आओ, समाज के लिए अनुकरणीय उदाहरण बनें

किसी भी देश की प्रगति में समाज एक निर्णायक भूमिका का निर्वाह करता है। समाज की सोच-विचार, उसके आचार-व्यवहार आदि का देश के विकास पर बड़ा गहरा प्नभाव पड़ता है जोकि यदि सकारात्मक हो तो प्रत्येक स्तर पर देश को उन्नति के शिखर तक ले जाने की क्षमता रखता है और नकारात्मक होने पर उसकी अवनति के लिए भी पूरी तरह ज़िम्मेदार बनता है। गौर फरमाया जाए तो समाज में पनपने वाली अधिकतर समस्याएं उसकी स्वंय की सोच की ही देन हैं व इन्हें दूर करने में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका यदि कोई निभा सकता है तो वह भी स्वयं समाज ही है। विभिन्न परिवारों के समूहों को मिलाकर ही समाज का सृजन होता है। वास्तव में समाज वह दर्पण है जिसमें व्यक्ति विशेष का आचरण सामूहिक रूप से प्नतिबिम्बित होकर समाज की छवि का निर्माण करता है। अर्थात यदि समाज में रहने वाले व्यक्ति संकुचित सोच रखते हैं तो निश्चय ही वह समाज भांति-भांति प्नकार की मानसिक व्याधियों से ग्रस्त होगा। अंधविश्वास, कुरीतियां, बुराइयां हर तरफ अपने फन फैलाए नज़र आ ही जाएंगी। ऐसा समाज देश के लिए अत्यंत घातक सिद्ध हो उसके पतन का मूल कारण बनता है। ठीक इसके विपरीत जिस समाज में लोगों की सोच का दायरा विशाल हो वहां समस्याएं भी कम होंगी व उनके हल भी बड़ी सहजता से निकल आएंगे। नज़रिया जितना सकारात्मक होगा अपेक्षाएं उतनी ही कम होंगीं। दूसरों को कोसने की बजाए या उनसे परिवर्तन लाने की आस रखने की बजाए यही सोच हावी रहेगी कि हम समाज की बेहतरी में अपना क्या योगदान दे सकते हैं।  हमारे समाज में आज ऐसे बहुत से लोग हैं जो नि:स्वार्थ भाव से समाज की बेहतरी के लिए कार्य कर रहे हैं। उनका एकमात्र उद्देश्य समाज की भलाई है। न तो उन्हें स़ुिर्खयों में आने की चाह है, न ही किसी प्रकार के पुरस्कार से अलंकृत किए जाने की अभिलाषा। समाजसेवा वह अपना धर्म मानते हैं व मानवता की सेवा ही उनके जीवन का आधार है। कुछ ऐसा ही कार्य बीते अगस्त माह कुछ कर्मठ युवकों ने भी कर दिखाया, जब एक शहीद की पत्नी के लिए पक्के घर का निर्माण करवाया गया। अपनी हथेलियां उसके कदमों में बिछाकर, अपनी उस बहन को गृह-प्रवेश करवाया जिसके पति की शहादत को सरकारें भुला चुकी थीं। नि:संदेह यह उनकी जागरूकता का सबसे बड़ा उदाहरण है व समाज के लिए सबसे बड़ा संदेश भी।  जो जवान हमारे देश, हमारे समाज की रक्षा हेतु अपने जीवन को दांव पर लगा देते हैं, उनकी शहादत के पश्चात उनके परिवारों की देखभाल करना न केवल सरकारों का अपितु हम सबका कर्त्तव्य बनता है। ऐसे कार्य न केवल दिन विशेष पर बल्कि प्रतिदिन होने चाहिएं। एक ऐसा ही उदाहरण ऐसे पिता का आता है जिसने एक गड्डे के कारण दुर्घटनाग्रस्त हुए मृत बेटे के दर्द को बांटने के लिए शहर भर के गड्डों को निजी स्तर पर भरने की ज़िम्मेवारी ले ली। प्रशासन के मौन व सुप्त बने रहने पर बजाए कोई नकारात्मक रवैया अपनाने के, वह कर्मठ एकाकी ही परिवर्तन की दिशा की ओर बढ़ता गया ताकि भविष्य में ऐसे हादसों को रोकने की सकारात्मक पहल कर सके। ऐसे ही कुछ और योद्घा भी हैं जो समाज में फैली बुराइयों व कुरीतियों को जड़ से मिटाने के लिए कमर कस कर तैयार हैं। कभी वे पर्यावरण को बचाने में प्रयासरत हैं तो कभी लोगों की आंख की रोशनी को बचाने के लिए मुफ्त सेवाएं प्रदान करने को तत्पर हैं। कभी वे गरीबों के लिए खाना मुहैया करवाते हैं, कभी साक्षरता प्रदान कर ज्ञानद्वीप जलाते हैं तो कभी स्वच्छता अभियान से जुड़े कार्य करने में लगे हैं। आयु, रुतबा, व्यस्तता आदि कभी उनके कार्यों में बाधक नहीं बन पाए। ये सभी उदाहरण एक जागरूक समाज की ओर इशारा करने के लिए काफी हैं।  सजगता किसी भी देश या समाज के लिए अनिवार्य है। जहां सजगता है, वहां जागरूकता है। जहां जागरूकता है, वहीं संभावनाएं हैं और जहां संभावनाएं हों वहां विकास अवश्य होता है। एक विकासशील समाज ही देश को विकसित बना सकता है, इसमें कोई संदेह नहीं। संसार के जितने भी विकसित देश हैं उनके विकास का वास्तविक श्रेय उनके नागरिकों की सोच और उनके सामाजिक ढांचे को ही जाता है। तो क्यों न अपनी सोच को उन्नत करते हुए हम भी अपने समाज के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण बनें व सही अर्थों में स्वंय को देश का एक सच्चा नागरिक साबित करें।

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