परमात्मा को जानें

परमात्मा दरअसल वह पवित्र आत्मा है जो हमारे अंदर ही है और जिसका कोई अंत नहीं। आत्मा परमात्मा के कई नाम हैं। परमात्मा, परमेश्वर, ईश्वर, भगवान सब एक ही तो हैं। अनेक हैं तो केवल उसके रूप। वैसे तो सभी भगवान को अलग-अलग ढंग से पूजते आ रहे हैं व पूजते रहेंगे पर क्या कभी आपने यह जानने की कोशिश की है कि इस इन्सान रूपी भगवान को इतना सुंदर रूप व नाम क्यों  मिला? क्यों ये पूजे जाते हैं? आखिर हैं तो ये  हमारी ही तरह इन्सान। सतयुग से ही इन्सान स्वार्थी रहा है व उसमें तरह-तरह की बुराइयां विराजमान रही हैं। मनुष्यों में बुराइयां बढ़ती गईं व समस्या इतनी गम्भीर हो गई कि मनुष्य मनुष्य का ही दुश्मन हो गया। कोई किसी को देखकर खुश नहीं है। बढ़ते हुए अत्याचार को देखकर स्वयं परमेश्वर को किसी न किसी रूप में पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ा। वह सम्पूर्ण मनुष्य जाति को किसी न किसी रूप में बचाते ही आ रहे हैं। आधुनिक युग में भी भगवान के प्रचार की कमी नहीं है। हैरानी की बात तो यह है कि मनुष्य प्रत्येक तरह की बुराइयों में ग्रस्त रहते हुए भी भगवान को पूजता है परन्तु उसके बताए हुए रास्ते, उसकी दी हुई शिक्षाओं को नहीं अपनाता और न ही जानने की कोशिश करता है कि ये भगवान क्यों हैं? क्यों अमर हैं? क्यों पूजे जाते हैं? परमेश्वर यानी पवित्र आत्मा का मन स्वच्छ व उज्जवल है। किसी तरह की गलत भावनाओं ईर्ष्या, द्वेष, जलन, अमीरी-गरीबी एवं लालच पवित्र मन में विराजमान नहीं रहते। हर तरह से संतुष्ट होती है पवित्र आत्मा। किसी तरह की चाहत उसे नहीं रहती। खुश रहना व खुशी बांटना भी नेक दिल वाली आत्मा का ही काम है। इन्हीं अच्छाइयों को ग्रहण कर भगवान अमर हैं व पूजनीय हैं। अगर हम चाहें तो हम भी पूजनीय बन सकते हैं, सच्चाई के रास्ते पर चल कर। हम यह न सोचें कि यह कलियुग है। सब अपनी मस्ती में मस्त हैं तो क्यों न मैं भी मस्त रहूं व मनमानी करूं। आपने देखा होगा कि इस कलियुग में जब आप भारी समस्या में फंसे रहते हैं, तब ऐसे में कोई मनुष्य आप की मदद कर आपको समस्या से मुक्त कर देता है। आप उसके प्रति गद्-गद् हो जाते हैं। उसका धन्यवाद करते हैं व उसकी आपके मन में गहरी छाप पड़ती है यानी आप उसे मन मंदिर में बसा लेते हैं व उसे भूल नहीं पाते। याद आने पर उसका धन्यवाद करते हैं। इसी तरह जब आप भी किसी दूसरे की मदद करते हैं तो यही प्रतिक्रिया मददकर्ता के मन में भी होती है। यही मददकर्ता  ही तो हमारा भगवान है। अगर हम परमेश्वर की सभी आज्ञाओं को मानें व उनके बताए रास्ते पर चलें तो हम भी भगवान हैं। हम भी दूसरे मनुष्यों के द्वारा पूजे जाएं तो क्यों न परमपिता परमात्मा के बताए हुए रास्ते पर चलें व अपनी पवित्र आत्मा को अपवित्र न होने दें। 

—अलका अमरीश चौधरी