नक्सलियों पर अब अंतिम प्रहार होना बाकी
छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई निर्णायक मोड़ पर पहुंच रही है। नक्सलियों का प्रभाव अब धीरे-धीरे कम हो रहा है। सुरक्षाबल उनका सफाया करके उनके ठिकानों को नष्ट कर रहे हैं। नक्सलियों के खिलाफ 22 अप्रैल, 2025 से शुरू हुए सबसे बड़े अभियान में अपेक्षित सफलता मिल रही है। अभियान का केंद्रबिंदु कर्रेगुट्टा पहाड़ी है। वहां से नक्सली भाग रहे हैं। इस पहाड़ी को भी छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ, पुलिस और डीआरजी और विशेष कमांडो ने घेर रखा है। सुरक्षाबलों के इस ऑपरेशन के चलते लाल आतंकी घबराए हुए हैं और वह सरकार से अब बात करना चाहते हैं। छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने इससे इन्कार कर दिया है। छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र की सीमा जहां मिलती है, वहां पर यह कर्रेगुट्टा पहाड़ी है। यह 5 हजार फीट की ऊंचाई पर है। पहाड़ी पर और उसके आसपास घना जंगल है। आसपास कोई आबादी नहीं है। यहां 22 अप्रैल, 2025 को सुरक्षाबलों ने अभियान शुरू किया था। सुरक्षाबलों को सूचना थी कि यहां कई बड़े नक्सली कमांडर ठहरे हुए हैं। इसके बाद छत्तीसगढ़ की पुलिस, डीआरजी, सीआरपीएफ, कोबरा कमांडो और महाराष्ट्र के कमांडो समेत 10 हज़ार जवानों ने इस पहाड़ी को घेरना शुरू किया। इस पहाड़ी पर जवान नहीं पहुंच सके, क्योंकि इसके मार्ग में माओवादियों ने आईईडी लगा रखी थीं। सुरक्षाबलों के वहां पहुंचने के बाद उनकी नक्सलियों से मुठभेड़ शुरू हो गई थी।
इसमें तीन महिला नक्सली ढरे हो गईं। इन पर 8 लाख का इनाम था। इनके अलावा 8 और नक्सलियों के मारे जाने की सूचना सुरक्षाबलों को मिली। हालांकिए इन नक्सलियों के शव बरामद नहीं हुए हैं। नक्सली और सुरक्षाबल लगातार आपस में टकरा रहे हैं। सुरक्षाबलों की कार्रवाई से नक्सली घबरा गए हैं। 200 वर्ग फुट किलोमीटर से ज्यादा वाले इस इलाके से वह भागने का प्रयास कर रहे हैं। उनके भागने की दिशा तेलंगाना की तरफ है। तेलंगाना की तरफ से उतनी सख्ती न होने के कारण यह नक्सली उस तरफ भागने की फिराक में बताए जा रहे हैं। यहां के कुछ क्षेत्रों में जवान 9 दिन चढ़ाई के बाद पहुंचे। उन्हें वहां भारी मात्रा में विस्फोटक भी मिले।
कभी जंगली इलाकों में समानांतर सरकार चलाने वाले नक्सली अब घुटनों पर आ गए हैं। हज़ारों जवानों और आम लोगों की हत्या करने वाले नक्सली अब सरकार से युद्ध-विराम करने को कह रहे हैं। सीपीआई-एम ने सरकार से अपील की है कि वह उनके सफाए के लिए चलाए जा रहे ‘ऑपरेशन कगार’ को बंद कर दे। इस युद्ध-विराम को तेलंगाना के नेता भी समर्थन दे रहे हैं। बीआरएस प्रमुख केसीआर भी यही अपील कर चुके है। वहीं तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी भी इस पर विचार करने की बात कर चुके हैं, लेकिन वर्षों से नक्सलवाद का दंश झेल रही छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार इस मूड में नहीं है।
छत्तीसगढ़ के उप-मुख्यमंत्री और गृह मंत्री विजय शर्मा ने युद्ध-विराम करने से इन्कार कर दिया है। उन्होंने कहा, ‘मामला ये है कि शांति समझौता करने के लिए कुछ लोग इकट्ठा हो रहे हैं। ये कौन लोग हैं, ये तब कहां थे जब दरभाडोरा में 27 नागरिकों को नक्सलियों ने मार दिया था।’ उन्होंने आगे कहा, ‘जब बस्तर के आदिवासियों की हत्या हुई तब ये लोग कहां थे। अभी यह कैसे उभर कर आ रहे हैं। झीरम घाटी में जब इतने लोग मार दिए गए, तब यह सब कहां थे?’
गृह मंत्री अमित शाह ने 31 मार्च, 2026 का समय सुरक्षाबलों को नक्सलियों का सफाया करने के लिए दिया है। इसलिए लगातार ऑपरेशन हो रहे हैं। 2024 में सुरक्षाबलों ने 290 नक्सली मारे थे। वहीं 2025 में यह संख्या लगभग 130 पहुंच चुकी है। सैकड़ों की संख्या में नक्सली आत्म-समर्पण कर चुके हैं। वर्ष 2025 में सुरक्षाबलों को नक्सलियों के खिलाफ लगातार बड़ी सफलताएं हाथ लगी हैं। अब तक कई ऐसे ऑपरेशन छत्तीसगढ़ में हो चुके हैं जिनमें एक दर्जन से ज्यादा नक्सली एक साथ मार गिराए गए हों। एक रिपोर्ट बताती है कि 2025 में अब तक छत्तीसगढ़ में 120 से अधिक नक्सली मारे गए हैं। 2025 के पहले दिन से ही सुरक्षाबलों ने नक्सलियों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया था। 2 जनवरी, 2025 को बीजापुर में हुई मुठभड़ में 5 नक्सली मारे गए थे। उसके बाद यह सिलसिला चलता ही रहा। 16 जनवरी को हुई एक मुठभेड़ में 18 नक्सली मार गिराए थे। 21 जनवरी को गरियाबंद पहाड़ी पर हुई एक मुठभेड़ में 16 नक्सली मारे गए थे। इनमें नक्सलियों का टॉप कमांडर चलापति भी था। चलापति 1 करोड़ का इनामी नक्सली था। उसके साथ ही एक-दो और बड़े कमांडर भी मारे गए थे।
इस वर्ष की सबसे बड़ी मुठभेड़ 9 फरवरी को हुई थी। नेशनल पार्क क्षेत्र में हुए ऑपरेशन के दौरान यहां 31 नक्सली मार दिए गए थे। यह ऑपरेशन महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के सुरक्षाबलों ने मिलकर किया था। यह हमला नक्सलियों की एक मीटिंग पर हुआ था। इसी तरह के बड़े ऑपरेशन के चलते नक्सलियों की कमर अब टूट गई है। सुरक्षाबल अब उन इलाकों में घुस रहे हैं, जहां पहले नक्सली एकक्षत्र राज कर रहे थे। उन्हें ग्रामीणों से मिलने वाला समर्थन भी अब कम हो चुका है। दुर्गम इलाकों में चौकियां बनाने के कारण सुरक्षाबल उनकी हचलच पर नज़र रख रहे हैं। (अदिति)