेता सोनिया गांधी फैसला करेंगी कि आगे क्या होगा। 
केन्द्रीय कैबिनेट में जे.एन.यू. के पूर्व छात्र 
एस. जयशंकर के विदेश मामलों के बारे में मंत्री के तौर पर केन्द्रीय मंत्रिमंडल में प्रवेश की उम्मीद नहीं की गई थी। नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री बनने वाले डा. मनमोहन सिंह के बाद वह दूसरे व्यक्ति हैं जो एक तरफ से सुरक्षा कैबिनेट कमेटी  (सी.सी.एस.) में शामिल हुए हैं। उनके कैबिनेट में दाखिला से सरकार और सी.सी.एस. में जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के दो पूर्व छात्र हो जाएंगे। इनके अलावा निर्मला सीतारमण भी जे.एन.यू. की पूर्व छात्रा हैं। 
लालू और देवगौड़ा परिवारों की हार
चुनावों में हुई हार अब लालू प्रसाद यादव और एच.डी. देवगौड़ा दोनों परिवारों को परेशान कर रही है। देवगौड़ा परिवार से सिर्फ प्राजवल रेवाना ही जीते हैं और एच.डी. देवगौड़ा स्वयं चुनाव हार गये हैं। उनका एक अन्य पौत्र तथा मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी के बेटे निखिल कुमारस्वामी भी चुनाव हार गये थे और अपनी हार के लिए देवगौड़ा को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं। इसके अलावा प्राजवल रेवाना ने अपने दादा एच.डी. देवगौड़ा के लिए हसन से चुनाव लड़ने के लिए अपने इस्तीफे की पेशकश की थी। हसन देवगौड़ा का पुराना क्षेत्र है, परन्तु उन्होंने उपरोक्त पेशकश को खारिज़ कर दिया। बिहार में लालू प्रसाद के बेटों तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव के बीच पड़ी फूट के कारण राष्ट्रीय जनता दल एक भी सीट पर जीत प्राप्त नहीं कर सका। लालू की बेटी मीसा भारती पाटलीपुत्र से चुनाव हार गईं और तेज प्रताप के ससुर चंद्रिका राय लालू के पुराने क्षेत्र सरन से चुनाव हार गये। चुनावों के बाद जब लालू यादव ने जेल में दो दिनों तक खाना खाने से इन्कार कर दिया तो उनके बेटे तेजप्रताप यादव ने लालू को चिट्ठी लिखी, जिसमें उन्होंने पार्टी नेतृत्व के लिए अपने भाई तेजस्वी यादव का पक्ष रखा था, परन्तु यह सब व्यर्थ रहा, क्योंकि चिट्ठी के जारी होने से पहले ही परिणाम आ चुके थे। 
गहलोत-पायलट का टकराव
राजस्थान में लोकसभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तथा सचिन पायलट के समर्थकों के बीच विवाद और गहरा हो गया है। बहुत सारे मंत्री तथा विधायक लोकसभा चुनावों में राजस्थान में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के कारण मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस बात से बहुत हैरान हुए कि विधानसभा चुनाव जीतने से सिर्फ 6 महीने बाद ही लोकसभा का परिणाम इतना बुरा कैसे आया? यहां तक कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत भी जोधपुर से भाजपा के उम्मीदवार गजेन्द्र सिंह शेखावत से चुनाव हार गये। भाजपा ने राजस्थान से 2014 की तरह सभी 25 सीटों पर जीत प्राप्त की। कांग्रेस कार्य कारिणी की बैठक में राहुल गांधी ने अशोक गहलोत पर आरोप लगाया कि उन्होंने सारा समय और सारी ऊर्जा अपने बेटे के क्षेत्र में लगा दी और राजस्थान की अन्य सीटों को नज़रअंदाज़ कर दिया। मौजूदा समय कांग्रेस के विधायक राजस्थान विधानसभा की 200 सीटों में से 99 सीटें हैं और गहलोत बसपा के 6 तथा 12 आज़ाद विधायकों की सहायता से सरकार चला रहे हैं। जोधपुर में कांग्रेस की हार ने गहलोत को कमज़ोर कर दिया और सचिन पायलट जल्द से जल्द उनका स्थान लेना चाहते हैं। इस मामले पर गहलोत और पायलट दिल्ली में राहुल गांधी को मिल चुके हैं, परन्तु इसका कोई भी परिणाम नहीं निकला। 
पश्चिम बंगाल की स्थिति 
इन लोकसभा चुनावों के बाद पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच लड़ाई बढ़ी ही नहीं है, अपितु बहुत हिंसक भी हो गई है। 2014 के लोकसभा चुनावों में दो पार्टियों के बीच सीधी जंग थी, परन्तु यह हिंसक नहीं थी। बल्कि बयानबाज़ियों तक सीमित थी। विधानसभा चुनावों में यह जंग विचारधारक सर्वोच्चता तक पहुंच गई थी। परन्तु हिंसा नहीं थी। पंचायत चुनावों तक ये दोनों हिंसक ढंग से एक-दूसरे के सामने आ गये थे। हिंसा यहां तक बढ़ गई कि भाजपा ने यह दावा किया कि तृणमूल कांग्रेस के समर्थकों ने उनके उम्मीदवारों को नामांकन पत्र नहीं भरने दिये। उस समय भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने लोकसभा चुनावों के लिए 22 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था, जिनमें से उन्होंने 18 पर जीत प्राप्त की है।  हालांकि इन चुनावों की शुरुआत के समय भाजपा का मुकाबला करने के लिए ममता बैनर्जी देश स्तरीय मोर्चा बनाना चाहती थी, परन्तु बाद में उन्होंने कांग्रेस तथा वामपंथियों को रद्द कर दिया और अकेले ही चुनाव लड़ा, जिसका परिणाम निकला कि उनकी पार्टी को अपने ही गढ़ में भारी नुक्सान झेलना पड़ा। (आई.पी.ए.)