दूध ही नहीं, हर चीज में मिलावट का खतरा

मेरे व्हाट्सएप्प पर एक वीडियो आया- एक दूधवाला एक एकांत स्थान पर अपनी मोटरसाइकिल रोकता है, इधर-उधर देखता है, यह सुनिश्चित होने पर कि कोई आस-पास नहीं है व कोई उसे देख नहीं रहा है, वह अपनी अंटी में से एक केमिकल की शीशी निकालता है और वह केमिकल थोड़ा-थोड़ा हर डिब्बे में मिला देता है। अगले सीन में दो हाथ दिखायी देते हैं, वह एक गिलास में संभवत: वही केमिकल डालते हैं और फिर उस गिलास में ऊपर से पानी डाल दिया जाता है जो तुरंत दूध की तरह सफेद हो जाता है। तीसरे सीन में एक महिला अपने किचन में दूध उबाल रही है, फिर वह एक चम्मच से मलाई को हटाती है और मलाई की बहुत लम्बी परत चम्मच पर लिपट जाती है, महिला मलाई को अपनी उंगलियों से मसलने का प्रयास करती है, लेकिन असफल रहती है और कहती है कि ‘यह हमें प्लास्टिक कब तक खिलायेंगे, हमारी सेहत से खिलवाड़ कब तक?’ वीडियो का संदेश स्पष्ट है कि दूध के नाम पर आपको घातक केमिकल्स व प्लास्टिक परोसे जा रहे हैं। वायरल हुआ यह वीडियो निश्चित रूप से आपके पास भी आया होगा, जिससे यह धारणा बन चुकी है कि भारत में बहुत बड़े पैमाने पर मिलावटी दूध का धंधा हो रहा है, जो लोगों की जानें खतरे में डाल रहा है। इस धारणा को इन अपुष्ट आंकड़ों से अधिक बल मिला हुआ है कि भारत में जितना दूध उत्पादन होता है उससे दोगुना ज्यादा सप्लाई किया जाता है, जिससे निष्कर्ष निकाल लिया जाता है कि यह सरप्लस दूध मिलावटी, नकली व केमिकल से तैयार किया जाता है। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि दूध में मिलावट होती है व नकली दूध भी बनाया जाता है। लेकिन यह धारणा सही प्रतीत नहीं होती कि एक लीटर दूध को मिलावट से दो या तीन लीटर कर दिया जाता है, या दूध उत्पादन के बराबर ही केमिकल से नकली दूध भी बनाया जा रहा है। दूध सुरक्षा व गुणवत्ता सर्वे से तो कम से कम यही बात निकलकर सामने आती है। ‘सबसे विस्तृत व प्रतिनिधित्व’ सर्वे इस धारणा को तो ध्वस्त करता है कि भारत में बड़े पैमाने पर दूध मिलावटी है,लेकिन यह भी संकेत देता है कि उपलब्ध दूध स्वास्थ्य के लिए पूर्णत: सुरक्षित नहीं है। इस सर्वे के लिए 50,000 की जनसंख्या से अधिक वाले
1100 कस्बों/शहरों से मई व अक्तूबर के बीच 6432 सैंपल एकत्र किये गये। इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर के अनुसार अफलाटोक्सिन एमआई को उन रसायनों की श्रेणी में रखा गया है जिनसे लोगों को कैंसर हो सकता है। अफलाटोक्सिन एमआई की कैंसर करने की क्षमता अफलाटोक्सिन बीआई का लगभग दसवां हिस्सा मापी गई है। चूंकि वर्तमान सर्वे केवल दूध तक सीमित रहा है,
इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि दुग्ध उत्पादों जैसे पनीर आदि में अफलाटोक्सिन एमआई कितने प्रतिशत में है और इसका फैलाव कितना हो गया है। दूध व दुग्ध उत्पादों में अफलाटोक्सिन एमआई का होना जन स्वास्थ्य के लिए खतरा है, खासकर शिशुओं व युवा बच्चों में जिनके लिए दूध पौष्टिक आहार का मुख्य स्रोत है।  विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दूध व दुग्ध उत्पादों में अफलाटोक्सिन एमआई की मात्रा उन क्षेत्रों में अधिक होती है जिनमें पशु आहार में प्रयोग होने वाले अनाज की गुणवत्ता निम्न-स्तरीय होती है। इसलिए सभी प्रयास होने चाहिएं दोनों फसल काटने व उसके बाद कि टोक्सिन की मात्रा कम हो सके।  मिलावट व नकली की समस्या केवल खाने-पीने की चीजों तक ही सीमित नहीं है। जीवन के हर क्षेत्र को इसने घेर लिया है। मसलन, सीमेंट में मिलावट होती है तो इससे अच्छी-खासी बिल्डिंग गिर जाती हैं, पेट्रोल व डीजल में जबरदस्त मिलावट है, जिससे वाहनों के इंजन खराब हो जाते हैं। हाल ही में मेरठ जैसे शहर में यह भी देखने में आया कि अधिकारियों ने लाखों लीटर नकली पेट्रोल पकड़ा, लेकिन सभी आरोपी बरी हो गये। यही कुछ नकली दूध, मिठाई व मावे के संदर्भ में भी देखने में आता है। जब तक इन चिंताजनक स्थितियों पर सख्ती से नियंत्रण नहीं किया जायेगा तब तक स्वास्थ्य चाहे इंसान का हो या मोटर का उस पर
खतरा मंडराता ही रहेगा ।

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