जागरूकता ही बचा सकती है महिलाओं को हिंसा से

परिवारों की शान को कायम रखना
 भारत में हर महिला का पालन-पोषण इस प्रकार से किया जाता है कि वह अपने आप को प्राकृति पर निर्भर समझे। उसकी आवश्यकताओं को सीमित रखा जाता है, उन पर सामाजिक दबाव डाला जाता है। उसके स्वतंत्र विचारों के विपरीत उसको यह सिखाया जाता है कि विवाह एक ‘आवश्यकता’ है और उसको विवाह की ज़िम्मेदारी समझने की शिक्षा दी जाती है। जैसा कि रिपोर्टों में दिखाया गया है कि पति और उसके रिश्तेदारों की ओर से अत्याचार और आत्महत्या के लिए मजबूर करने की हालात में सबसे कम सजा भी दर्ज की जाती है। लड़की खुल कर उस परिवार के बारे में बोलने की हिम्मत नहीं रखती, जिसके ‘सम्मान’ का वह प्रनिधित्व करती है और जिसे वह अपने रिश्ते के आधार पर उन पर निर्भर बनाती है। 
शहरों में सुरक्षा
 शहरी क्षेत्रों में 2011 से 2014 के मध्य महिलाओं के साथ घर और बाहर अपराधों में वृद्धि हुई  है। इसने अपराध दरों में काफी योगदान दिया है। गांव की महिलाओं के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। उनकी सुरक्षा के लिए कुछ भी नहीं किया जाता। स्पष्ट है कि जहां पर वारदात होती है, उस जगह से बहुत से सबूत मिल सकते हैं, लेकिन गांवों में और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में ऐसी जगह बहुत मुश्किल से मिलती है। जोकि अपराध की दरों में बढ़ावा करती है।
दर्दनाक अपराधों की रिपोर्टिंग
भारत में महिलाओं पर हिंसा के खिलाफ लड़ने की रिपोर्टों पर एक बड़ा कदम है। जब कुछ बहादुर लोग विभिन्न-भिन्न सामाजिक पाबंदियों के साथ लड़ते हुए कदम उठाना चाहते हैं तो आगे चलकर जो मुश्किल उनके सामने आती है, वह है अधिकारियों की बेरुखी से निपटना।
गांव के पुलिस अधिकारी बहुत ही कम ऐसे हैं, जोकि अपराध के प्रति संवेदनशील हों। उनको ऐसे मामले से निपटने के लिए कोई भी ऐसा ज़रूरी सामान उपलब्ध नहीं करवाया जाता। ऐसी स्थिति में वह महिलाएं जो न्याय प्राप्त करना चाहती हैं, खुद ही ऐसी नीच प्रक्रिया से दूर हो जाती हैं। 
कानून बनाम सामाजिक रीति-रिवाज़
औरतों के साथ हुए अपराधों में सज़ा देने के लिए भारतीय कानूनों का सावधानी के साथ किए अध्ययन में एक और दिलचस्प रुझान दिखाई देता है। ऐसे अपराधों को देखकर लगता है कि जैसे रीति-रिवाजों और लिंग आधारित व्यवहार से नाता तोड़ने के लिए कानून बनाया हो। उदाहरण के तौर पर देखा जाता है कि ‘दुष्कर्म’ करने वाले को सज़ा दी जाती है, लेकिन ‘विवाहिता के साथ दुष्कर्म’ करने वाले को नहीं।
शादी से पहले दुष्कर्म एक अपराध है, लेकिन विवाह के बाद महिला के साथ दुष्कर्म के मामले में वह असुरक्षित हो जाती है, क्योंकि वह यह कानून की नज़र में अपराध नहीं है। कानून के पास ऐसे अपराधों के लिए कानून नहीं है।
शहरों में इसकी स्थिति
‘पारिवारिक सम्मान’, ‘कबीले या शरीक का सम्मान’, ‘जाति सम्मान’ कभी-कभी आम हालात में महिलाओं के लिए उद्देश्य चुनने के पीछे राजनीति करने से संबंधित तत्व भी काम करते हैं। आर्थिक पक्ष से कमज़ोर महिलाओं, जिनमें ज्यादातर आदिवासी महिलाएं भी शामिल हैं, जो इन हालातों में न सिर्फ दर-दर भटकती हैं, बल्कि लोगों के खराब रवैये को भी देखती हैं। इसी प्रकार अपराध से संबंधित रिपोर्टिंग के मामले में महिलाओं के सशस्त्रीकरण के अमल रूप में यह लोकप्रिय नहीं है।
एक-दूसरे के व्यवहार में क्या तबदीली लाएं
 हमें महिलाओं को शिक्षित करना और उनको योग्य ज़रूर बनाना चाहिए। बल्कि ऐसा करना स्कूली स्तर से ही शुरू कर देना चाहिए। ताकि आने वाली पीढ़ी एक-दूसरे के प्रति सत्कार योग्य हो और उनका व्यवहार भी अच्छा हो।यह भी ज़रूरी है कि स्कूलों में कौंसल हो ताकि बच्चों को उनके जीवन में प्रभावशाली पड़ावों पर अच्छी तरह प्रभावित कर सके। कानून बनाने वालों को ऐसे कानून बनाने चाहिएं ताकि महिला बाहर हर एक जगह पर सुरक्षा महसूस कर सके। सबसे ज़रूरी बात यह है कि भारत में हर एक महिला को अपने ऊपर होने वाले जुर्म के प्रति आवाज़ उठानी चाहिए। ताकि वह बेझिझक होकर बाहर आए और आगे बढ़े।