विरासती स्थानों की सम्भाल कर रही है मोदी सरकार

विश्व धरोहर दिवस पर विशेष लेख

विरासत वह अनमोल धरोहर है जो हमें अतीत से मिली है। यह एक ऐसी अमूल्य सौगात है जिसका वर्तमान में भी महत्व है, जिसका न सिर्फ  आनंद लिया जाना चाहिए बल्कि भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित भी किया जाना चाहिए। हम वास्तव में भाग्यशाली हैं कि भारत सांस्कृतिक विरासत का खजाना है।
प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता और वैदिक काल से लेकर आज की जीवंत संस्कृति तक, भारत एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है जिसे कई महान सभ्यताओं और साम्राज्यों ने आकार दिया है। भारत के अनगिनत ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण प्राचीन स्थल और स्मारक अपने समय के मूल्यों, लोकाचार और कलात्मकता अभिव्यक्ति को दर्शाते हैं। इसके बावजूद, आज़ादी के बाद दशकों तक हमारी विरासत को संरक्षित करने के लिए बहुत कम या कोई प्रयास नहीं किया गया।
हालाँकि, पिछले एक दशक में महत्वपूर्ण परिवर्तन आया है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की विरासत के महत्व को पहचाना और ‘विकास भी, विरासत भी’ के मंत्र के साथ इसके संरक्षण को प्राथमिकता दी, जिसने भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान को पुनर्जीवित करने के साथ-साथ इसके आर्थिक विकास को भी गति दी है।
18 अप्रैल को जब हम विश्व धरोहर दिवस के रूप में मानते हैं, तब भारत इस बात का प्रमाण है कि कैसे विकास और विरासत संरक्षण एक साथ मिलकर देश की पहचान को पुनर्जीवित करते हुए इसके भविष्य का निर्माण भी कर सकते हैं।
सांस्कृतिक का प्रतीक राम मंदिर
भारत की विकास और विरासत का सबसे बड़ा प्रतीक अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण है। यह भव्य मंदिर 500 से अधिक वर्षों के लम्बे इंतजार के बाद प्रधानमंत्री मोदी के संकल्प और भगवान राम की जन्मभूमि पर इसे बनाने के अथक प्रयासों से संभव हुआ। भगवान राम की शिक्षाएं करुणा, न्याय और कर्तव्य पर आधारित हैं, जो भारतीय संस्कृति को प्रभावित करती हैं।
दुनिया भर में 1.2 बिलियन हिंदुओं के लिए, अयोध्या में राम मंदिर पूजा स्थल से कहीं अधिक भारत की सांस्कृतिक भावना का उत्सव है, जो न केवल भारतीय वास्तुकला की भव्यता को प्रदर्शित करता है बल्कि भक्ति धार्मिकता और दृढ़ता के मूल्यों को दर्शाता है।
सांस्कृतिक पुनरुत्थान के एक नए युग की शुरुआत को चिह्नित करता राम मंदिर भक्ति, एकता और एक सपने के पूरा होने का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि हमारे मतभेदों के बावजूद,  हमारा एक साझा अतीत और गहरी सांस्कृतिक जड़ें हैं जो सभी को भारत की साझा विरासत का जश्न मनाने के लिए आमंत्रित करते हैं। 
विरासत स्थलों का पुनरुद्धार 
केंद्र सरकार ने भारत भर में विरासत स्थलों के पुनरुद्धार और पुनर्विकास पर निरन्तर ध्यान दिया है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर और वाराणसी में विभिन्न अन्य परियोजनाओं ने शहर की गलियों, घाटों और मंदिर परिसरों को बदल दिया है। वास्तव में, 1777 में अहिल्याभाई होल्कर के बाद से यह लगभग 250 वर्षों में काशी में पहली परिवर्तनकारी परियोजना है।
900 किलोमीटर की चार धाम सड़क परियोजना केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री के चार पवित्र धामों को सभी मौसम में निर्बाध सड़क संपर्क प्रदान करेगी। सोमनाथ मंदिर पुनर्निर्माण परियोजना, उज्जैन महाकाल कॉरिडोर और गुवाहाटी में मां कामाख्या कॉरिडोर 14,234 करोड़ रुपये से अधिक की लागत वाली संरक्षण, बहाली और विकास परियोजनाओं के माध्यम से हमारी आध्यात्मिक विरासत के पुनर्विकास के अन्य उदाहरण हैं।
अल्पसंख्यकों की विरासत का संरक्षण
‘विविधता में एकता’ भारत की सबसे बड़ी ताकत है क्योंकि यह राष्ट्र में गहराई और जीवंतता जोड़ती है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले 10 वर्षों में भारत के अल्पसंख्यक समुदायों की समृद्ध संस्कृति और विरासत के संरक्षण के लिए अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित की है।
केंद्र सरकार ने विरासत शहर अमृतसर के विकास और संरक्षण के लिए हृदय योजना के तहत 69.31 करोड़ रुपये आवंटित किए जबकि प्रसाद योजना के तहत अमृतसर में स्वर्ण मंदिर, रोपड़ में चमकौर साहिब, पंचकूला में नाडा साहब गुरुद्वारा के विकास के लिए भी धनराशि जारी की। इसके अतिरिक्त, यूनेस्को का दर्जा प्राप्त करने और गुरुद्वारा लखपत साहिब के जीर्णोद्धार के लिए भी पहल की गई है, जहां गुरु नानक देव जी चौथी उदासी के दौरान कुछ दिनों के लिए रुके थे।
हाल के दिनों मेंए केंद्र सरकार ने यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल बेसिलिका ऑफ  बोम जीसस जैसे धार्मिक स्थलों के सौंदर्यीकरण और संरक्षण के लिए कदम उठाए हैं इसके साथ बौद्ध तीर्थयात्रियों के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय गंतव्य के रूप में बोधगया का विकास किया है।  बोधगया और लुंबिनी को जोड़ने वाले बौद्ध सर्किट के निर्माण के अलावाए बौद्ध शिक्षा के एक महत्वपूर्ण केंद्र नालंदा विश्वविद्यालय को फिर से खोल दिया गया है। बिहारए उत्तर प्रदेशए मध्य प्रदेश और गुजरात में 12 जैन धार्मिक स्थलों को जोड़ने वाले जैन सर्किट का विकास तीर्थयात्रियों के लिए सुरक्षित और आसान यात्रा सुनिश्चित करता है।
इसलिए हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ‘विकास भी, विरासत भी’ के मंत्र के साथ सरकार के प्रयासों का नेतृत्व कर रहे हैं।

-संसद सदस्य (राज्यसभा)
satnam.sandhu@sansad.nic.

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