अध्यात्म-कला का संगम खजुराहो

भारतीय राजाओं ने अपने सांस्कृतिक गौरव को अक्षुण्ण रखने के लिए श्रेष्ठ वास्तुकला का सहारा लिया। उस काल में अनेक ऐसे मंदिरों का निर्माण हुआ जो कला के साथ-साथ अध्यात्म का बेजोड़ उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। ऐसे मंदिर जिन्होंने पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित किया है, उन में से एक हैं खजुराहो के मंदिर। देश में ताजमहल के अलावा अगर कोई पर्यटन स्थल विदेशी सैलानियों और पर्यटकों को सर्वाधिक आकर्षित करता है तो वह  खजुराहो ही है। खजुराहो एवं जटकरा के शिव सागर, निनौरा ताल तथा कुड़ार नाले पर विद्यमान आर्य शिल्प कला के सर्वोत्कृष्ट आदर्श ये गगनचुम्बी देवालय लगभग 10 किमी के विस्तृत भू-भाग में फैले हुए हैं। मंदिर परिसर में प्रवेश के लिए चालीस रुपये का टिकट है। विश्व धरोहर होने के कारण प्रवेश से पूर्व धातुरोधी यंत्रों से जांच की गई। अन्दर किसी प्रकार की खाने की वस्तु ले जाने की आज्ञा नहीं है। प्रवेश करते ही हरे-भरे पार्क, रंग-बिरंगे फूलों की क्यारियां अपनी वासंती छटा बिखेर रही थीं। पृष्ठ में विशाल मंदिर शोभायमान हो रहा था।  हर मंदिर का विशाल प्लेटफार्म, उस पर भी काफी ऊंचाई पर बना गर्भगृह, मंदिर के बाहर कलात्मक मुद्राओं वाली मूर्तियां लेकिन मंदिर के अंदर केवल भगवान शिव। मंदिर परिसर का अवलोकन करने के पश्चात खजुराहो के विषय में मेरी धारणा बदल गई। सारा संसार बेशक इसे काम कलाओं का केन्द्र कहे मगर मेरा हृदय इनमें छिपे अध्यात्म के लिए शिल्पकार को सराह रहा था। 
मंदिर के आधार (प्लेटफार्म) के चहुं ओर एक फुट से भी कम चौड़ाई की मूर्तियां, उन्हीं में हैं कुछ कामुक मुद्राएं लेकिन उसके साथ ही सेना, युद्ध, हाथी, घोड़े, बरछे, भाले, बंदी देखकर भी यदि इनके वास्तविक अर्थ को न समझ पाए तो दोष मूर्तिकार का नहीं, स्वयं हमारा है। स्पष्ट है कि यह संदेश देने की कोशिश है कि काम संसार का आधार है परंतु काम में इतने भी न डूब जाओ कि मर्यादा का ध्यान भी न रहे। यदि मर्यादा की लक्ष्मणरेखा पार की तो विनाश के लिए भी तैयार रहो। अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि कामुक चित्र तो  मात्र 2-3 प्रतिशत भी न होंगे। शेष चित्रों में संगीत, नृत्य और अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित सेना है। आधार से आगे बढ़ो तो मंदिर के बाहरी भाग में एक स्थान पर ही कामुक चित्र हैं अन्यत्र लगभग सामान्य चित्र हैं। यहां तक कि अनेक स्थानों पर गणपति महाराज की सुन्दर मूर्तियां हैं। 
मंदिर के चहुं ओर परिक्र मा कर जब आप गर्भगृह की सीढ़ियां चढ़ते हैं तो द्वार पर भी कुछ नारी चित्र हैं मगर मंदिर के अंदर केवल आप और आपका इष्ट। क्या इसका यह स्पष्ट अर्थ नहीं कि काम को बाहर त्यागकर ही आप अपने प्रभु से साक्षात्कार कर सकते हो। यदि इन मंदिरों के निर्माण का उद्देश्य काम-कला का प्रचार-प्रसार ही होता तो निश्चित रूप से मंदिर के अंदर भी ऐसे चित्र होते। यह कहानी एक मंदिर की नहीं, शेष सभी मंदिरों की थी। मैं योजनाकार और शिल्पियों की दूरदर्शिता का कायल हो गया। मजेदार बात यह है कि खजुराहो गांव, जहां चंदेल राजाओं ने 80 मंदिर बनाए, न तो किसी नदी के पास है, न ही खेती का बड़ा केन्द्र रहा है। इन मंदिरों की खासियत यह है कि यहां शिव, विष्णु, ब्रह्मा और जैन सभी के मंदिर हैं। चंदेलाओं का राज पांच सदियों तक चला।  आसपास के क्षेत्र के अति पिछड़ेपन को देखकर यह अनुमान लगता है कि तब मंदिर बनाने के अलावा कोई और काम न था। अंग्रेजों ने 1838 में इस स्थान को फिर खोजा जो 12०० के आसपास दिल्ली में मुगल शासन के बाद लगभग खो गया था। यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में कंदरिया महादेव मंदिर प्रमुख है जोकि  खजुराहो के बीचाें-बीच विद्यासागर वर्मन द्वारा 1०65 में बनवाया गया। यह शिव मंदिर 117 फुट ऊंचा, इतना ही लंबा और 66 फुट चौड़ा है। शिव को समर्पित यह भव्य मंदिर बाहर से देखने पर किसी गुफा का एहसास कराता है, संभवत: इसीलिए इसका नाम कंदरिया पड़ा। इस मंदिर की बाहरी और भीतरी दीवारों पर जो शिल्प गढ़ा है, उसकी तुलना करने की कोशिश की जाए तो शायद कोई दूसरी जगह न मिले। सतही तौर पर पर्यटकों को तब हैरानी होती है जब वे देखते हैं कि कैसे शिल्पकारों ने एक एक सेंटीमीटर जगह का उपयोग किया है। 
वैसे भौगोलिक लिहाज से खजुराहो के मंदिरों को तीन हिस्सों से बांटा गया है। पश्चिम मंदिर समूह का महत्वपूर्ण मंदिर चौंसठ योगिनी मंदिर है। यह खजुराहो का सब से पुराना मंदिर माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण काल छठी सदी माना गया है। मंदिर के नाम से ही तांत्रिकों का तंत्र और उनका प्रभाव स्पष्ट होता है। कहा जाता है, यहां तांत्रिकों द्वारा 64 योगिनियों की पूजा की जाती थी। इसी समूह में लक्ष्मण मंदिर, मातंगेश्वर मंदिर, वराह मंदिर, पार्वती मंदिर व चित्रगुप्त मंदिर हैं जिनकी अलग-अलग विशेषताएं हैं मगर इनमें समानता यही है कि सभी मंदिरों की बाहरी दीवारों पर मूर्तियां हैं। यहां की शिल्पकला में शृंगार का जो समावेश है, वह सोचने पर विवश करता है कि नायिका की भावभंगिमा और लुभाने की मुद्राओं का कोई अंत नहीं होता। पूर्वी मंदिर समूह में निरंधार शैली के वामन मंदिर का प्रवेशद्वार हालांकि टूटा हुआ है लेकिन गर्भगृह में विष्णु प्रतिमा बेहतर हालत में है। इसी समूह में घंटाई मंदिर खजुराहो गांव के बाहरी दक्षिणी रास्ते पर स्थित है जिस में घंटियां सांकलों से लटकी प्रदर्शित की गई हैं। पूर्वी समूह के जवारी मंदिर में खंडित विष्णु प्रतिमा बैकुंठ रूप को दिखलाती है तो ब्रह्मा मंदिर लावा और बालू पत्थर से निर्मित है जो 900 ईस्वी का बना हुआ है। 

—विनोद बब्बर