सनातन धर्म सदैव अहिंसा का पक्षधर रहा है

हाल ही में पहलगाम में हुए हमले के दृष्टिगत बेबसी या गुस्सा आना स्वाभाविक है, परन्तु शांति तथा अहिंसा को अक्सर गलत तरीके से स्वीकार कर लिया जाता है—जैसे कि यह सिर्फ चुपचाप सहना है, परन्तु वास्तविक अहिंसा न तो कमज़ोर होती है और न ही निष्क्रियता। यह तो ताकत होती है—न्याय की रक्षा करने तथा सही का पक्ष लेने का साहस। 
आतंकवाद रातों-रात नहीं उगता। यह बचपन से ही मनुष्य के मन में गलत शिक्षा के माध्यम से भरा जाता है—यह खतरनाक विचार कि किसी की हत्या करके  जन्नत मिलेगी। ये गलत विश्वास जो नर्म-मानवीय मन में भरे जाते हैं, यही असल समस्या है। मैंने कभी टीवी पर एक व्यक्ति को सुना था कि, ‘जिसे आप आतंकवाद कहते हैं, हो सकता है किसी और के लिए वह धर्म रक्षा हो।’ यह गलत सोच पूरी तरह खत्म होनी चाहिए, यदि मानवता को आगे बढ़ाना है। 
जो दूसरों के लिए बुरा करने की कोशिश करता है, उसका भी बुरा हो जाता है। आज जिन्होंने कभी आतंकी सोच का पोषण किया था, वे अपने ही बनाए गए माहौल में फंस गये हैं और अब उन्हें पता नहीं कि कैसे नियंत्रण करना है। 
इसलिए आध्यात्मिकता बहुत ज़रूरी है। आध्यात्मिकता धर्म से ऊपर की बात करती है। यह हमें वसुधैव कुटुम्बकम (पूरी धरती एक परिवार है) की सोच की ओर ले जाती है। सनातन धर्म सदैव ही अहिंसा की वकालत करता आया है, परन्तु समय के साथ अहिंसा का वास्तविक अर्थ भी भुला दिया गया है। इस गलतफहमी की भारी कीमत भारत ने चुकाई है।  भारत के टुकड़े होने लगे। इतिहास के इस संकट  काल में आदि शंकराचार्य आए और उन्होंने कहा, ‘देश की रक्षा करें, धर्म की रक्षा करें।’
इस प्रकार अखाड़े (योद्धा संन्यासी पंथ) उभरे। अखाड़ों के लिए मुख्त देवता कार्तिक को चुना गया —जो देवताओं के सेनापति हैं और महान योद्धा भी। सनातन धर्म की पुन: स्थापना हुई और भारत ने पुन: जन्म लिया।
सनातन धर्म हमें सिखाता है कि हिंसा को रोकना भी अहिंसा है। हमारे देव-देवियां भी हथियारों के साथ दर्शाये जाते हैं। जब आप योग में स्थिर हो जाते हैं, आप नफरत से नहीं कर्म करते। एक कर्म हिंसात्मक या अहिंसात्मक उसकी रूप-रेखा से नहीं, परन्तु उसके इरादे से होता है। एक डाक्टर यदि किसी की जान बचाने के लिए चाकू का इस्तेमाल करे, तो यह अहिंसा है, परन्तु एक लुटेरा यदि चाकू किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए इस्तेमाल, तो यह हिंसा है। इसी प्रकार यदि कोई पुलिस या सैनिक किसी की रक्षा के लिए हथियार उठाये तो वह हिंसा नहीं, अमन की रक्षा कर रहे हैं। यदि कोई धर्म की रक्षा के लिए युद्ध में शहीद हो, तो उसे जन्नत मिल सकती है। 
सौभाग्य से दुनिया अब जाग रही है। मध्य-पूर्व के कई देश—जैसे सऊदी अरब तथा यूएई, धार्मिक समरसता को उत्साहित कर रहे हैं और आतंकवाद को रोक रहे हैं। 2021 में सऊदी अरब ने अपने पाठ्यक्रम में रामायण तथा महाभारत को शामिल किया। यह फैसला शिक्षा को अधिक सांस्कृतिक और विविध बनाने के लिए किया गया है। उन्होंने देख लिया कि अंधविश्वास सिर्फ अन्य को ही नहीं, स्व-समाज को भी नुकसान पहुंचाता है। 
भारत ने सदा सभी धर्मों का सम्मान किया है। कश्मीर में भी अब बदलाव देखा जा रहा है। हमें देखने को मिला है कि सभी धर्मों के लोग आतंकवाद के खिलाफ एकजुट हुए। भारतीय मुसलमानों ने पहलगाम हमले के विरोध में नमाज़ के दौरान काली पट्टियां बांधीं।  मैं सब को विनती करता हूं कि कश्मीरी नौजवानों को दोष न दें। वे हमारे ही बच्चे हैं। वे भी बहुत दुख झेल चुके हैं। वे पीड़ितों का दर्द महसूस करते हैं। कुछ लोगों की गलत भूमिका के कारण पूरे समुदाय को देषी ठहराना अनुचित है। हमें उनकी रक्षा तथा समर्थन करना चाहिए, न कि उन्हें बेगाने करना। 
इस दुख तथा गुस्से के समय पूरी दुनिया को एकजुट होकर आतंकवादियों को दिखाना होगा कि वे किस योग्य हैं। प्रत्येक समझदार व्यक्ति इस हमले की निंदा करेगा, परन्तु अब सिर्फ निंदा काफी नहीं। अब कार्रवाई की जरूरत है। जो युवाओं के मन में नफरत भर रहे हैं, उन्हें अलग करना तथा रोकना होगा। ऐसी अमानवीय सोच के कारण निर्दोष जानें जा रही हैं। आओ, हम एकजुट होकर इसे खत्म करें तथा पीड़ित परिवारों के लिए शक्ति तथा ठीक होने की अरदास भी करें।   

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