फिर से कश्मीर का राग
पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने विगत दिवस एक बार फिर भारत पर निशाना साधते हुए कड़ा बयान दिया है। उसने जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान की गले की नस बताया है और कहा है कि यह ऐसे ही रहेगी, हम इस बात को नहीं भूलेंगे। दूसरी बड़ी बात उसने यह कही कि मुसलमान और हिन्दू दो अलग-अलग धर्म हैं। इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान का बनना उचित था। न सिर्फ हिन्दू और इस्लाम अलग-अलग धर्म हैं, अपितु इनकी परम्पराएं, विचार और इच्छाएं भी अलग-अलग हैं। इससे भी आगे बढ़ते हुए उसने यह भी दावा किया है कि यदि भारत की 13 लाख की सेना अपनी पूरी शक्ति से हमें डरा नहीं सकती तो पाकिस्तान के विरुद्ध जेहाद छेड़े हुए आतंकवादी हमें कैसे दबा सकते हैं? इस्लामाबाद में हुए एक सम्मेलन, जिसमें सेना प्रमुख ने यह विचार व्यक्त किए थे, में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज़ शऱीफ भी शामिल थे। जनरल की कही इन बातों से मौजूदा पाकिस्तान की स्थिति के संबंध में बहुत कुछ स्पष्ट हो जाता है।
विगत दिवस बांग्लादेश में हुए श़ेख हसीना के विरुद्ध विद्रोह के बाद पाकिस्तान बहुत हौसले में आया दिखाई देता है और बांग्लादेश के साथ सहयोग बढ़ाने के लिए उसने अपना हाथ भी आगे बढ़ाया है। कुछ अवधि पहले दोनों देशों के प्रतिनिधियों की भेंटवार्ता भी हो चुकी हैं। पाकिस्तान बांग्लादेश से भारत के खराब हुए संबंधों का अधिक से अधिक लाभ उठाने के यत्न में है। यदि बांग्लादेश की बात करें तो वर्ष 1971 तक यह पाकिस्तान का हिस्सा था। दोनों के मध्य समुद्री पक्ष से लम्बी दूरी थी। इसे पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था। नि:संदेह मुहम्मद अली जिन्ना देश की आज़ादी के समय ब्रिटिश शासन की बदनीयती से दो राष्ट्रीय सिद्धांत के आधार पर भारत का विभाजन करवा कर अलग देश पाकिस्तान बनाने में सफल हो गया था, क्योंकि ब्रिटिश शासक भी अपने भविष्य के स्वार्थों के लिए भारत को कमज़ोर करके ही जाना चाहते थे, परन्तु उनका दो राष्ट्रीय सिद्धांत समय के व्यतीत होने से क्रियात्मक रूप से पूरी तरह विफल हो गया था। पाकिस्तान बनने के बाद भी भारत में रहने वाले मुसलमानों की संख्या पाकिस्तान से अधिक थी। यह सिद्धांत उस समय भी गुब्बारे की भांति उड़ गया था जब बांग्लादेश ने पाकिस्तान से अलग होने के लिए अपनी आज़ादी की लड़ाई शुरू कर दी थी। उस समय पाकिस्तानी सेना ने बड़ी निर्ममता से लाखों ही बांग्लादेशियों की गोलियों मार कर हत्या कर दी थी। ऐसी ही स्थिति में भारत के हस्तक्षेप से ही यह क्षेत्र पाकिस्तान से आज़ाद होकर नया देश बना था। यदि धर्म के आधार पर दो-राष्ट्रीय सिद्धांत प्रभावशाली होते तो आज भी पाकिस्तान में बलोचिस्तान इससे अलग होने के लिए संघर्ष करता दिखाई न देता। ऐसी लड़ाई उसने पाकिस्तान बनने के साथ ही शुरू कर दी थी। यदि दो धर्मों के सिद्धांत में कोई वज़न होता तो आज ़खैबर पखतूनख्वा में पाकिस्तान के विरुद्ध भीषण लड़ाई न छिड़ी होती। इस प्रांत के लोग हर हाल में पाकिस्तान से मुक्ति चाहते हैं। इसी देश में सिंध के ज्यादातर संगठन अपना अलग ऱाग अलाप रहे हैं। स्थान-स्थान पर बहुसंख्या में धरती पर फैले अलग-अलग आतंकवादी संगठनों ने पाकिस्तान में प्रशासन के नाक में दम करके रखा है। प्रतिदिन वह पाकिस्तान पर कब्ज़ा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और अपनी गतिविधियों से इसे रक्त-रंजित करते जा रहे हैं।
यदि पाकिस्तान के संकल्प में कोई दम होता तो आज यह देश व्यापक स्तर पर ़गरीबी का शिकार हुआ क्यों दिखाई देता? आज इस पर सिर्फ सेना का ही पहरा क्यों होता? इसके राजनीतिक नेता एक दूसरे के खून के प्यासे हुए क्यों दिखाई देता? आज इसकाअस्तित्व सेना के सिर पर ही बचा हुआ दिखाई देता है। देखने वाली बात यह होगी कि यह सेना अपनी प्रत्येक तरह की शक्ति का इस्तेमाल करके इस देश को कितने समय तक एकजुट करके रख सकेगी? बलोचिस्तान जैसे सबसे बड़े प्रांत में दशकों से सेना विरोधियों को दबाने के लिए हर तरह के अत्याचार करती दिखाई दे रही है परन्तु अब यह मामला इस सीमा तक जटिल हो गया है कि यह प्रतीत होने लगा है कि पाकिस्तान की सेना भी देश को ज्यादा समय तक एकजुट नहीं रख सकेगी। पैदा हुई ऐसी अनिश्चितता और घबराहट से बौखलाई सेना के प्रमुख ने पुन: कश्मीर का राग अलापना शुरू कर दिया है परन्तु इस पक्ष से भी पाकिस्तान को पहले की भांति निराशा का मुंह ही देखना पड़ेगा, क्योंकि अब उसके लिए अपना घर सम्भालना भी बेहद कठिन हो गया है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द