आई आज दीवाली

आई है फिर आज दीवाली,
लाई है फिर आज खुशहाली।
अमावस का अन्धेरा भगाया है,
शहर जग मग जग-मगाया है।
दीयों से ही नहीं हैं रौशन रातें,
करते हैं सब पटाखों की बातें।
धुआं-धुआं हो जलता है अब सब,
प्रदूषण से भरता है जग सब।
मिठाई की जगह भी रही नहीं है,
दीपक भी जलता कहीं नहीं है।
किसको आज ये बात समझाएं,
नोटों को न हम आग लगाएं।
लक्ष्मी की मिल कर करो पूजा,
नहीं इससे अच्छा काम कोई दूजा।
राम जी जब अयोध्या आए थे,
खुशी से सब के दिल हर्षाए थे।
बन्दी छोड़ ने दिलाई थी आज़ादी
क्यूं उनकी कुर्बानी कहो भुला दी।
बुद्ध ने निर्वाण इस दिन पाया था,
सच्चाई का मार्ग दिखाया था।
दीए नहीं अब जलाए हैं जाते,
लड़ियों से अंधेरे भगाए हैं जाते।

— मीनू ‘सुखमन’