सरकारी स्कूलों की संख्या में 8 प्रतिशत की कमी, गुणवत्ता में भी गिरावट
भाजपा की केंद्र सरकार हमेशा से देश में शिक्षा के निजीकरण को बढ़ावा देती रही है। हाल ही के आंकड़ों से पता चलता है। 2014-15 से 2023-24 के दौरान निजी स्कूलों की संख्या में 14.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और उन्होंने पिछले तीन वर्षों में अपनी फीस में 50-80 प्रतिशत की वृद्धि की है। दूसरी ओर पिछले एक दशक के दौरान देश में सरकारी स्कूलों की संख्या में 8 प्रतिशत की कमी आयी है, जिनमें से अधिकांश भाजपा शासित राज्यों में हैं।
दिल्ली में प्राइवेट स्कूलों द्वारा विद्यार्थियों की फीस में की गयी अत्यधिक वृद्धि को लेकर जो विवाद छिड़ा है, उससे देश की शिक्षा व्यवस्था के बारे में और भी भयावह जानकारी मिलती है। सरकारी स्कूलों की संख्या कम होती जा रही है और शिक्षकों तथा बुनियादी ढांचे की कमी के कारण उनमें शिक्षा की स्थिति खराब होती जा रही है। इससे निजी स्कूलों के पनपने और समृद्ध होने के लिए परिस्थितियां बनती हैं, जो केवल उन्हीं छात्रों को शिक्षा देते हैं जिनके अभिभावक आर्थिक रूप से सम्पन्न हैं या कम से कम जो किसी तरह से फीस वहन कर सकते हैं, हालांकि बहुत मुश्किल से। यह इस देश के बच्चों के सार्वभौमिक और समान शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन करता है और अपेक्षाकृत गरीब परिवारों के बच्चों के लिए असमान शिक्षा स्तर बनाता है। अभिभावकों तथा माता-पिता में यह डर निजी स्कूलों के प्रति उनके आकर्षण को बढ़ाता है। अभी गत फरवरी महीने में ही केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री जयंत चौधरी ने लोकसभा को बताया था कि 2014-15 और 2023-24 के बीच सरकारी स्कूलों की संख्या में 8 प्रतिशत की कमी आई है और निजी स्कूलों की संख्या में 14.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। कुल संख्या की बात करें तो सरकारी स्कूलों की संख्या में 89,441 की कटौती की गयी, जबकि निजी स्कूलों की संख्या में 42,944 की वृद्धि हुई। वर्तमान में देश में 10,17,660 सरकारी स्कूल हैं जबकि प्राइवेट स्कूलों की संख्या 3,31,108 है।
सदन में दिये गये आंकड़ों से पता चला है कि भाजपा शासित दो राज्यों—मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश ने सर्वाधिक सरकारी स्कूल बंद किये। मध्य प्रदेश ने 29,410 सरकारी स्कूल बंद किये हैं और उत्तर प्रदेश ने 25,126 सरकारी स्कूल बंद किये हैं। इन दोनों राज्यों ने मिलकर देश में हुई कटौती में 60.9 प्रतिशत का योगदान दिया है। पिछले दशक के दौरान उत्तर प्रदेश में 19,305 निजी स्कूलों की वृद्धि देखी गयी, जो देश में निजी स्कूलों की कुल वृद्धि का 44.9 प्रतिशत है। मध्य प्रदेश में सरकारी स्कूलों में गिरावट 24.1 प्रतिशत रही, उसके बाद जम्मू-कश्मीर में 21.4 प्रतिशत, ओडिशा में 17.1 प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश में 16.4 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 15.5 प्रतिशत, झारखंड में 13.4 प्रतिशत, नागालैंड में 14.4 प्रतिशत, गोवा में 12.9 प्रतिशत और उत्तराखंड में 8.7 प्रतिशत रही।
निजी स्कूलों के मामले में कुल 10 राज्यों ने 14.9 प्रतिशत की औसत वृद्धि को पार कर लिया। बिहार में निजी स्कूलों में 179.14 प्रतिशत, ओडिशा में 80.36 प्रतिशत तथा उत्तर प्रदेश में 24.96 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
तीन राज्य/केंद्र शासित प्रदेश जहां निजी स्कूलों की संख्या में गिरावट आयी, वे थे मेघालय में 5.36 प्रतिशत, एनसीटी दिल्ली में 2.88 प्रतिशत और हिमाचल प्रदेश में 0.27 प्रतिशत। यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि इन राज्यों में सरकारी स्कूली शिक्षा की उपलब्धियां अधिक हैं, खासकर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के मामले में। अन्य राज्य और केंद्र शासित प्रदेश सरकारी स्कूल शिक्षा के मामले में पिछड़े हुए हैं, जिसके कारण वहां निजी स्कूलों का दबदबा बढ़ता जा रहा है।
इससे ही समझा जा सकता है कि पिछले एक दशक में देश भर में निजी स्कूलों को सरकारी स्कूलों से ज्यादा अहमियत कैसे मिल रही है। इससे निजी स्कूल छात्रों से अत्यधिक फीस वसूलने में सक्षम हो जाते हैं।
एक तरफ परिवारों की वास्तविक आय में गिरावट और दूसरी तरफ निजी स्कूलों द्वारा अत्यधिक फीस वृद्धि की पृष्ठभूमि में इस साल की स्थिति विशेष रूप से अभिभावकों के लिए परेशानी भरी हो गयी है।
हाल ही में लोकल सर्किल द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि देश में पिछले तीन वर्षों में निजी स्कूलों की फीस में काफी वृद्धि हुई है। लगभग 93 प्रतिशत अभिभावकों ने फीस वृद्धि को नियंत्रित न करने के लिए सरकारों को दोषी ठहराया है। सर्वेक्षण में देश भर के 309 जिलों को शामिल किया गया। आठ प्रतिशत अभिभावकों ने बताया कि ट्यूशन फीस में वृद्धि 80 प्रतिशत से अधिक है। तमिलनाडु और महाराष्ट्र को छोड़कर देश में कोई भी राज्य निजी स्कूल की फीस को नियंत्रित नहीं करता है।
शैक्षणिक सत्र 2025-26की शुरुआत होते ही देशभर से निजी स्कूलों द्वारा अत्यधिक फीस वृद्धि के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की खबरें आ रही हैं। दिल्ली में अभिभावकों का विरोध राजनीतिक हो गया है, क्योंकि राज्य में भाजपा सत्ता में आ गयी है और फरवरी 2025 का चुनाव हारने वाली ‘आप’ विपक्ष में है। ‘आप’ को सरकारी स्कूलों की शिक्षा को अधिकांश निजी स्कूलों से भी बेहतर बनाने का श्रेय दिया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप दिल्ली में निजी स्कूलों की संख्या में कमी आयी है। ‘आप’ ने निजी स्कूलों में हाल ही में की गयी फीस वृद्धि को लेकर भाजपा शासन पर हमला करते हुए दावा किया है कि सत्तारूढ़ भाजपा और गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूलों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक संघ के अध्यक्ष के बीच संबंध है, जिसके परिणामस्वरूप दिल्ली के स्कूलों में अत्यधिक फीस वृद्धि हुई है। निजी स्कूलों द्वारा अतार्किक फीस बढ़ोतरी का मुद्दा पूरे भारत में एक समस्या है और इसलिए इसे केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्यों द्वारा उचित नीति प्रतिक्रिया और कानून बनाकर निपटाया जाना चाहिए। केंद्र की वर्तमान शिक्षा नीति सरकारी स्कूली शिक्षा के लिए हानिकारक और निजी स्कूलों या शिक्षा के निजीकरण के लिए फायदेमंद प्रतीत होती है। (संवाद)