एक महान समाज सुधारक थे संत कबीर दास
आज जयन्ती पर विशेष
आज समाज, देश और विश्व के कई देशों में बढ़ती हुई भुखमरी, बेरोज़गारी, स्वार्थ-लोलुपता, अनेकता आदि समस्याओं से सारी मानव जाति चिंतित है। वास्तव में ये ऐसी मूलभूत समस्यायें हैं जो लूट-पाट, मार-काट, धार्मिक विद्वेष, युद्धों की विभीषिका आदि का कारण बनी हैं। आज इन समस्याओं ने पूरे विश्व की मानव जाति को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। ऐसी भयावह परिस्थिति में आज समाज को सही राह दिखाने के लिए संत कबीर दास जैसे युग प्रवर्तक की बड़ी आवश्यकता है। संत कबीर दास ने समाज में व्याप्त भेदभाव को समाप्त करने पर बल दिया। संत कबीर दास एक महान समाज सुधारक थे। उन्होंने अपने युग में व्याप्त सामाजिक अंधविश्वासों, कुरीतियों और रूढ़िवादिता का विरोध किया। उनका उद्देश्य विषमता-ग्रस्त समाज में जागृति पैदा कर लोगों को भक्ति का नया मार्ग दिखाना था, जिसमें वह काफी हद तक सफल भी हुए।
संत कबीर दास कहते थे कि मनुष्य जीवन अनमोल है इसलिए हमें अपने मानव जीवन को भोग-विलास में व्यतीत नहीं करना चाहिए बल्कि हमें अपने अच्छे कर्मों के द्वारा अपने जीवन को उद्देश्यमय बनाना चाहिए। संत कबीर के अनुसार मनुष्य ने सारी रात सोने में गंवा दी और सारा दिन खाने-पीने में बिता दिया। इस प्रकार अज्ञानता में मनुष्य अपने अनमोल जीवन को भोग-विलास में गंवा कर कौड़ी के भाव खत्म कर लेता है। उनका कहना था कि मनुष्य का जीवन पानी के बुलबुले के समान है, जो थोड़ी सी हवा लगते ही फूट जाता है।
संत कबीर जी के अनुसार हमें परमपिता परमात्मा द्वारा दिये गये शरीर पर अभिमान न करते हुए इस जगत में रहते हुए मानव हित में अधिक से अधिक कार्य करने चाहिएं। संत कबीर सच्चे अर्थों में मानवतावादी थे। उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच मानवता का सेतु बांधा। वह आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडम्बरों पर कुठाराघात करते रहे। संत कबीर ने हिन्दू-मुसलमान का भेद मिटाकर हिन्दू भक्तों तथा मुसलमान फकीरों का सत्संग किया और दोनों की अच्छी बातों को हृदयंगम कर लिया। संत कबीर जी एक ही ईश्वर को मानते थे और कर्मकाण्ड के घोर विरोधी थे। वह भेदभाव रहित समाज की स्थापना करना चाहते थे। उन्होंने ब्रह्म के निराकार रूप में विश्वास प्रकट किया। वह हर स्तर पर सामाजिक विसंगतियों के विरुद्ध लड़ते रहे।
उन्होंने व्यंग्यात्मक दोहों और सीधे-सादे शब्दों में अपने विचारों को व्यक्त किया। फलत: बड़ी संख्या में सभी धर्म एवं जाति के लोग उनके अनुयायी हुए। संत कबीर का कहना था कि सभी धर्मों का लक्ष्य एक ही है। सिर्फ उनके कर्मकांड अलग-अलग होते हैं। उनका कहना था कि मनुष्य ईश्वर को पाने की चाह में माला के मोती को फिराता रहता है परन्तु इससे उसके मन का दोष दूर नहीं होता है। कबीर जी कहते हैं कि हमें हाथ की माला को छोड़ देना चाहिए क्योंकि इससे हमें कोई लाभ नहीं होने वाला है। हमें तो केवल अपने मन को एकाग्र करके भीतर की बुराइयों को दूर करना चाहिए।
कबीर दास जी ने कहा है कि हमें आज का काम कल पर न टाल कर उसे तुरन्त पूरा कर लेना चाहिए। वह इस तथ्य को जानते थे कि मनुष्य का जीवन छोटा होता है जबकि उसे ढेर सारे कामों को इसी जीवन में रहते हुए करना है। आज से छ: सौ वर्ष पूर्व भी समय के सदुपयोग के महत्व को समझते हुए कबीर जी ने कहा था कि ‘काल करे जो आज कर, आज करे सो अब। पल में परलो होयगी, बहुरि करोगे कब।’’ इस दोहे में कबीर जी ने समय के महत्व को थोड़े शब्दों में ही समझा दिया है। उनका कहना है कि मनुष्य जीवन के उपयोग की बात तो सभी करते हैं किन्तु उन क्षणों एवं समय पर, जो कि जीवन की इकाई है, कोई ध्यान नहीं देते हैं। इस प्रकार समय को गंवा कर वास्तव में हम अपने अनमोल जीवन को गंवाने का काम करते हैं। आज मानव जीवन में पाये जाने वाले तनाव का भी सबसे बड़ा कारण ‘समय का दुरुपयोग’ ही है। जब हम किसी काम को तुरन्त न करके आगे के लिए टाल देते हैं तो यही काम हमें बहुधा आपात स्थिति में ला देता है, जिससे मनुष्य में तनाव की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
कबीर जी जिस युग में आये, वह युग भारतीय इतिहास में आधुनिकता के उदय का समय था। वह कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे और उसकी झलक उनकी रचनाओं में साफ झलकती है। जन-कल्याण हेतु ही मानो उनका समस्त जीवन था। (सुमन सागर)