हेराल्ड मामला-एक नया टकराव

नेशनल हेराल्ड मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी के विरुद्ध आरोप-पत्र दायर करने से यह मामला जहां और गम्भीर हो गया है, वहीं इससे देश की राजनीति पर भी बड़ा प्रभाव पड़ने की सम्भावना बन गई है। तकनीकी पक्ष से चाहे ई.डी. (प्रवर्तन निदेशालय) द्वारा उठाए गए इस कदम के पुख्ता प्रमाण भी पेश किए गए हैं, परन्तु राजनीति तौर पर इसे केन्द्र सरकार द्वारा विपक्षी पार्टियों के बड़े राजनीतिज्ञों को डराने की नीति के रूप में ही देखा और प्रचारित किया जाएगा। इसके विरोध में देश भर में कांग्रेस द्वारा भारी प्रदर्शन भी किए गए हैं। आगामी समय में भी ‘इंडिया ब्लाक’ की पार्टियां एकजुट होकर मोदी सरकार के विरुद्ध व्यापक रोष प्रदर्शन कर सकती हैं और इसे विरोधी स्वर को दबाने की नीति के रूप में देखा जाएगा। 
इसके कई कारण हैं। विगत दशक भर से जिस तरह केन्द्र सरकार ने आयकर सहित अपनी अन्य एजेंसियों का इस्तेमाल किया है, उसकी कड़ी प्रतिक्रिया सामने आती रही है। इसे सरकार की एकतरफा नीति ही कहा जाता रहा है, क्योंकि देश भर में इन एजेंसियों द्वारा की गई अधिकतर कार्रवाइयां सरकार के विरोधियों पर ही की गई हैं। विरोधियों द्वारा आरोप लगाए जाते रहे थे कि सरकार कथित भ्रष्टाचार को हथियार बना कर विरोधियों को डराने की नीति भी धारण कर रही है। इस बात की अनेक उदाहरणें दी जा सकती हैं। जो नेता इससे डर कर सरकार की शरण में आ गया, वह बच गया। अभिप्राय उस पर ऐसी एजेंसियां मेहरबान होती गईं। तराज़ू का एक पलड़ा संतुलन को बिगाड़ देता है, परन्तु आज भी ऐसी ही नीति जारी है, जिससे सरकार की छवि धूमिल भी होती रही है और इसकी आलोचना भी होती रही है।
जहां तक नेशनल हेराल्ड मामले का संबंध है इसकी कहानी लम्बी है। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस अंग्रेज़ी समाचार पत्र को लखनऊ से वर्ष 1938 में शुरू किया था, बाद में इसे दिल्ली से भी प्रकाशित किया जाने लगा और इससे हिन्दी और उर्दू के समाचार पत्र भी निकाले गए। इसलिए नैशनल एसोसिएटड जनरलज़ लिमिटेड कम्पनी बनाई गई, जिसमें हज़ारों ही शेयर धारक थे। आज़ादी के लिए संघर्ष के दौरान ब्रिटिश सरकार ने इस समाचार पत्र को वर्ष 1942 से 1945 तक बंद कर दिया था। फिर इसे वर्ष 1946 में पुन: निकाला गया। पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में यह समाचार पत्र चलता रहा। बाद में प्रधानमंत्री बनने के उपरांत उन्होंने इस कम्पनी के बोर्ड के चेयरमैन का पद छोड़ दिया। चाहे लम्बी अवधि तक इस समाचार पत्र का बड़ा नाम और प्रभाव बना रहा परन्तु वर्ष 2008 में कम्पनी को आर्थिक मंदी के कारण इस समाचार पत्र को बंद कर दिया गया। उससे कई वर्ष बाद इसके डिज़िटल एडीशन ज़रूर शुरू किए गए। पहले इसे एसोसिएटड जनरलज़ लिमिटड कम्पनी ही चलाती थी। उसके  बाद वर्ष 2016 में इसके सिर पर भारी ऋण चढ़ जाने के कारण इसका डिज़िटल एडीशन ही प्रकाशित किया जाने लगा, परन्तु इस कम्पनी की नई दिल्ली, लखनऊ, भोपाल, मुम्बई, इंदौर, पटना और पंचकूला में बड़ी सम्पत्तियां ज़रूर थीं। दिल्ली में बहादुर शाह ज़़फर मार्ग पर 6 मंज़िला हेराल्ड हाऊस भी इससे संबंधित है। वर्ष 2010 में यंग इंडिया नामक प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी बना कर एक निर्धारित राशि देकर पहली कम्पनी एसोसिएटड जनरलज़ की सम्पत्तियों को इस नई कम्पनी में शामिल कर लिया गया। इस नई कम्पनी में राहुल गांधी और सोनिया गांधी के शेयर 76 प्रतिशत हैं और 24 प्रतिशत शेयर मोती लाल वोहरा और ऑस्कर फर्नांडीज़ को दिए गए और इस कम्पनी को आर्थिक लाभ पहुंचाने वाली घोषित किया गया।
वर्ष 2012 में सुब्रमण्यम स्वामी, जो उस समय भाजपा से संबंध रखते थे, ने नेशनल हेराल्ड को चलाने वाली पुरानी कम्पनी एसोसिएटड जनरलज़ की सम्पत्तियां बहुत कम राशि देकर नई यंग इंडिया द्वारा खरीदने को अदालत में चुनौती दे दी। यह मामला अब तक लगातार कई चरणों से गुज़रता रहा है। बाद में केन्द्र सरकार द्वारा इसकी जांच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के हवाले कर दी गई। जिसने लम्बी जांच-पड़ताल के बाद अब उपरोक्त नेताओं के विरुद्ध आरोप पत्र दायर किया है। इससे जहां पुन: एक लम्बी कानूनी लड़ाई शुरू हो गई है, वहीं राजनीतिक क्षेत्र में इस मामले पर घमासान पैदा होने की जो सम्भावना भी बन गई है, उससे देश में कई बड़े कारणों के कारण पहले ही बन चुके टकराव के माहौल के और भी बढ़ने की भारी सम्भावना है। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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