इस दीवाली भी नहीं थमे पटाखे, मतलब हम नहीं सुधरेंगे..!

पिछले करीब एक दशक से नवम्बर का महीना दिल्लीवासियों के लिए नरक से कम नहीं होता। सांस लेना दूभर होता है। इन दिनों वायु प्रदूषण अपनी चरम पर होता है। इस बार तो और ज्यादा मुश्किल थी, क्योंकि नवम्बर महीने में ही दीवाली भी पड़ रही थी। इसलिए शासन-प्रशासन के हाथ-पांव फूलने स्वाभाविक थे। इस साल देश की राजधानी नवम्बर शुरु होने के पहले ही गैस चैंबर में तब्दील हो गई थी। 2 नवम्बर 2023 को दिल्ली के ज्यादातर हिस्सों में एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 400 से 600 प्लस स्तर पर था। मसलन मुंडका का एक्यूआई जहां 616 पर था, वहीं बवाना का 452, द्वारका का 406, आनंद विहार का 450, नेहरू नगर का 400, पंजाबी बाग का 445 और वजीरपुर का एक्यूआई 435 था। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) का भी औसत एक्यूआई 350 से ऊपर था। लब्बोलुआब यह कि इस बार दीवाली के पहले ही राष्ट्रीय राजधानी और उसके आसपास के क्षेत्र में वायु प्रदूषण का खतरनाक स्तर तक पहुंच गया था, जिस कारण राजधानी और एनसीआर के दूसरे शहरों में भी छोटे बच्चों के स्कूल 8 से 10 दिनों के लिए बंद कर दिए गए थे। राजधानी दिल्ली में सभी तरह की निर्माण संबंधी गतिविधियां भी रोक दी गईं थी, दिल्ली में बाहर से आने वाले ट्रकों के प्रवेश पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था। 
कहने का मतलब यह कि दिल्ली और केंद्र सरकार ने वह सब किया, जिससे प्रदूषण के स्तर पर कमी आ सकती। योजना बनायी गई कि दीवाली के दो दिन पहले से राजधानी में वाहनों को ऑड-इवेन क्रम से चलाया जाए और अंत में अगर किसी भी तरह से प्रदूषण कम न हो तो ऐन दीवाली से एक दो दिन पहले कृत्रिम वर्षा कराये जाने की भी योजना बनायी गई। मगर लगता है कुदरत को दिल्ली और एनसीआर के लोगों पर तरस आ गया, जिस कारण दीवाली के ठीक दो दिन पहले रह रहकर कई घंटों तक दिल्ली और एनसीआर में जमकर बारिश हुई। यह एक तरह से कुदरत का इस क्षेत्र के लोगों के लिए शुद्ध हवा का शानदार दीवाली तोहफा था। जो एयर क्वालिटी इंडेक्स आमतौर पर 600 से ऊपर तक पहुंच गया था और कुछ खास समय के लिए तो कई इलाकों में यह 800 अंकों का स्तर भी पार गया था। वह घटकर 240 से 160 के करीब आ गया। जैसा कि आमतौर पर बहुत दुर्लभ स्थितियों में ही होता है। 
जाहिर है इससे राजधानी और उसके आसपास के शहरों के लोग खुश थे, कुदरत को धन्यवाद दे रहे थे और इस बात पर राहत महसूस कर रहे थे कि दीवाली उतनी मुश्किल भरी नहीं होगी, जितनी दो दिन पहले तक थी। जो राजधानी गैस चैंबर में तब्दील हो चुकी थी, अचानक सांस लेने लायक हो गई। भला इस पूरी पृष्ठभूमि में कौन सोच सकता था कि लोग दीवाली की खुशी के नाम पर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार लेंगे। लेकिन ऐसा ही हुआ। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) ने 1 जनवरी, 2024 तक राजधानी दिल्ली में पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा रखा है। दिल्ली की ही तरह गुरुग्राम ज़िला प्रशासन ने भी प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए पटाखों के निर्माण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। यह प्रतिबंध भी 1 नवंबर, 2023 से 31 जनवरी, 2024 तक प्रभावी रहेगा। 
लेकिन लोगों ने सारे प्रतिबंधों को धता बताते हुए दीवाली की रात जमकर पटाखे फोड़े। पटाखे किस हद तक फोड़े गये इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस दिल्ली के वातावरण का एक्यूआई दीपावली की लगभग शाम तक 218 था, वह दीवाली की देर रात बढ़ते-बढ़ते तड़के तक 999 तक पहुंच गया। राजधानी दिल्ली की पहचान इंडिया गेट का आलम तो यह हो गया कि सुबह यहां दृश्यता 100 मीटर से भी कम की रह गई। राजधानी दिल्ली के हर कोने में प्रचंड प्रदूषण अपना जहरीला फन लहराने लगा। चाहे अपने प्रदूषण स्तर के लिए बदनाम बॉर्डर में बसा आनंद विहार हो या फिर औद्योगिक बस्तियों के प्रदूषण के लिए विख्यात बवाना, मुंडका और वजीरपुर जैसे इलाको हों। दिल्ली का कोई ऐसा इलाका नहीं था, जो दिवाली की अगली सुबह 800 एक्यूआई से नीचे हो। जहांगीर पुरी, आरके पुरम, ओखला, श्रीनिवास पुरी, कनाट प्लेस आदि जगहों पर भी प्रदूषण का स्तर खतरनाक लेबल तक पहुंच गया था। कहने का मतलब यह कि राजधानी दिल्ली का कोई ऐसा कोना नहीं बचा था, जहां दीवाली की अगली सुबह सांस लेना मुश्किल न हो गया हो। पिछले कई सालों की तरह इस बार भी दीवाली के मौके पर पहले से ही धुएं से अटी राजधानी एक बार फिर भयानक गैस चैंबर में तब्दील हो गई। क्या हम अपने ही दुश्मन हैं, अगर नहीं तो फिर बार-बार यह आत्मघात क्यों कर रहे हैं? यहां के लोगों को इस सवाल पर मंथन ज़रूर करना चाहिए।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर