पश्चिम बंगाल हिंसा से उपजे चिंताजनक हालात
पश्चिम बंगाल का मुस्लिम बहुल ज़िला मुर्शिदाबाद 8 अप्रैल से सुलग रहा है। वक्फ कानून के खिलाफ ऐसा उबाल आया कि बवाल थमने का नाम ही नहीं ले रहा। दरअसल, ममता बनर्जी खुद कह चुकी हैं कि वो अपने राज्य में वक्फ कानून लागू नहीं होने देंगी। ममता मंच पर सीधे तौर पर अपने मुस्लिम वोट बैंक को लुभाते हुए कह चुकीं हैं कि बंगाल के 33 प्रतिशत अल्पसंख्यकों को वो कहां फेंक दें। ममता भी संकेतों की सियासत में माहिर मानी जाती हैं। इधर, भाजपा आरोप लगा रही है कि बंगाल में हिंसा के जरिये हिंदुओं को भगाने की साजिश हो रही है।
मुर्शिदाबाद ज़िले में 12 अप्रैल को हिंसक भीड़ ने पीट-पीटकर पिता-बेटे की हत्या कर दी। इनकी पहचान हरगोविंद दास (पिता) और चंदन दास (बेटे) के रूप में हुई है। दोनों हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाते थे। वहीं, 11 अप्रैल की हिंसा में घायल की 12 अप्रैल को अस्पताल में मौत हो गई थी। इस तरह मुर्शिदाबाद हिंसा में 3 लोगों की मौत हो चुकी है। हिंसा में 15 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। 150 लोग गिरफ्तार किए गए हैं।
ताजा हालात में अहम प्रश्न यह है कि पश्चिम बंगाल में इतना हिंसक, दंगानुमा, आगजनी, रेलवे ट्रैक को बाधित करने और खून-खराबे वाला माहौल क्यों है? देश के अन्य राज्यों में ऐसी हिंसा क्यों नहीं है? क्या बंगाल में दंगाइयों और उपद्रवियों को सत्ता का संरक्षण रहा है? क्या वोट बैंक की खातिर इन दंगाइयों को खुली छूट मिली हुई है? हिंदू पिता-पुत्र की चाकू से गोदकर हत्या कैसे कर दी गई? उपद्रवियों और एक खास जमात के दंगाइयों ने घरों, दुकानों, मंदिरों पर हमले करने का दुस्साहस कहां से हासिल किया? रेलगाड़ियां रोक दी गईं, क्योंकि पटरियों पर हजारों की भीड़ बैठी थी। ऐसे हालात के मद्देनज़र कलकत्ता उच्च न्यायालय को कहना पड़ा कि अदालत आंखें मूंद कर नहीं बैठ सकती। उच्च न्यायालय को मुर्शिदाबाद के हिंसाग्रस्त इलाकों में केंद्रीय बल की तैनाती का आदेश देना पड़ा। बीएसएफ के 300 जवानों के अलावा केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल की 5 कंपनियां भी तैनात की गई हैं।
मुर्शिदाबाद और उसके आसपास के गांवों में सांप्रदायिक हिंसा, पलायन, आगजनी और लूटपाट की घटनाएं देखने को मिलीं। मुसलमानों ने पाकिस्तान की उम्मीद में अपने घर छोड़ दिए, जबकि हिंदू और सिख समुदायों को भी निशाना बनाया गया। कई परिवारों को अपनी ज़मीन-जायदाद छोड़कर नए ठिकाने तलाशने पड़े। आज भी इस शहर में विभाजन की वह कड़वी विरासत मौजूद है। धार्मिक पहचान और सामाजिक संतुलन के बीच चल रही खींचतान मुर्शिदाबाद को अब तक पूरी तरह शांति की ओर लौटने नहीं देती।
अहम सवाल यह है कि यह नौबत ही क्यों आई? राज्यपाल सीवी आनंद बोस को कठोर बयान देने पड़े कि सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने और किसी की जिंदगी को खतरे में डालने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। दरअसल ऐसे उग्र, नफरती, हिंसक हालात और माहौल का बुनियादी सबब क्या है? वक्फ संशोधन कानून एक मुखौटा कारण हो सकता है, लेकिन जो मुस्लिम नेता, सांसद, मौलाना आदि सरेआम औसत मुसलमानों को भडक़ा-सुलगा रहे हैं, क्या उनके बयान किसी कानून के दायरे में नहीं आते? क्या ये गालियां भी ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ हैं? कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है, लिहाजा अमन-चैन बरकरार रखना मुख्यमंत्री और राज्य पुलिस का संवैधानिक दायित्व है।
संविधान में केंद्र और राज्य की भूमिकाओं की स्पष्ट व्याख्या है। समवर्ती सूची का कानून केंद्र और राज्य दोनों ही बना सकते हैं। यदि ऐसे किसी कानून पर केंद्र बनाम राज्य की टकरावपूर्ण स्थिति पैदा होती है, तो संविधान के अनुच्छेद 254 के तहत केंद्र का बनाया कानून ही मान्य होगा। राज्य सरकार उसे खारिज नहीं कर सकती।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बंगाल में केंद्र की ‘आयुष्मान भारत’ योजना भी लागू नहीं होने दी है। संविधान का अनुच्छेद 245 बताता है कि संसद पूरे भारत अथवा उसके किसी भाग के लिए कानून बना सकती है। राज्य विधानमंडल राज्य अथवा उसके किसी भाग के लिए कानून बना सकता है।
यह विवाद फिलहाल सर्वोच्च अदालत के विचाराधीन है। वक्फ कानून की आड़ में उपद्रव मचाने वालों को याद रखना चाहिए कि आखिर फैसला शीर्ष अदालत को ही करना है। तोड़-फोड़ करने या गली-गली आंदोलन सुलगा कर कुछ भी हासिल नहीं होगा। मौलाना किसान आंदोलन की तुलना करना छोड़ दें। सवाल यह भी है कि वक्फ का मामला प्रशासनिक है, इसे मजहबी किसने और क्यों बनाया है? आखिर प्रदर्शनकारियों को कानून के किस प्रावधान पर आपत्ति है?
यह पक्ष भी अदालत में रखा जाना चाहिए। ममता सरकार के मंत्री सिद्दीकुल्ला चौधरी ने यहां तक बयान दिया है कि राज्य की 50 जगहों पर दस-दस हजार लोगों की भीड़ जमा की जाए। क्या यह बयान संवैधानिक है? बंगाल में 2026 में चुनाव हैं। लिहाजा मुख्यमंत्री ‘तुष्टिकरण’ के खेल में जुटी हैं, तो भाजपा हिंदू-मुस्लिम को हवा दे रही है। आम आदमी बीच में पिस रहा है। उसे तो ‘वक्फ’ के मायने भी नहीं पता हैं।
मुर्शिदाबाद की 70 प्रतिशत से अधिक आबादी मुस्लिम है और 30 प्रतिशत हिंदू जनसंख्या है। यह सांख्यिकी हर राजनीतिक दल के लिए रणनीति का अहम हिस्सा बन जाती है। वक्फ अधिनियम को लेकर उपजे विवाद में भी यह तथ्य केंद्र में है। यह सिर्फ धार्मिक या सामाजिक विवाद नहीं, बल्कि एक बड़े वोट बैंक की लड़ाई भी बन चुकी है। शिक्षा में महिला की स्थिति चिंताजनक है इस ज़िले की साक्षरता दर केवल 65 प्रतिशत है और महिलाओं की स्थिति और भी चिंताजनक है। राजनीतिक बहसें चाहे जितनी तीखी हों, लेकिन शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दे यहां की जनता की असल चिंता हैं, जो अक्सर इन वाद-विवादों के शोर में दब जाते हैं।
मुर्शिदाबाद में हिंसा का कनेक्शन बांग्लादेश में बैठे चरमपंथी संगठनों से जुड़ रहा है। पश्चिम बंगाल हिंसा पर गृह मंत्रालय को केंद्रीय एजेंसियों ने जो शुरुआती जानकारी दी है, उसमें बांग्लादेशी घुसपैठियों की हिंसा में भूमिका की आशंका जताई जा रही है। रिपोर्ट के मुताबिक अवैध तरीके से दाखिल हुए बांग्लादेशियों की हिंसा में अहम भूमिका है। सवाल है कि वक्फ कानून के खिलाफ मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा के पीछे क्या इंटरनेशनल साजिश है? क्या सीमा पार से पश्चिम बंगाल के जरिये भारत की शांति में खलल डालने की कोशिश हो रही है? उ.प्र. में जिस तरह से उपद्रवियों और दंगाइयों पर मुख्यमंत्री योगी ने नकेल कसी है, क्या बंगाल में भी योगी मॉडल से ही हिंसा पर विराम लगेगा?